शेयर मंथन सर्वेक्षण
जनवरी 2012 में शेयर बाजार के दिग्गज विशेषज्ञों के सर्वेक्षण पर हमारी आमुख कथा का शीर्षक था - कहीं पास ही है तलहटी। लेकिन आज पलट कर देखें तो पता चलता है कि तब बाजार अपनी तलहटी के आसपास नहीं था, बल्कि ठीक उसी समय दिसंबर के अंतिम हफ्ते में तलहटी बना कर आगे बढ़ा था।
हमारे सहयोगी समाचार पोर्टल शेयर के उस सर्वेक्षण में दिग्गजों की राय का औसत अनुमान यह था कि जून 2012 के अंत में सेंसेक्स 16,000 के पास और निफ्टी 4900 के पास होगा। जून के अंत में तो नहीं, लेकिन जून की शुरुआत में सेंसेक्स जरूर 16,000 के पास नजर आया। अब अगले छह और 12 महीनों के दौरान बाजार की चाल के बारे में बाजार के दिग्गज जानकार क्या सोच रहे हैं, इसे जानने के लिए शेयर मंथन ने फिर से सर्वेक्षण किया है। इस ताजा सर्वेक्षण में बाजार के 52 दिग्गज जानकारों ने हिस्सा लिया है और इस लिहाज हम फिर से कह सकते हैं कि यह भारतीय शेयर बाजार का सबसे बड़ा सर्वेक्षण है। आइये देखते हैं इसके नतीजे।
बाजार की मौजूदा हालत और उसे लेकर निवेशकों के रुख पर हमारे सर्वेक्षण में एक बड़ी दिलचस्प तुलना आईडीएफसी सिक्योरिटीज के एमडी निखिल वोरा ने दी है। उन्होंने मर्लिन मुनरो का यह कथन याद दिलाया है कि ‘मैं स्वार्थी, अधीर और थोड़ा असुरक्षित महसूस करने वाली हूँ। मैं नियंत्रण से बाहर हूँ और कभी-कभी मुझे झेलना मुश्किल होता है। पर यदि आप मुझे मेरे सबसे बुरे क्षणों में नहीं झेल सकते तो आप मेरे सर्वोत्तम क्षणों के हकदार भी नहीं हैं।'
बहरहाल, अगर हम शेयर बाजार की छह महीने पहले और आज की तुलना करें तो बाजार की धारणा कुछ हद तक एक जैसी दिखती है। इस साल की शुरुआत में भी बाजार की उम्मीदें ठंडी ही थीं और कुछ वही हाल आज भी है। लेकिन इस बीच बाजार ने उतार-चढ़ाव के कई दौर भी देख लिये। इस साल की शुरुआत में जानकारों के बीच यह अंदेशा बना हुआ था कि बाजार में और भी गिरावट की गुंजाइश बाकी है। तब ज्यादातर जानकारों की सोच यह थी कि बाजार पहले मार्च से जून 2012 तक किसी समय तलहटी बनायेगा और उसके बाद सँभलेगा। लेकिन वास्तव में तलहटी तो पिछले साल दिसंबर 2011 के अंतिम हफ्ते में ही बन गयी।
बाजार ने जनवरी-फरवरी 2012 के दौरान ही शानदार तेजी दिखा दी, जबकि लोगों का अंदाजा था कि साल 2012 की दूसरी छमाही में तेजी मिलेगी। लेकिन जनवरी-फरवरी की उस तेजी का टिक पाना संभव नहीं हो पाया और हाल में जून तक बाजार कमोबेश उन्हीं स्तरों पर आ गया, जिनके अनुमान हमें जनवरी 2012 के सर्वेक्षण में मिले थे।
जून 2012 के अंत में सेंसेक्स-निफ्टी के लक्ष्य को लेकर पिछले सर्वेक्षण में जिन विशेषज्ञों के अनुमान काफी हद तक सटीक रहे, उनमें अजय बग्गा, अंबरीश बालिगा, अनिल मंगनानी, अशोक अग्रवाल, डी प्रसाद, गजेंद्र नागपाल, हेमेन कपाडिय़ा, के के मित्तल, कुणाल सरावगी, मनसिजे मिश्र, पी एन विजय, शर्मिला जोशी, सिमि भौमिक और सुनील मिंगलानी जैसे नाम रहे।
दिसंबर 2012 : बस ठंडी-सी आशा
ताजा सर्वेक्षण में सबसे पहला सवाल यही रहा कि अगले छह महीनों में, यानी दिसंबर 2012 के अंत में सेंसेक्स और निफ्टी कहाँ होंगे। सर्वेक्षण में शामिल 52 दिग्गज जानकारों की राय का औसत अनुमान यह निकला है कि दिसंबर 2012 के अंत में सेंसेक्स 17,995 पर होगा। अगर जून 2012 के अंत में सेंसेक्स के स्तर 17,430 से तुलना करें तो यह 3.2% की बढ़त दिखाता है।
जनवरी 2012 के सर्वेक्षण में दिसंबर 2012 के लिए सेंसेक्स का लक्ष्य 18,144 का था। ताजा लक्ष्य इसके पास ही 17,995 का है। इससे यही लगता है कि इन छह महीनों में भविष्य के अनुमानों को लेकर बाजार की सोच में ज्यादा फर्क नहीं आया है। कम-से-कम अगले छह महीनों के बारे में तो यही दिख रहा है।
इसी तरह निफ्टी पर नजर डालें तो ताजा सर्वेक्षण में दिसंबर 2012 के अंत में निफ्टी का लक्ष्य 5484 का है। यह जून 2012 के बंद स्तर 5279 से 3.9% ज्यादा है। सेंसेक्स और निफ्टी के इन अनुमानों से स्पष्ट है कि दिग्गज जानकार अगले छह महीनों में बाजार की स्थिति में कोई नाटकीय सुधार आने की उम्मीद नहीं कर रहे हैं। दिसंबर 2012 के लिए निफ्टी का 5484 का ताजा लक्ष्य भी जनवरी 2012 के सर्वेक्षण में मिले 5446 के लक्ष्य के आसपास ही है।
कितनी उम्मीद, कितना जोखिम?
निफ्टी के लिए दिसंबर 2012 यानी अगले छह महीनों के बाद का लक्ष्य तो 5484 का है, लेकिन इन छह महीनों के दौरान निफ्टी ऊपर कहाँ तक चढ़ सकता है औरनीचेकहाँतकफिसलसकताहै? मोटी बात यह कि इस अवधि में ऊपर कितनी उम्मीद रखी जा सकती है औरनीचेकितनाजोखिमदिखताहै?
सर्वेक्षण में शामिल दिग्गजों की राय का औसत देखें तो निफ्टी दिसंबर 2012 तक 5702 के शिखर को छू सकता है। गौरतलब है कि जनवरी 2012 के सर्वेक्षण में भी साल 2012 के दौरान निफ्टी का शिखर 5736 पर बनने का अनुमान सामने आया था, जो 5702 के मौजूदा अनुमान के करीब ही था। यानी फिर कहा जा सकता है कि इन छह महीनों में बाजार की सोच में ज्यादा फर्क नहीं आया है।
लेकिन कुछ फर्क दिखता है गिरावट की गुंजाइश के मामले में। जनवरी के सर्वेक्षण में निफ्टी की साल 2012 की तलहटी 4148 पर बनने का अनुमान सामने आया था। ताजा सर्वेक्षण में निफ्टी की तलहटी का यह अनुमान करीब 500 अंक ऊपर खिसक आया है। इस ताजा सर्वेक्षण में 2012 की तलहटी का औसत अनुमान 4659 पर है। इस नजरिये से बाजार अब थोड़ा आश्वस्त नजर आ रहा है और चिंताएँ पहले से कुछ तो हल्की पड़ी हैं।
जून 2013 : एक कदम और आगे
अगर यहाँ से साल भर बाद, यानी जून 2013 की बात करें तो बाजार की उम्मीदें थोड़ी और ऊपर खिसकती हैं, लेकिन ठंडे अंदाज में ही। जून 2013 के लिए सेंसेक्स का औसत लक्ष्य 19,179 का है, जो जून 2012 के बंद स्तर से केवल 10% ऊपर है। वहीं निफ्टी का लक्ष्य जून 2013 के लिए 5793 पर है, जो जून 2012 की तुलना में 9.7% ऊपर है। मोटे तौर पर यह जरूर लगता है कि अगले छह महीनों का लक्ष्य मौजूदा स्तर से थोड़ा आगे, और वहाँ से उसके बाद के छह महीनों का लक्ष्य भी थोड़ा और ऊपर है।
यहाँ अगर औसत के बदले बहुमत की राय देखी जाये तो तस्वीर में ज्यादा फर्क नहीं आता। सबसे ज्यादा 54% जानकारों की राय में जून 2013 के अंत में सेंसेक्स 18,001-20,000 के बीच रहेगा, जबकि 20,001-22,000 के बीच पहुँचने की उम्मीद 22% जानकारों को है। इसी तरह निफ्टी के मामले में 60% जानकारों ने जून 2013 तक 5501-6000 के बीच के लक्ष्य दिये हैं और 20% प्रतिभागियों की राय में निफ्टी उस वक्त 6001-6500 के बीच होगा।
इन आँकड़ों से लगता है कि दिसंबर 2012 और जून 2013 के बीच बाजार की स्थिति थोड़ी बेहतर होने की उम्मीद है। दरअसल 8८.५% जानकारों ने दिसंबर 2012 के लिए निफ्टी के लक्ष्य 5001-6000 के बीच दिये हैं। लेकिन जून 2013 के लिए 80% जानकारों के लक्ष्य 5501-6500 के बीच हैं। यानी तीन-चौथाई से ज्यादा लोगों की उम्मीदें इन छह महीनों के बीच करीब 500 अंक ऊपर खिसक जा रही हैं।
सबसे बड़ी चिंताएँ और उम्मीदें
इस तरह बाजार में सीमित रूप से सकारात्मक रुझान की उम्मीद का पता चलता है। लेकिन इन ठंडे लक्ष्यों के साथ-साथ हमें ज्यादातर जानकारों से यह भी सुनने को मिला कि अगर केंद्र सरकार नीतियों और आर्थिक सुधार के मोर्चे पर ठोस कदम उठाना शुरू करे तो स्थिति बदल सकती है।
सरकार का नीतिगत लकवा बाजार में सबसे ज्यादा प्रचलित मुहावरा बन चुका है, जो सर्वेक्षण में शामिल तकरीबन हर विश्लेषक के मुताबिक भारतीय बाजार के लिए इस समय की सबसे बड़ी चिंताओं में से एक है। बाजार की इसी भावना को निवेश सलाहकार गुल टेकचंदानी कुछ इन शब्दों में बयान कर रहे हैं कि 'सरकार काम नहीं कर रही, सब छुट्टी पर हैं।' मगर इसी के साथ यह उम्मीद भी जुड़ी है कि अगर सरकार अपनी इस बीमारी से छुटकारा पा कर कुछ ठोस और वांछित फैसले ले सके तो बाजार में इससे नया उत्साह पैदा होने लगेगा।
इसके अलावा महँगाई, सरकारी घाटा, रुपये की कमजोरी, विकास दर में धीमापन जैसे मसले भी बाजार को परेशान कर रहे हैं। विश्व अर्थव्यवस्था और खास कर यूरोप की स्थिति भी स्वाभाविक रूप से बाजार की बड़ी चिंताओं में शामिल है।
दूसरी ओर जानकारों की नजर इस बात पर भी है कि इन सारी चिंताओं के चलते भारतीय शेयर बाजार का मूल्यांकन सस्ता है। यह सस्ता मूल्यांकन इस समय बाजार के लिए एक बड़े सकारात्मक पहलू के रूप में गिना जा रहा है। जैसा कि आईसीआईसीआई डायरेक्ट के रिसर्च प्रमुख पंकज पांडेय कह रहे हैं, 'बाजार काफी अच्छे मूल्यांकन पर भी है, क्योंकि जो चिंताएँ हैं उनका असर कुछ ज्यादा ही हो गया है।' बहुत-से जानकारों की ऐसी ही राय बन रही है। इसीलिए मौजूदा स्तर से ज्यादा तीखी गिरावट की आशंका कम लगती है।
हाल में कमोडिटी और खास कर कच्चे तेल के दाम घटने से भी राहत महसूस की जा रही है। विकास दर कुछ धीमी पडऩे के बावजूद घरेलू खपत पर निर्भर कंपनियों को लेकर बाजार में ज्यादा भरोसा दिखता है। काफी विश्लेषकों ने घरेलू खपत मजबूत रहने को भारतीय बाजार की प्रमुख सकारात्मक बातों में गिना है। फ्यूचर कैपिटल के जितेंद्र पांडा की यह टिप्पणी कई विश्लेषकों की भावना को व्यक्त करती है कि धीमी पड़ती विश्व अर्थव्यवस्था में भी भारत की विकास दर ऊँचे स्तरों पर कायम है।
(निवेश मंथन, अगस्त 2012)