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बीमा करायें, टैक्स बचायें

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Category: मार्च 2017

कर बचत के लिए बीमा कराते समय लोग सोचते हैं कि कोई भी बीमा करा लें, उससे कर बचत तो हो ही जायेगी।

लेकिन अगर आप बीमा और कर बचत के प्रावधानों को ध्यान से समझ लें, तो ऐसा उत्पाद चुन सकेंगे जो आपकी जरूरतों के लिए ज्यादा सटीक हो और भविष्य में आपको पछताना न पड़े कि जल्दबाजी में गलती कर दी थी। बीमा कराने पर कर में छूट आपको दो तरह के बीमा पर मिलती है - जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा।
जीवन बीमा के दो मुख्य प्रकार हैं। एक तो सावधि बीमा (टर्म प्लान) जिनमें केवल बीमा सुरक्षा मिलती है और कोई निवेश साथ में जुड़ा नहीं होता। दूसरे, कुछ ऐसी बीमा योजनाएँ हैं जिनमें बीमा सुरक्षा के साथ निवेश भी जुड़ा होता है, जैसे एनडॉवमेंट, यूलिप, पेंशन योजना वगैरह। जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा पर कर छूट के प्रावधान आय कर कानून की धारा 80 सी, 80 सीसीसी, 80सीसीई और 10 (10डी) में दिये गये हैं। धारा 80सी में निवेश करने के समय मिलने वाली छूट का विवरण है, जबकि धारा 10 (10डी) में बीमा के पैसे मिलने के समय कर छूट मिलने के नियम दिये गये हैं।
यहाँ सबसे पहले यह ध्यान में रख लें कि बीमा कराने का प्राथमिक उद्देश्य अपने परिवार को वित्तीय सुरक्षा का कवच दिलाना है। कर में बचत इसका अतिरिक्त फायदा है। यह बीमा सुरक्षा सबसे सस्ते मूल्य पर दिलाती हैं सावधि बीमा योजनाएँ (टर्म प्लान)। सावधि बीमा योजना में आप बहुत कम प्रीमियम चुका कर सबसे ज्यादा राशि का बीमा करा सकते हैं। यह निवेश नहीं, बल्कि वाहन बीमा या स्वास्थ्य बीमा की तरह ही एक खर्च है। आप वाहन बीमा में अपनी कार या मोटरसाइकिल का बीमा कराते हैं और पूरा साल सकुशल निकल जाने पर आपको बीमा कंपनी से कोई राशि वापस नहीं मिलती।
इसी तरह आपने स्वास्थ्य बीमा कराया और सौभाग्य से साल भर आपको किसी बीमारी में अस्पताल नहीं जाना पड़ा, तो स्वास्थ्य बीमा देने वाली कंपनी से कोई राशि वापस नहीं मिलती। अवधि पूरी हो जाने के बाद आप फिर से उसका नवीकरण कराते हैं और प्रीमियम चुकाते हैं। पर यह अफसोस की नहीं, खुशी की बात होती है। सावधि बीमा किसी आपदा की स्थिति में परिवार को वित्तीय सुरक्षा दिलाने के लिए है। पर वह आपदा आयी ही नहीं, यह तो खुश होने वाली बात है।
जीवन बीमा से कर बचत
धारा 80सी में निवेश और खर्चों के ऐसे तमाम विकल्प दिये गये हैं, जिन पर सालाना 1.50 लाख रुपये की सीमा तक आपको कर कटौती मिलती है, यानी उतनी राशि आपकी कर योग्य आय में से घटा दी जाती है। इन विकल्पों में जीवन बीमा योजनाएँ भी शामिल हैं। यानी आप जीवन बीमा योजनाओं के अधिकतम 1.50 लाख रुपये तक के प्रीमियम पर भी 80सी के तहत कर बचत का लाभ ले सकते हैं।
यह छूट व्यक्तिगत करदाताओं और हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) दोनों के लिए उपलब्ध है। व्यक्तिगत करदाताओं के मामले में खुद अपने लिए, जीवन-साथी के लिए और बच्चों के लिए लिये गये जीवन बीमा के प्रीमियम भुगतान पर कर छूट मिलेगी। एचयूएफ के मामले में एचयूएफ के किसी भी सदस्य (कर्ता समेत) के लिए लिये गये बीमा के प्रीमियम पर छूट उपलब्ध है।
पर यहाँ दो बातें ध्यान में रखने की जरूरत है। एक तो यह कि 80सी में दिये गये विकल्पों में से बहुत-से विकल्प अनिवार्यत: स्वयं लागू हो जाते हैं। जैसे, अगर आप वेतनभोगी हों तो पीएफ में योगदान या बच्चों की शिक्षा पर खर्च वगैरह। 80सी में दिये गये सभी विकल्पों से कुल 1.50 लाख रुपये की सीमा तक ही कर छूट ली जा सकती है। यानी अगर ईपीएफ में ही एक लाख रुपये का योगदान हो चुका है, तो 80सी के बाकी विकल्पों में 50,000 रुपये तक के निवेश पर ही कर छूट ली जा सकेगी।
दूसरे, केवल 1.50 लाख रुपये की सीमा पूरी करने के लिहाज से जीवन बीमा योजनाओं को न खरीदें, बल्कि अपनी जरूरत और निवेश के प्रतिफल जैसे पैमानों को आधार बनायें। यानी, जरूरत के मुताबिक बीमा सुरक्षा हासिल करें, और जहाँ निवेश की बात हो वहाँ ऊँचा प्रतिफल हासिल करने वाले उत्पादों को चुनें।
बीमा पेंशन योजनाओं पर छूट
धारा 80सीसीसी के तहत एलआईसी और अन्य बीमा कंपनियों की स्वीकृत पेंशन योजनाओं के लिए सालाना 1.50 लाख रुपये तक के भुगतान पर कर छूट हासिल होती है। पर ध्यान रखें कि ऐसी पेंशन योजना को पूरी तरह या आंशिक रूप से वापस (सरेंडर) करने पर कर छूट का लाभ खत्म हो जाता है। पेंशन योजना वापस करने पर ब्याज और बोनस समेत मिली राशि और पेंशन की राशि प्राप्ति वाले वर्ष में कर-योग्य आय में जुड़ जाती है, अगर पहले उस योजना के प्रीमियम भुगतान पर कर कटौती का दावा स्वीकृत किया गया हो।
कुल छूट 1.50 लाख रुपये की
धारा 80 सीसीई में बताया गया है कि धारा 80 सी, 80 सीसीसी और 80 सीसीडी (केंद्र सरकार की पेंशन योजनाओं में किया गया योगदान), तीनों के लिए किये गये भुगतान या योगदान पर कुल मिला कर 1.50 लाख रुपये तक की कर कटौती का दावा किया जा सकता है। चार्टर्ड एकाउंटेंट महेश गुप्ता कहते हैं कि 80 सी के तहत कुल कर छूट का लाभ 1.50 लाख रुपये तक का है, और इसके ऊपर केवल 80 सीसीडी के तहत एनपीएस में 50,000 रुपये तक के निवेश पर अलग से कर छूट मिलती है। ऐसा नहीं है कि आप 80 सी के तहत भी 1.50 लाख रुपये की छूट लें और उसके बाद अलग से 80 सीसीसी के तहत भी 1.50 लाख रुपये की छूट लें।
10% के नियम का रखें ध्यान
कर बचत के लिए बीमा लेते समय यह भी ध्यान रखें कि सारी बीमा योजनाओं पर पूरी कर छूट नहीं मिलती। धारा 80सी के तहत कर-योग्य आय में कटौती का लाभ बीमा राशि के 10% प्रीमियम भुगतान तक ही मिलेगा। चार्टर्ड एकाउंटेंट महेश गुप्ता बताते हैं कि प्रीमियम भुगतान बीमा राशि के 10% से ज्यादा हो, तो कर-योग्य आय में कटौती का लाभ केवल 10% की सीमा तक मिलेगा, उसके ऊपर के भुगतान पर नहीं। पर ऐसा नहीं है कि ऐसे मामले में पूरा ही प्रीमियम भुगतान कर छूट के लाभ से बाहर हो जायेगा।
उदाहरण के लिए, अगर किसी योजना में बीमा सुरक्षा 10 लाख रुपये की है और साल के दौरान किया गया प्रीमियम भुगतान 1.50 लाख रुपये है, तो कर-योग्य आमदनी में से केवल 1 लाख रुपये की ही कटौती होगी, बाकी 50,000 रुपये की नहीं। 10% प्रीमियम का नियम लागू करते समय जीवन बीमा योजना में बीमा सुरक्षा की वास्तविक राशि वह न्यूनतम बीमा राशि है, जो योजना की अवधि के दौरान कभी भी बीमाधारक की मृत्यु हो जाने पर बीमा कंपनी देती है। अगर उस योजना में प्रीमियम वापस लौटाने का कोई प्रावधान हो तो उसकी राशि को नहीं जोड़ा जाता। साथ ही उस योजना में बोनस या अन्य किसी लाभ को भी नहीं जोड़ा जाता।
एकल प्रीमियम बीमा योजना
एकल प्रीमियम जीवन बीमा (एसपीएलआई) योजना ऐसे लोगों के लिए अच्छी होती है, जिनकी सालाना आय सुनिश्चित नहीं होती और उसमें उतार-चढ़ाव आता रहता है। ऐसे लोग किसी साल अतिरिक्त आमदनी होने पर एसपीएलआई के माध्यम से अपने परिवार के लिए अतिरिक्त बीमा सुरक्षा का उपाय कर सकते हैं। हाल में इन योजनाओं की लोकप्रियता भी बढ़ी है। मौजूदा वित्त वर्ष में 31 जनवरी 2017 तक इन योजनाओं का कुल प्रीमियम भुगतान 22,592 करोड़ रुपये का रहा है, जो पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 10,025 करोड़ रुपये के प्रीमियम की तुलना में दोगुने से भी ज्यादा है।
जैसा कि नाम से जाहिर है, ऐसी बीमा योजनाओं में केवल एक बार प्रीमियम का भुगतान करना पड़ता है। एसपीएलआई पर धारा 80सी और धारा 10 (10डी) दोनों के लाभ मिलते हैं। मगर ध्यान रखें कि ऐसी किसी योजना में अगर एकल प्रीमियम भुगतान उस योजना में मिल रही बीमा सुरक्षा के 10% से ज्यादा है, तो निवेश करने वाले वित्त वर्ष में 80 सी के तहत 10% से अधिक राशि पर कर कटौती का लाभ नहीं मिलेगा। वहीं ऐसी योजना की अवधि पूरी होने पर परिपक्वता वाले वित्त वर्ष में मिली समूची राशि कर योग्य आय मानी जायेगी।
10% प्रीमियम वाले नियम के चलते बहुत सारी एकल प्रीमियम वाली बीमा योजनाओं पर मिलने वाला कर लाभ काफी घट जाता है। इसी वजह से बीमा कंपनियों की यह माँग रही है कि इस प्रावधान में संशोधन किया जाये और पहले की तरह इसे बढ़ा कर 20% किया जाये। मगर इस नियम के पीछे मंशा यह है कि लोग ज्यादा बीमा सुरक्षा हासिल करें। इस बंदिश के न होने पर बीमा कंपनियाँ ऐसे काफी उत्पाद पेश करती थीं, जिनमें भले ही पर्याप्त बीमा सुरक्षा न हो मगर प्रीमियम की तुलना में मिलने वाला प्रतिफल अधिक दिखे। ऐसा करने से उन्हें ग्राहकों को आकर्षित करने में जरूर मदद मिलती थी, मगर ग्राहक अपने परिवार की वास्तविक जरूरत से कम बीमा सुरक्षा लेकर ही निश्चिंत हो जाता था।
कुछ समय पहले एक बीमा कंपनी के विज्ञापन अभियान में इस प्रवृत्ति को कम इंश्योरेंस लेने की बीमारी (केआईएलबी) के तौर पर प्रचारित किया गया। मगर इसका दूसरा पहलू यह है कि खुद बीमा कंपनियाँ सावधि बीमा (टर्म प्लान) जैसे शुद्ध बीमा उत्पाद के बदले निवेश वाले बीमा उत्पादों को ही ज्यादा प्रचारित करती रही हैं, जबकि पर्याप्त बीमा सुरक्षा हासिल करने के लिहाज से सावधि बीमा योजनाएँ ही सबसे सक्षम और सबसे सस्ती हैं।
इन बातों को ध्यान में रखते हुए अगर आप एकल प्रीमियम जीवन बीमा योजना ले रहे हैं, तो उसमें ध्यान रखें कि प्रीमियम भुगतान उसमें मिलने वाली बीमा सुरक्षा के 10% से ज्यादा न हो। भले ही 80सी के तहत 1.50 लाख रुपये की सीमा आपने पार कर ली हो और इस समय आपको 80 सी के लाभ की जरूरत नहीं हो, मगर परिपक्वता के समय के कर लाभ को ध्यान में रखते हुए इस नियम का पालन करना जरूर करना चाहिए।
जीवन बीमा से मिली राशि कर-मुक्त
किसी जीवन बीमा पॉलिसी से मिली राशि पर कर छूट मिलती है और उसे कर योग्य आय में नहीं जोड़ा जाता। मतलब यह है कि बीमाधारक की मृत्यु होने पर परिजनों को जो बीमा राशि मिलेगी, वह कर-मुक्त होगी। साथ ही जिन बीमा योजनाओं में निवेश वाला पहलू भी जुड़ा रहता है, उनमें पॉलिसी की अवधि पूरी होने पर बीमाधारक को जो राशि मिलती है, वह भी कर-मुक्त होती है।
धारा 10 (10डी) में कहा गया है कि जीवन बीमा पॉलिसी से मिलने वाली कोई भी राशि (बोनस आदि समेत) कर-मुक्त होगी। हालाँकि इसके कुछ अपवाद भी हैं। धारा 80डीडी(3) के तहत मिली राशि पर कर छूट नहीं है। इसी तरह कीमैन बीमा पॉलिसी की राशि भी कर-मुक्त नहीं है।
जो बीमा योजना 1 अप्रैल 2003 को या इसके बाद जारी की गयी हो और योजना अवधि के किसी भी वर्ष में प्रीमियम भुगतान की राशि वास्तविक बीमा राशि के 20% से ज्यादा हो, तो बीमाधारक की मृत्यु पर मिलने वाले पैसे को छोड़ कर उस योजना से मिली कोई भी अन्य राशि कर-योग्य होगी। वहीं 1 अप्रैल 2012 को या इसके बाद जारी बीमा योजनाओं के लिए प्रीमियम राशि वास्तविक बीमा राशि के 10% से ज्यादा होने पर बीमा से मिला भुगतान कर-मुक्त नहीं होगा। मगर बीमाधारक की मृत्यु पर मिलने वाली राशि हमेशा ही कर-मुक्त है।
बीमा राशि पर टीडीएस
अगर आपकी जीवन बीमा योजना से मिली मिलने वाली राशि धारा 10 (10डी) के तहत कर-मुक्त न हो और बोनस समेत मिलने वाली राशि एक वित्त वर्ष में 1 लाख रुपये से अधिक हो, तो बीमा कंपनी उस भुगतान पर स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) करती है। जीवन बीमा से आंशिक निकासी, योजना वापसी या परिपक्वता आदि किसी भी रूप में लिये गये भुगतान पर टीडीएस कटता है, अगर एक ही वित्त वर्ष में 1 लाख रुपये से अधिक का भुगतान मिला हो।
लेकिन जैसा कि धारा 10 (10डी) में बताया गया है, 1 अप्रैल 2003 से 31 मार्च 2012 के बीच जारी जीवन बीमा योजनाओं में किसी भी साल प्रीमियम की राशि बीमा राशि के 20% से अधिक न हो, या 1 अप्रैल 2012 या इसके बाद जारी योजनाओं में सालाना प्रीमियम की राशि बीमा राशि के 10% से ज्यादा न हो, तो ऐसी योजना से मिली राशि कर-मुक्त होगी, इसलिए उस पर टीडीएस भी नहीं कटेगा।
अगर जीवन बीमा के भुगतान पर टीडीएस कटे, तो टीडीएस प्रमाणपत्र लेना न भूलें, क्योंकि आय कर रिटर्न दाखिल करते समय उसकी मदद से आप अपनी आय कर देनदारी में से टीडीएस की रकम घटा सकेंगे।
स्वास्थ्य बीमा पर कर छूट
धारा 80डी में स्वास्थ्य बीमा पर कर छूट के प्रावधान बताये गये हैं। स्वास्थ्य बीमा पर कर छूट भी व्यक्तिगत करदाताओं के साथ-साथ एचयूएफ के लिए भी है। व्यक्तिगत करदाता स्वयं, जीवन-साथी, निर्भर बच्चों और निर्भर माता-पिता के लिए स्वास्थ्य बीमा के प्रीमियम भुगतान पर कटौती का लाभ ले सकते हैं। एचयूएफ में कर्ता समेत किसी भी सदस्य के लिए स्वास्थ्य बीमा पर यह लाभ मिलेगा।
इनके तहत अगर परिवार में कोई वरिष्ठ नागरिक (60 वर्ष से अधिक) न हो, तो स्वयं, जीवन-साथी और निर्भर बच्चों के लिए 25,000 रुपये तक के स्वास्थ्य बीमा पर कर छूट मिलती है, जबकि माता-पिता के स्वास्थ्य बीमा के लिए अलग से 25,000 रुपये तक की कर छूट है। अगर माता-पिता की उम्र 60 वर्ष से अधिक हो, तो उस स्थिति में माता-पिता के लिए 30,000 रुपये तक के स्वास्थ्य बीमा पर कर छूट मिलती है। अगर स्वयं करदाता की उम्र भी 60 वर्ष से अधिक हो तो स्वयं, जीवन-साथी और निर्भर बच्चों के लिए स्वास्थ्य बीमा पर कर छूट भी 30,000 रुपये सालाना हो जाती है।
(निवेश मंथन, मार्च 2017)

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