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कैसे बुना जाता है एमएलएम का जाल

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Category: दिसंबर 2012

मल्टी लेवल मार्केटिंग और नये निवेशकों के पैसे से पुराने निवेशकों को पैसे चुकाते रहने वाली योजनाओं को पोंजी योजना भी कहा जाता है।

दरअसल ऐसी योजनाओं को यह नाम मिला इटली के कारोबारी चाल्र्स पोंजी की वजह से, जो पहली बार बड़े पैमाने पर इस तरह की ठगी से चर्चा में आया था। पोंजी ने 1920 के दशक में ऐसी योजना चलायी थी। उसने अपने ग्राहकों को केवल 45 दिनों में 50% फायदा या 90 दिनों में पैसा दोगुना करने का लालच दिया था। वह दूसरे देशों के पोस्टल कूपन खरीदने का झाँसा देता था। वास्तव में वो नये निवेशकों की रकम से पुराने निवेशकों को पैसे लौटाता जाता था। हालांकि पोंजी से काफी पहले 19वीं शताब्दी में विलियम एम मिलर ने भी इसी तरह की योजना शुरू की थी। चाल्र्स डिकेंस के कुछ उपन्यासों में भी इसी तरह की योजनाओं का जिक्र आता है। मतलब साफ है कि लोगों को इस तरह टोपी पहनाने का खेल बहुत पुराना है।
दुनिया भर में पोंजी या मल्टी लेवल मार्केटिंग योजनाओं का ढाँचा पिरामिड की तरह होता है। पहले एक आदमी एमएलएम योजना शुरू करके अपने साथ कुछ लोगों को जोड़ता है। नये निवेशक कुछ और निवेशक लाते हैं और एक श्रृंखला बनती जाती है। नये निवेशकों के पैसे से पुराने निवेशकों को पैसे लौटाने और कमीशन देने का सिलसिला चलता रहता है। लेकिन एक सीमा के बाद यह सिलसिला धीमा पड़ते ही पैसे का प्रवाह टूट जाता है और पिरामिड ढह जाता है। इसमें पिरामिड के ऊपर के लोग मोटा मुनाफा कमा लेते हैं, लेकिन फँस जाते हैं पिरामिड की सबसे निचली सतह के निवेशकों को। अमेरिकी शेयर बाजार नैस्डैक के पूर्व गैर कार्यकारी चेयरमैन बर्नार्ड मेडॉफ की पोंजी योजना हाल के वर्षों में बहुत चर्चित रही। मेडॉफ के घोटाले का भंडाफोड़ 2009 में हुआ था। उसने अपनी पोंजी योजना से हजारों निवेशकों को करीब 65 अरब डॉलर का चूना लगाया।
(निवेश मंथन, दिसबंर 2012)

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