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- Category: अगस्त 2011
राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक
लालच एक ऐसी बला है जो व्यक्ति का विवेक देखते-देखते ही हर लेती है। लालच के दुष्परिणामों को लेकर अनेक कथाएँ हैं, जो हमने बचपन से सुनी हैं। अज्ञानियों की बातें छोड़ें, बड़े-बड़े अनुभवी जानकार और विशेषज्ञ माने जाने वाले शख्स भी आये दिन लालच के चंगुल में फँस जाते हैं। दुनिया ने जितनी तरक्की की है, तकनीक जितनी ही उन्नत हो रही है, लालच का जाल उतना ही घना होता जा रहा है।
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आखिर निवेशकों के हितों की हमेशा दुहाई देने वाले भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) का अपना खर्च निवेशकों की शिक्षा पर कितना होता है? एक व्यक्ति ने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करके सेबी से यह जानकारी मांगी।
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शेयर ब्रोकिंग
तकरीबन सभी क्षेत्रों पर पिछले कारोबारी चौथी तिमाही में कम या ज्यादा दबाव दिखा है, लेकिन शेयर ब्रोकिंग कंपनियों पर इस समय दोहरा दबाव दिख रहा है। जो शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियाँ हैं, उनका दबाव तो उनके तिमाही नतीजों में झलक ही रहा है। बाजार के बाकी खिलाड़ी भी बातचीत में उस दबाव का आभास दे देते हैं। हाल में कई ब्रोकिंग फर्मों ने काफी छँटनियाँ भी की हैं। लागत घटाने के लिए उन्होंने अपनी कई शाखाओं को बंद भी किया है। हालाँकि ग्राहकों से बातचीत में उन्हें यही कहा गया कि उनकी शाखा को एक अन्य शाखा के साथ मिला दिया गया है। मगर कुल मिला कर शाखाओं की संख्या में कमी ही इसका मुख्य मकसद रहा है। इस साल फरवरी के बाद से इंडियाबुल्स ने अपनी कई शाखाओं का विलय किया।
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अगस्त 2010 से लटका हुए कैर्न वेदांत सौदे को आखिरकार हरी झंडी मिल गयी। थोड़ा अनिल अग्रवाल झुके, ब्रिटेन की कंपनी कैर्न एनर्जी पीएलसी भी थोड़ा झुकी और सरकार का आशीर्वाद मिल गया। वैसे तो नये समझौते में कैर्न के साथ यह सौदा वेदांत समूह के लिए 60 करोड़ डॉलर सस्ता हो गया, लेकिन पहले सरकारी आशीर्वाद के बिना यह सौदा कर डालना कितना महँगा पड़ा, यह तो अनिल अग्रवाल ही जानते होंगे!
इस बीच अप्रैल 2011 में भारत का औद्योगिक उत्पादन (आईआईपी) 6.3% की दर से बढ़ा। यह दर आधार वर्ष (बेस ईयर) बदलने के बाद की है। अगर पुराने आधार वर्ष के मुताबिक देखें तो अप्रैल में आईआईपी 4.4% बढ़ी, जो जानकारों के अनुमान से कुछ कम ही रही। हालाँकि नये आधार वर्ष से तय किये गये आँकड़ों को जानकार औद्योगिक उत्पादन की ज्यादा बेहतर तस्वीर मान रहे हैं।
थोड़े धीमे विकास के बीच ऊँची महँगाई दर और ऊँची ब्याज दर के इस दौर में बाजार और सरकार का चिंता में पडऩा लाजिमी है।
(निवेश मंथन, अगस्त 2011)
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आज भले ही अर्थव्यवस्था की धीमी पड़ती रफ्तार को लेकर चिंता हो रही हो, लेकिन भविष्य अब भी सुनहरा ही दिख रहा है। भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगा, यह भविष्यवाणी करने वालों में अब स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक भी शामिल हो गया है।
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जनवरी-मार्च 2011 यानी बीते कारोबारी साल की चौथी तिमाही के नतीजों में बाजार को खुशी कम मिली, झटके ज्यादा मिले। इसकी शुरुआत तो इन्फोसिस से ही हो गयी, जिसके नतीजों के साथ हर तिमाही नतीजों के मौसम की एक तरह से शुरुआत मानी जाती है। ऐसे कुछ खास नामों पर नजर, जिन्होंने बाजार को मायूस या खुश किया।
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साल 2010-11 की चौथी तिमाही में ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन लिमिटेड का मुनाफा 26' घट गया। जनवरी-मार्च 2011 के दौरान कंपनी का मुनाफा 2,790.86 करोड़ रुपये रहा, जबकि पिछले साल की समान तिमाही में यह 3,776.41 करोड़ रुपये रहा था।
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बाजार को झटका देने वाले तिमाही नतीजों में शायद एसबीआई के नतीजे को सबसे ऊपर रखा जा सकता है। जनवरी-मार्च 2011 तिमाही में बैंक का मुनाफा केवल 20.88 करोड़ रुपये रहा, जबकि इसे पिछले कारोबारी साल की समान तिमाही में 1866.60 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था।
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