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जहाँ न पहुँचे बैंक, वहाँ पहुँचा सहारा!

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Category: सिंतंबर 2012

राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक :

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने सेबी के एक निर्णय को सही ठहराते हुए सहारा ग्रुप की दो कंपनियों को 24,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम 15% ब्याज के साथ तीन महीने में निवेशकों को लौटाने के आदेश दिये हैं। इस मुकदमे की कार्रवाई के दौरान ऐसे तथ्य निकल कर आये हैं, जिन्होंने आर्थिक जगत के कई मिथकों को झुठलाते दिख रहे हैं। इन तथ्यों को मानें तो यह भी मानना होगा कि ग्रामीण भारत शहरी भारत से ज्यादा संपन्न है और पूँजी बाजार की ओर ग्रामीण भारत का रुझान देश के शहरी निवेशकों से ज्यादा है। यह बात गले नहीं उतरती। शायद इसीलिए उच्चतम न्यायलय को इस तिलिस्म को भेदने के लिए ज्यादा व्यापक और सख्त आदेश देने पड़े हैं। 

 उच्चतम न्यायालय ने प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण के आदेश को वैध मानते हुए सहारा समूह की दो कंपनियों को न केवल 24,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि तीन महीने की तय समय-सीमा में लौटाने के आदेश दिये हैं, बल्कि इस समूह की दोनों कंपनियों - सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्पोरेशन और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन की ओर से इस भुगतान की प्रक्रिया पर निगरानी रखने के लिए उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधीश बी. एन. अग्रवाल को भी नियुक्त किया है। 

इस आदेश में कहा गया है कि निवेशकों की पहचान प्रक्रिया पूरी होने और भुगतान होने तक ये कंपनियाँ 15% ब्याज समेत पूरी रकम किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में जमा करायें। भविष्य में भुगतान प्रक्रिया में कोई अवरोध नहीं आये, इसके लिए उच्चतम न्यायालय ने सेबी को पर्याप्त अधिकार भी दिये हैं। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि इन दोनों कंपनियों ने वैधानिक नियमों को धत्ता बताते हुए 2008 से 2011 के बीच 2.96 करोड़ निवेशकों से यह अपार धन जमा किया है। 

इन कंपनियों ने अपनी विवरणिका में (प्रॉस्पेक्टस) में बताया था कि इन वैकल्पिक पूर्ण परिवर्तनीय डिबेंचरों (ओएफसीडी) के माध्यम से जुटायी गयी पूँजी का इस्तेमाल टाउनशिप, अपार्टमेंट, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स आदि के अधिग्रहण के लिए और निर्माण गतिविधियों में किया जायेगा। इसके साथ ही इन कंपनियों ने भविष्य में इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं, जैसे पुल, हवाईअड्डे, रेल, विद्युत उत्पादन और पारेषण में निवेश के रास्ते खोल रखे थे। सहारा के इस तिलिस्म के दरवाजे अक्टूबर 2009 में खुलने शुरू हुए, जब समूह की एक कंपनी सहारा प्राइम सिटी ने सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) की अनुमति के लिए दस्तावेज जमा किये। इस दौरान सेबी की नजर समूह की अन्य कंपनियों पर भी गयी। 

सेबी ने समूह की दो कंपनियों के वैकल्पिक परिवर्तनीय डिबेंचरों (ओएफसीडी) के माध्यम से उगाही गयी विशाल राशि को नियमों के विरुद्ध करार दिया और निवेशकों को उनका पैसा लौटाने का आदेश दिया। इस आदेश के खिलाफ सहारा समूह इलाहाबाद उच्च न्यायालय में गया, जिसके बाद सेबी ने उच्चतम न्यायालय की शरण ली। उच्चतम न्यायालय ने सेबी से कहा कि वह प्रतिभूति अपीलीय आधिकरण (सैट) में सहारा की इन कंपनियों के खिलाफ अपील करे। सैट ने सेबी के आदेशों को बरकरार रखा। तब सहारा ने इस निर्णय के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की। लेकिन अगस्त 2012 के अंत में उच्चतम न्यायालय ने सहारा के तर्कों को खारिज कर सेबी के आदेश को बहाल रखा और सेबी को निवेशकों का पैसा न लौटाने की दशा में इन कंपनियों की संपत्ति और बैंक खातों को फ्रीज करने का अधिकार भी दे दिया है।

इस  फैसले के बाद सहारा का कहना है कि आज तक किसी निवेशक ने उसके खिलाफ कोई शिकायत नहीं की है। ऐसे में उसके प्रति इतना अविश्वास ठीक नहीं है। उसने यह रकम ऐसे ग्रामीण क्षेत्रों से उठायी है, जहाँ अब तक बैंक भी नहीं पहुँच पाये हैं। सहारा के इन डिबेंचरों ने देश के सभी आर्थिक अध्ययनों और चिंतनों को झुठला दिया है कि देश के गाँव संपन्न नहीं हैं। इसने यह भी जता दिया कि गाँवों के लोग शहरों से ज्यादा संपन्न हैं और पूँजी बाजार के प्रति उनका रुझान शहरी तबके से ज्यादा है। सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्पोरेशन ने मार्च 2008 में 66 लाख निवेशकों से 19,407 करोड़ रुपये उगाहे। यानी हर ग्रामीण निवेशक से इसने औसतन 30,000 रुपये जुटाये। 

मालूम हो कि देश के शेयर बाजार में 15,500 करोड़ रुपये का सबसे बड़ा सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) सरकारी कंपनी कोल इंडिया का था, जो 2010 में आया था। लेकिन सहारा की इन दो कंपनियों ने ग्रामीण भारत से डिबेंचरों के माध्यम से 24,000 करोड़ रुपये से अधिक की पूँजी जुटा ली। शायद इसी जादुई करिश्मे से सेबी भौंचक्क है। इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय ने इन निवेशकों का पता लगाने की अनिवार्य आवश्यकता जतायी है। 

(निवेश मंथन, सितंबर 2012)

 

संपादकीय

राजेश रपरिया

सलाहकार संपादक

जहाँ न पहुँचे बैंक, वहाँ पहुँचा सहारा!

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने सेबी के एक निर्णय को सही ठहराते हुए सहारा ग्रुप की दो कंपनियों को 24,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम 15% ब्याज के साथ तीन महीने में निवेशकों को लौटाने के आदेश दिये हैं। इस मुकदमे की कार्रवाई के दौरान ऐसे तथ्य निकल कर आये हैं, जिन्होंने आर्थिक जगत के कई मिथकों को झुठलाते दिख रहे हैं। इन तथ्यों को मानें तो यह भी मानना होगा कि ग्रामीण भारत शहरी भारत से ज्यादा संपन्न है और पूँजी बाजार की ओर ग्रामीण भारत का रुझान देश के शहरी निवेशकों से ज्यादा है। यह बात गले नहीं उतरती। शायद इसीलिए उच्चतम न्यायलय को इस तिलिस्म को भेदने के लिए ज्यादा व्यापक और सख्त आदेश देने पड़े हैं।

उच्चतम न्यायालय ने प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण के आदेश को वैध मानते हुए सहारा समूह की दो कंपनियों को न केवल 24,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि तीन महीने की तय समय-सीमा में लौटाने के आदेश दिये हैं, बल्कि इस समूह की दोनों कंपनियों - सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्पोरेशन और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन की ओर से इस भुगतान की प्रक्रिया पर निगरानी रखने के लिए उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधीश बी. एन. अग्रवाल को भी नियुक्त किया है।

इस आदेश में कहा गया है कि निवेशकों की पहचान प्रक्रिया पूरी होने और भुगतान होने तक ये कंपनियाँ 15% ब्याज समेत पूरी रकम किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में जमा करायें। भविष्य में भुगतान प्रक्रिया में कोई अवरोध नहीं आये, इसके लिए उच्चतम न्यायालय ने सेबी को पर्याप्त अधिकार भी दिये हैं। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि इन दोनों कंपनियों ने वैधानिक नियमों को धत्ता बताते हुए 2008 से 2011 के बीच 2.96 करोड़ निवेशकों से यह अपार धन जमा किया है।

इन कंपनियों ने अपनी विवरणिका में (प्रॉस्पेक्टस) में बताया था कि इन वैकल्पिक पूर्ण परिवर्तनीय डिबेंचरों (ओएफसीडी) के माध्यम से जुटायी गयी पूँजी का इस्तेमाल टाउनशिप, अपार्टमेंट, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स आदि के अधिग्रहण के लिए और निर्माण गतिविधियों में किया जायेगा। इसके साथ ही इन कंपनियों ने भविष्य में इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं, जैसे पुल, हवाईअड्डे, रेल, विद्युत उत्पादन और पारेषण में निवेश के रास्ते खोल रखे थे। सहारा के इस तिलिस्म के दरवाजे अक्टूबर 2009 में खुलने शुरू हुए, जब समूह की एक कंपनी सहारा प्राइम सिटी ने सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) की अनुमति के लिए दस्तावेज जमा किये। इस दौरान सेबी की नजर समूह की अन्य कंपनियों पर भी गयी।

सेबी ने समूह की दो कंपनियों के वैकल्पिक परिवर्तनीय डिबेंचरों (ओएफसीडी) के माध्यम से उगाही गयी विशाल राशि को नियमों के विरुद्ध करार दिया और निवेशकों को उनका पैसा लौटाने का आदेश दिया। इस आदेश के खिलाफ सहारा समूह इलाहाबाद उच्च न्यायालय में गया, जिसके बाद सेबी ने उच्चतम न्यायालय की शरण ली। उच्चतम न्यायालय ने सेबी से कहा कि वह प्रतिभूति अपीलीय आधिकरण (सैट) में सहारा की इन कंपनियों के खिलाफ अपील करे। सैट ने सेबी के आदेशों को बरकरार रखा। तब सहारा ने इस निर्णय के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की। लेकिन अगस्त 2012 के अंत में उच्चतम न्यायालय ने सहारा के तर्कों को खारिज कर सेबी के आदेश को बहाल रखा और सेबी को निवेशकों का पैसा न लौटाने की दशा में इन कंपनियों की संपत्ति और बैंक खातों को फ्रीज करने का अधिकार भी दे दिया है।

इस  फैसले के बाद सहारा का कहना है कि आज तक किसी निवेशक ने उसके खिलाफ कोई शिकायत नहीं की है। ऐसे में उसके प्रति इतना अविश्वास ठीक नहीं है। उसने यह रकम ऐसे ग्रामीण क्षेत्रों से उठायी है, जहाँ अब तक बैंक भी नहीं पहुँच पाये हैं। सहारा के इन डिबेंचरों ने देश के सभी आर्थिक अध्ययनों और चिंतनों को झुठला दिया है कि देश के गाँव संपन्न नहीं हैं। इसने यह भी जता दिया कि गाँवों के लोग शहरों से ज्यादा संपन्न हैं और पूँजी बाजार के प्रति उनका रुझान शहरी तबके से ज्यादा है। सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्पोरेशन ने मार्च 2008 में 66 लाख निवेशकों से 19,407 करोड़ रुपये उगाहे। यानी हर ग्रामीण निवेशक से इसने औसतन 30,000 रुपये जुटाये।

मालूम हो कि देश के शेयर बाजार में 15,500 करोड़ रुपये का सबसे बड़ा सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) सरकारी कंपनी कोल इंडिया का था, जो 2010 में आया था। लेकिन सहारा की इन दो कंपनियों ने ग्रामीण भारत से डिबेंचरों के माध्यम से 24,000 करोड़ रुपये से अधिक की पूँजी जुटा ली। शायद इसी जादुई करिश्मे से सेबी भौंचक्क है। इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय ने इन निवेशकों का पता लगाने की अनिवार्य आवश्यकता जतायी है।

(निवेश मंथन, सितंबर 2012)

  • सातवाँ वेतन आयोग कहीं खुशी, कहीं रोष
  • एचडीएफसी लाइफ बनेगी सबसे बड़ी निजी बीमा कंपनी
  • सेंसेक्स साल भर में होगा 33,000 पर
  • सर्वेक्षण की कार्यविधि
  • भारतीय अर्थव्यवस्था ही पहला पैमाना
  • उभरते बाजारों में भारत पहली पसंद
  • विश्व नयी आर्थिक व्यवस्था की ओर
  • मौजूदा स्तरों से ज्यादा गिरावट नहीं
  • जीएसटी पारित कराना सरकार के लिए चुनौती
  • निफ्टी 6000 तक जाने की आशंका
  • बाजार मजबूत, सेंसेक्स 33,000 की ओर
  • ब्याज दरें घटने पर तेज होगा विकास
  • आंतरिक कारक ही ला सकेंगे तेजी
  • गिरावट में करें 2-3 साल के लिए निवेश
  • ब्रेक्सिट से एफपीआई निवेश पर असर संभव
  • अस्थिरताओं के बीच सकारात्मक रुझान
  • भारतीय बाजार काफी मजबूत स्थिति में
  • बीत गया भारतीय बाजार का सबसे बुरा दौर
  • निकट भविष्य में रहेगी अस्थिरता
  • साल भर में सेंसेक्स 30,000 पर
  • निफ्टी का 12 महीने में शिखर 9,400 पर
  • ब्रेक्सिट का असर दो सालों तक पड़ेगा
  • 2016-17 में सुधार आने के स्पष्ट संकेत
  • चुनिंदा क्षेत्रों में तेजी आने की उम्मीद
  • सुधारों पर अमल से आयेगी तेजी
  • तेजी के अगले दौर की तैयारी में बाजार
  • ब्रेक्सिट से भारत बनेगा ज्यादा आकर्षक
  • सावधानी से चुनें क्षेत्र और शेयर
  • छोटी अवधि में बाजार धारणा नकारात्मक
  • निफ्टी 8400 के ऊपर जाने पर तेजी
  • ब्रेक्सिट का तत्काल कोई प्रभाव नहीं
  • निफ्टी अभी 8500-7800 के दायरे में
  • पूँजी मुड़ेगी सोना या यूएस ट्रेजरी की ओर
  • निफ्टी छू सकता है ऐतिहासिक शिखर
  • विकास दर की अच्छी संभावनाओं का लाभ
  • बेहद लंबी अवधि की तेजी का चक्र
  • मुद्रा बाजार की हलचल से चिंता
  • ब्रेक्सिट से भारत को होगा फायदा
  • निफ्टी साल भर में 9,200 के ऊपर
  • घरेलू बाजार आधारित दिग्गजों में करें निवेश
  • गिरावट पर खरीदारी की रणनीति
  • साल भर में 15% बढ़त की उम्मीद
  • भारतीय बाजार का मूल्यांकन ऊँचा
  • सेंसेक्स साल भर में 32,000 की ओर
  • भारतीय बाजार बड़ी तेजी की ओर
  • बाजार सकारात्मक, जारी रहेगा विदेशी निवेश
  • ब्रेक्सिट का परोक्ष असर होगा भारत पर
  • 3-4 साल के नजरिये से जमा करें शेयरों को
  • रुपये में कमजोरी का अल्पकालिक असर
  • साल भर में नया शिखर
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