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नोटबंदी से बेअसर जीडीपी?

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Category: मार्च 2017

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने संसद में नोटबंदी की आलोचना करते हुए कहा था कि इसके चलते भारत की विकास दर 2% घट सकती है।

उन्होंने साफ नहीं किया था कि वे किस अवधि के लिए ऐसा कह रहे हैं। तब कुछ लोगों ने माना कि संभवत: वे पूरे साल के लिए ऐसा कह रहे होंगे, और कुछ लोगों ने माना कि शायद उनका यह आकलन एक तिमाही के लिए होगा। अब जो आँकड़े सामने आ रहे हैं, उनसे जाहिर है कि यह अंदेशा न पूरे साल के लिए सही था, न ही 2016-17 की उस खास तीसरी तिमाही के लिए, जिस दौरान नोटबंदी लागू हुई।
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) की ओर से 28 फरवरी को जारी दूसरे अग्रिम अनुमानों (एडवांस एस्टिमेट) के मुताबिक अक्टूबर-दिसंबर 2016 यानी इस वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के दौरान भारत की आर्थिक विकास दर (जीडीपी ग्रोथ रेट) 7% रही है। वहीं पूरे वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान इसने 7.1% विकास दर रहने का अनुमान जताया है। जनवरी में जारी प्रथम अग्रिम अनुमान में भी सीएसओ ने 2016-17 के लिए 7.1% विकास दर का ही अनुमान पेश किया था। इन आँकड़ों के साथ भारत ने विश्व में सबसे तेज दर से बढऩे वाली अर्थव्यवस्था का खिताब कायम रखा है।
हालाँकि इससे पहले खुद सरकार की ओर से संसद में पेश 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में इस वित्त वर्ष के लिए विकास दर का अनुमान 6.5% से 6.75% के बीच रखा गया था। 2016-17 की तीसरी तिमाही के लिए एसबीआई रिसर्च ने में 5.8% विकास दर का अनुमान रखा था, जबकि विभिन्न रेटिंग संस्थाओं के आकलन भी 6% के आसपास के ही थे। सीएसओ के ताजा आँकड़ों में पूरे वित्त वर्ष 2016-17 के लिए ग्रॉस वैल्यू ऐडेड (जीवीए) में वृद्धि दर को जनवरी में पेश प्रथम अग्रिम अनुमान के 7% से घटा कर इस दूसरे अग्रिम अनुमान में 6.7% कर दिया गया है। इसके बावजूद सालाना जीडीपी वृद्धि को पिछले अनुमान के बराबर ही 7.1% रखा गया है। सीएसओ के प्रमुख टीसीए अनंत के मुताबिक जीवीए में होने वाली कमी की भरपाई अप्रत्यक्ष करों में वृद्धि से हो गयी।
अनुमान हुए ध्वस्त
इन ताजा आँकड़ों ने ऐसे तमाम अनुमानों को ध्वस्त कर दिया है, जिनमें नोटबंदी के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार को अचानक बड़ा झटका लगने की बात कही गयी थी। सरकार और अधिकांश अर्थशास्त्रियों का मानना रहा है कि नोटबंदी और उसके बाद डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा दिये जाने से लंबी अवधि में अर्थव्यवस्था को फायदा होगा, क्योंकि समानांतर अर्थव्यवस्था में होने वाली गतिविधियाँ इससे मुख्य अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन जायेंगी।
मगर सरकार समेत लगभग सभी लोग यह मान रहे थे कि छोटी अवधि में नोटबंदी के चलते अर्थव्यवस्था को एक तात्कालिक झटका तो जरूर लगेगा। बहस केवल इस बात को लेकर थी कि नोटबंदी का असर कब तक और कितना रहने वाला है। सीएसओ के ताजा आँकड़े दिखा रहे हैं कि ऐसे किसी झटके से अंग्रेजी के वी (ङ्क) आकार में सँभलने की बात तो बाद की है, वी आकार के पहले आधे हिस्से के जैसा कोई झटका लगा ही नहीं है।
सीएसओ के ये आधिकारिक आँकड़े कई पैमानों पर प्रचलित धारणा और अनुमानों से एकदम उलटी तस्वीर पेश करते हैं। यह सामान्य धारणा थी कि नोटबंदी के चलते लोगों के पास नकदी कम होने के कारण माँग और खपत में कमी आयेगी। मगर निजी खपत व्यय बढऩे की दर दूसरी तिमाही के 5% से एकदम दोगुनी हो कर तीसरी तिमाही में 10% पर पहुँच गयी।
जब नोटबंदी लागू हुई थी तो इसके चलते गाँवों और कृषि क्षेत्र में भारी दिक्कत होने की खबरें खूब चली थीं। मगर कृषि क्षेत्र की विकास दर 2016-17 की दूसरी तिमाही के 3.8% से बढ़ कर तीसरी तिमाही में 6% हो गयी है। दो साल के सूखे के बाद इस साल अच्छे मॉनसून के चलते खरीफ फसल अच्छी रही है, जिसका असर इन आँकड़ों में दिख रहा है। साथ ही, इस बार रबी की बुवाई के क्षेत्रफल में 6% की वृद्धि हुई है। नोटबंदी लागू होने के बाद कुछ खबरों में कहा गया था कि नोटों की किल्लत के चलते किसान बुवाई तक नहीं कर पा रहे हैं।
कुछ अर्थशास्त्रियों को बड़ा आश्चर्य इस पर है कि मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र ने तीसरी तिमाही में 8.3% की बढ़त कैसे दर्ज कर ली। दूसरी तिमाही में इसकी वृद्धि दर 6.9% थी। ट्रेड और होटल क्षेत्र की विकास दर भी थोड़ी बढ़ी ही, और दूसरी तिमाही के 6.9% से बढ़ कर तीसरी तिमाही में 7.2% रही। प्रमुख क्षेत्रों में केवल वित्तीय सेवाओं का क्षेत्र ऐसा रहा, जिसकी विकास दर घटी और दूसरी तिमाही के 7.6% की तुलना में 3.1% पर आ गयी।
एक अहम पहलू यह भी है कि तीसरी तिमाही के आँकड़ों में त्योहारी माँग का एक बड़ा असर होता है। 8 नवंबर को नोटबंदी लागू होने से पहले ही दशहरा और दीवाली के दोनों बड़े त्योहार बीत चुके थे, यानी उनसे जुड़ी खपत पूरी हो चुकी थी।
हकीकत से दूर थी निराशा
दरअसल बेहद निराशावादी नजरिया रखने वाले कुछ अर्थशास्त्रियों और विश्लेषकों ने अपने अनुमान का आधार कुछ ऐसे पैमानों को बनाया, जिनसे वास्तविकता के बिल्कुल विपरीत तस्वीर नजर आना स्वाभाविक था। मिसाल के तौर पर, ऐंबिट कैपिटल ने नोटबंदी के बाद सबसे ज्यादा निराशाजनक तस्वीर पेश करते हुए जीडीपी सिकुडऩे तक का अंदेशा जता दिया था। ऐंबिट कैपिटल ने इन आँकड़ों के बाद मीडिया के सामने अपना पक्ष रखते हुए बताया कि उन्होंने बैंक क्रेडिट यानी बैंकों द्वारा दिये जाने वाले ऋणों में वृद्धि की दर केवल 5% रह जाने को एक आधार बनाया था, जो पिछले कई वर्षों का सबसे निचला स्तर है।
मगर बैंक क्रेडिट के आँकड़ों को बारीकी से देखें तो तीसरी तिमाही में खुदरा ऋणों में अच्छी वृद्धि हुई है, जबकि थोक ऋणों में धीमापन रहा है। थोक ऋणों में यह धीमापन पहले से चला आ रहा है, क्योंकि निजी निवेश चक्र ठंडा पड़ा हुआ है। जब अतिरिक्त उत्पादन क्षमता के बोझ से दबा हुआ उद्योग जगत नया निवेश करने को तैयार नहीं है, तो जाहिर है कि वह नयी परियोजनाओं के लिए ऋण लेने को भी उत्सुक नहीं है। मगर उपभोक्ता खपत ठीक चल रही है और इसी वजह से तीसरी तिमाही में खुदरा ऋणों में भी अच्छी वृद्धि का ही रुझान दिखा है।
आईसीआईसीआई डायरेक्ट के रिसर्च प्रमुख पंकज पांडेय बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में कमोडिटी भावों का चक्र नीचे रहने से कमोडिटी से जुड़े क्षेत्रों की कुल आमदनी सुस्त रही है। साथ ही इन वर्षों में महँगाई दर भी नीचे रही है। इसका असर नोमिनल जीडीपी (वास्तविक जीडीपी दर + महँगाई दर) पर भी दिखा है। उनके मुताबिक ऐसे परिदृश्य में बैंक क्रेडिट में वृद्धि दर का घटना स्वाभाविक है।
इसके अलावा, ऋण वृद्धि दर के मामले में अलग-अलग बैंकों का रुझान भी अलग-अलग है। एनपीए की समस्या से जूझ रहे बैंकों में स्वाभाविक रूप से ऋण वृद्धि दर कम हो सकती है, खास तौर पर कॉर्पोरेट क्षेत्र में। मगर इस समस्या से कम प्रभावित बैंकों ने इस कॉर्पोरेट ऋण में भी अच्छी वृद्धि दिखायी है। एचडीएफसी बैंक ने 2016-17 की तीसरी तिमाही में कॉर्पोरेट ऋणों में पिछले साल की समान तिमाही से 14.6% बढ़त दर्ज की। हालाँकि इसके लिए भी खुदरा श्रेणी का प्रदर्शन ज्यादा अच्छा रहा, जिसमें 21.5% वृद्धि हुई।
पिछले आधार (बेस) का गणित
हालाँकि इसमें एक पहलू यह भी है कि वित्त वर्ष 2015-16 की विकास दर के आँकड़ों में भी संशोधन किया गया है। जहाँ पूरे वित्त वर्ष 2015-16 की विकास दर का आँकड़ा 7.6% के पिछले तात्कालिक (प्रोविजनल) आँकड़े की तुलना में अब जारी प्रथम संशोधित अनुमानों (आरई) में 7.9% कर दिया गया है, वहीं 2015-16 की तीसरी तिमाही की विकास दर को 7.2% से घटा कर 6.9% किया गया है। इसके चलते 2016-17 की तीसरी तिमाही में पिछला आधार (बेस) घट गया और उसका गणितीय असर भी 7% विकास दर में शामिल है।
सीएसओ ने 31 मई 2016 को 2015-16 के जो तात्कालिक या अनंतिम (प्रोविजनल) अनुमान सामने रखे थे, उनके मुताबिक 2015-16 की तीसरी तिमाही में जीवीए (ग्रॉस वैल्यू ऐडेड) 26,35,358 करोड़ रुपये का था। अब जो प्रथम संशोधित अनुमान पेश किया गया है, उसमें यह जीवीए घटा कर 26,28,370 करोड़ रुपये कर दिया गया है। वहीं 2016-17 की तीसरी तिमाही में जीवीए 28,02,089 करोड़ रुपये आया है। अगर पिछले वर्ष के तात्कालिक आँकड़ों से देखें तो यह 6.33% ज्यादा है, जबकि संशोधित आँकड़े से 6.61% ज्यादा है। यानी इस संशोधन के चलते 2016-17 की तीसरी तिमाही के जीवीए की वृद्धि दर पर होने वाला असर केवल 0.28% अंक का ही है।
इसलिए 2016-17 की तीसरी तिमाही के जीडीपी के आँकड़े पर भी पिछले वर्ष के आँकड़े में संशोधन के चलते होने वाला गणितीय असर 25-30 आधार अंक या 0.25-0.30% से अधिक नहीं हो सकता। यानी अगर यह संशोधन नहीं हुआ होता, तो भी 2016-17 की तीसरी तिमाही की जीडीपी विकास दर 6.7% के आसपास ही रहती। जाहिर है कि यह 6% से कम विकास दर के अनुमानों की तुलना में काफी बेहतर स्थिति है।
पिछले साल की तीसरी तिमाही के जीवीए में कटौती से इस बार का आँकड़ा बेहतर होने का तर्क देते समय यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि पूरे वित्त वर्ष 2015-16 के लिए जीडीपी विकास दर के आकलन को बढ़ाया गया है। अगर 2015-16 में जीडीपी वृद्धि का आँकड़ा पिछले साल के 7.6% से बढ़ा कर 7.9% नहीं किया गया होता, तो 2016-17 की अनुमानित जीडीपी वृद्धि दर 7.1% से भी अधिक होती।
सवाल उठाया विश्लेषकों ने
चूँकि ये आँकड़े चौंकाने वाले हैं, इसलिए कुछ अर्थशास्त्रियों और विश्लेषकों ने इस पर सवाल भी उठाये हैं। वे इन आँकड़ों में विसंगतियाँ तलाश रहे हैं। मसलन, यह सवाल किया जा रहा है कि कुल सरकारी खर्च में कमी के बावजूद सरकारी खर्च पर निर्भर सेवा क्षेत्र में तीसरी तिमाही में वृद्धि दर तेज कैसे हुई? उपभोक्ता व्यय चार साल के ऊपरी स्तर पर पहुँच गया, जबकि एफएमसीजी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी एचयूएल के तीसरी तिमाही के आँकड़े कमजोर रहे।
एचयूएल ने भी 2016-17 की तीसरी तिमाही में अपनी आमदनी में 0.8% की गिरावट दर्ज की। इसकी बिक्री की मात्रा भी 4% घटी है। हालाँकि इसकी बिक्री की मात्रा में गिरावट का रुझान पहले से ही रहा है। दूसरी तिमाही में भी इसने बिक्री में 1% गिरावट दर्ज की थी। पर दूसरी ओर इसी क्षेत्र से संबंधित गोदरेज इंडस्ट्रीज ने 2016-17 की तीसरी तिमाही में कंसोलिडेटेड कुल आमदनी में 34% की बढ़त हासिल की। इसका कंसोलिडेटेड मुनाफा दोगुने से ज्यादा हो गया। गोदरेज समूह के चेयरमैन अदि गोदरेज का तो कहना है कि नोटबंदी का विरोध केवल राजनीतिक है।
आँकड़ों का गणित ठीक नहीं?
जापान के प्रमुख वित्तीय सेवा समूह नोम्युरा की एमडी और चीफ इंडिया इकोनॉमिस्ट सोनल वर्मा ने इन आँकड़ों पर अपनी प्रतिक्रिया में संदेह जताया है। उनके मुताबिक जीडीपी के आँकड़े जो संदेश दे रहे हैं, वे जमीन पर दिखने वाली बातों से मेल नहीं खाते।
दरअसल नोम्युरा ने इन आँकड़ों के पेश होने से पहले हाल की अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि नोटबंदी के असर से 2016-17 की चौथी तिमाही यानी जनवरी-मार्च 2017 में भी अर्थव्यवस्था की सुस्ती कायम है। इस रिपोर्ट में नोम्युरा का आकलन था कि भारत की विकास दर 2016-17 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) के 7.3% से घट कर तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर) में 6.0% और चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में केवल 5.7% रह जायेगी। कैलेंडर वर्ष 2017 की दूसरी छमाही (जुलाई-दिसंबर) में विकास दर वापस सँभलेगी और 7.5% के स्तर पर लौटेगी। कैलेंडर वर्ष 2018 में इसने 7.7% विकास दर रहने का अनुमान लगाया है।
नोम्युरा के मुताबिक कैलेंडर वर्ष 2017 की पहली छमाही में महँगाई दर 4.0-4.5% के निचले स्तरों पर रहेगी, लेकिन दूसरी छमाही में बढ़ कर 5.5-6.0% तक पहुँचेगी। इसने ब्याज दरों में अब कटौती की संभावना को खारिज किया है। इसका मानना है कि महँगाई दर का लक्ष्य 4% पर रखे जाने के कारण पूरे कैलेंडर वर्ष 2017 के दौरान आरबीआई की नीतिगत दरें स्थिर रहेंगी। वहीं इसने आगे चल कर ब्याज दरों में वृद्धि की संभावना भी जतायी है। हालाँकि दरों में वृद्धि की यह संभावना अभी कम है, पर धीरे-धीरे बढ़ रही है।
हालाँकि इसका कहना है कि दिसंबर में आर्थिक गतिविधियों में काफी कमजोरी आने के बाद जनवरी में सुधार हुआ है, पर यह सुधार व्यापक नहीं है और गतिविधियाँ विमुद्रीकरण से पहले के स्तर पर नहीं लौट पायी हैं। मगर मुद्रा का प्रसार बेहतर हुआ है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 1 जनवरी 2017 को प्रचलित मुद्रा जीडीपी के 5.9% जितने निचले स्तर पर थी, जो 10 फरवरी 2017 तक बढ़ कर 7.2% पर पहुँची। नोम्युरा को उम्मीद है कि मार्च 2017 के अंत तक यह अनुपात लगभग 9% का हो जायेगा।
एक अन्य पिछली रिपोर्ट में नोम्युरा ने यह आकलन सामने रखा था कि नोटबंदी के चलते कंपनियों की आय (ईपीएस) पर 3-5% का असर हो सकता है। इसने कहा था कि नोटबंदी के बाद सेंसेक्स ईपीएस के अनुमानों में 3% की कटौती कर दी गयी है, लिहाजा आय अनुमानों को लेकर अब और जोखिम कम ही लगता है। तब इसने अनुमान जताया था कि विकास दर में सुधार आने के साथ-साथ मूल्यांकन अनुपात बढ़ेगा और इसके चलते साल 2017 के अंत तक सेंसेक्स में लगभग 20% की वृद्धि होगी।
आगे घटाये जायेंगे अनुमान?
कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि ये तो अग्रिम अनुमान ही हैं और लगभग तीन महीने बाद जब पूरे साल के अनंतिम (प्रोविजनल) आँकड़े पेश होंगे तो उनमें तीसरी तिमाही के जीडीपी और जीवीए के अनुमान संशोधित कर घटाये जा सकते हैं।
इसका कारण यह हो सकता है कि अग्रिम अनुमान संगठित क्षेत्र के आँकड़ों पर ज्यादा निर्भर होता है, जबकि बाद में ज्यादा व्यापक आँकड़ों को लिया जाता है और उनमें असंगठित क्षेत्र के प्रदर्शन का ज्यादा सटीक आकलन हो पाता है। माना जा रहा है कि नोटबंदी का ज्यादा असर असंगठित क्षेत्र पर हुआ।
दूसरी ओर, अब सवाल है कि क्या चौथी तिमाही में अर्थव्यवस्था तेजी से सामान्य होने की ओर लौटेगी? क्या अब भी यह अंदेशा बाकी रहता है कि नोटबंदी का कुछ असर अगले कारोबारी साल की एक-दो तिमाहियों में भी दिखेगा?
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ऊर्जित पटेल ने हाल में एक साक्षात्कार में दावा किया कि विमुद्रीकरण या नोटबंदी का नकारात्मक प्रभाव बहुत छोटे समय के लिए ही रहने वाला है और देश की अर्थव्यवस्था अंग्रेजी के वी (ङ्क) अक्षर की तरह वापस सँभलेगी। पटेल ने कहा कि पुनर्मुद्रीकरण (रीमॉनेटाइजेशन) की प्रक्रिया तेज गति से चल रही है और 2016-17 की चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) से ही आर्थिक गतिविधियों में तेजी आ जायेगी। पटेल ने कहा कि नोटबंदी से प्रभावित हुई ऐच्छिक उपभोक्ता माँग फिर से सँभलने की उम्मीद है।
इसी दौरान, 7 और 8 फरवरी को आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की दो दिनों की बैठक के जो विवरण सामने आये हैं, उनके मुताबिक इस बैठक में गवर्नर ने यह भरोसा जताया कि तेजी से पुनर्मुद्रीकरण और ऐच्छिक उपभोक्ता माँग वापस लौटने से वित्त वर्ष 2016-17 के अंतिम हिस्से में आर्थिक गतिविधियों में तेजी आयेगी। इस बैठक में मौद्रिक नीति समिति ने नीतिगत ब्याज दरों को नहीं घटाने का फैसला किया। खुद गवर्नर ने भी इस समिति में दरों को नहीं घटाने के पक्ष में मतदान किया।
हाल में आरबीआई और केंद्रीय वित्त मंत्रालय दोनों की तरफ से दावे किये गये कि पुनर्मुद्रीकरण यानी बैंकिंग प्रणाली में पर्याप्त नये नोटों को डालने का काम पूरा हो चुका है और अब नोटों की कोई किल्लत नहीं है। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली शनिवार 25 फरवरी को लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में छात्रों और शिक्षकों को संबोधित करते हुए दावा किया कि नोटबंदी के बाद की व्यवस्था में लंबी अवधि में जीडीपी का आकार कहीं ज्यादा बड़ा होगा।
(निवेश मंथन, मार्च 2017)

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