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कम रहा नोटबंदी का असर

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Category: मार्च 2017

धर्मकीर्ति जोशी, मुख्य अर्थशास्त्री, क्रिसिल :

मुझे विकास दर (जीडीपी वृद्धि) के ये आँकड़े चौंकाने वाले नहीं लगे हैं। यह सही है कि जीडीपी के आँकड़ों में असंगठित क्षेत्र की झलक अच्छी तरह नहीं आ पाती।

इस कारण यह कहा जा सकता है कि जीडीपी के आँकड़े थोड़ा-सा अधिक नजर आ रहे हैं। मगर अगले आकलन में जब सीएसओ असंगठित क्षेत्र के आँकड़ों को शामिल करेगा भी, तो जीडीपी वृद्धि का यह आँकड़ा कितना नीचे जायेगा? यह ज्यादा नीचे तो जाने वाला नहीं है। इसलिए कह सकते हैं कि विमुद्रीकरण का असर बहुत ही थोड़े समय के लिए पड़ा है। वहीं पहले से ही अर्थव्यवस्था में ऐसे संकेत आ रहे हैं कि इसका सँभलना शुरू हो गया है, जैसे कार बिक्री वगैरह को देखें। इससे साफ है कि यह अर्थव्यवस्था में थोड़े समय के लिए आयी बाधा थी। लोगों ने जितना सोचा था, उससे कम समय के लिए अर्थव्यवस्था बाधित हुई और इसका असर भी अनुमानों से कम रहा।
इऩ आँकड़ों पर अविश्वास करने वाली भला क्या बात है? सीएसओ से यह आँकड़ा आता है, फिर उसमें दो-तीन संशोधन होते हैं। अभी यह अग्रिम अनुमान है, उसके बाद संशोधित अनुमान आयेगा और उसके बाद अंतिम आँकड़ा आयेगा। यह तो हर साल होता है। इस साल एक बाधा आयी थी, इसलिए लोग सोच रहे हैं कि जीडीपी का अंतिम आँकड़ा थोड़ा-सा और नीचे जायेगा। पर यह बहुत ज्यादा नहीं गिरने वाला है। हमारा अनुमान पहले 6.9% विकास दर का था। अभी मैं कोई नया आँकड़ा देना नहीं चाहता, क्योंकि आँकड़ों पर हमारा विस्तृत आकलन बाकी है। हो सकता है कि 40-50 आधार अंक नीचे चला जाये, उससे ज्यादा नहीं। पर अभी मैं कोई भविष्यवाणी नहीं करना चाहता। अभी मैं अपनी सूचनाओं के आधार पर एक अंदाजा कह रहा हूँ।
ऋण वृद्धि दर (क्रेडिट ग्रोथ) कम होने जैसी बातें तो दो-तीन साल से चल रही हैं। लोग तब से कह रहे हैं कि जीडीपी की संख्या जितना दिखा रही है, जमीनी स्तर पर उतनी वृद्धि नहीं दिख रही है। वह अलग मुद्दा है। उसको नोटबंदी से क्यों जोड़ा जाये? जीडीपी की गणना करने की नयी पद्धति जब आ गयी है, तो लोगों को इस नयी पद्धति के साथ खुद को समायोजित कर लेना चाहिए। आप कहें कि आज की 7% दर पहले की 5% वृद्धि के बराबर है, तो यह सेब और नारंगी की तुलना करने वाली बात हो जाती है। यह तुलना वाजिब नहीं है। अभी चौथी तिमाही के बारे में कुछ कहना मुश्किल है। पूरे साल के संशोधित अनुमानों का इंतजार करना होगा। पर अगले वित्त वर्ष के लिए हम कह सकते हैं कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार कुछ और ऊपर जायेगी। हमारा आकलन 2017-18 में 7.4% विकास दर का है।

(निवेश मंथन, मार्च 2017)

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