विनोद शर्मा, पीसीजी प्रमुख, एचडीएफसी सिक्योरिटीज :
निफ्टी-50 हाल में 26 अप्रैल को अपने अब तक के 22 वर्षों के सबसे उच्च स्तर 9,352 पर बंद हुआ।
इसके अगले दिन समाचार पत्रों में दिख रही सुर्खियाँ कई निवेशकों को इस डर से मुनाफावसूली की ओर ले जा सकती हैं कि बाजार अपने उचित स्तरों से आगे निकल गया है। वैसे मुनाफावसूली करना कोई पाप नहीं है। मगर एक नयी ऊँचाई पर पहुँच जाने के कारण बाजार में गिरावट आ जायेगी, इस डर से शेयरों से बाहर निकल जाना संभवत: एक सही निर्णय नहीं होगा। भले ही निफ्टी नये उच्चतम स्तरों पर चल रहा है, पर इसमें घबराने वाली कोई बात नहीं है।
हम तो केवल 9,000 के ऊपर दोबारा वापस आये हैं। निफ्टी ने पहली बार 4 मार्च 2015 को 9,000 का आँकड़ा पार किया था। तब से निफ्टी गिरावट के दौर में था और वापस उन स्तरों से ऊपर इस साल मार्च में ही आ सका है। इसलिए ऊँचाई से डरने वाला व्यक्ति बनने की जरूरत नहीं है।
अगस्त 2015 में युआन का अवमूल्यन हुआ था। जनवरी 2016 में चीन का शेयर बाजार टूटा था। जून 2016 में यूरोपीय संघ से बाहर आने के लिए ब्रिटेन में जनमत संग्रह हुआ था। और फिर, नोटबंदी के कारण नवंबर-दिसंबर 2016 में नकदी की कमी हो गयी थी। हमने 2015 में कमजोर मॉनसून के चलते केवल 86% वर्षा की स्थिति भी झेली थी। हम अतीत में बहुत अधिक प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद यहाँ तक पहुँचे हैं।
वित्त वर्ष 2013-14 से 2016-17 के बीच कंपनियों की आय में कोई खास वृद्धि नहीं हुई है। निफ्टी की प्रति शेयर आय (ईपीएस) केवल 1त्न ही ऊपर चढ़ सकी है। 2008-2017 के बीच निफ्टी आय केवल 4% वार्षिक चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ी है, जबकि इससे पहले 2001 से 2008 के बीच आय में 21% वार्षिक चक्रवृद्धि दर से बढ़ोतरी हुई थी। इस तरह के बहुत कठिन समय से गुजर जाने के बाद अभी बाजार में बने रहना ही तर्कसंगत है।
आय का यह सूखा जल्द ही समाप्त होने वाला है। चालू और अगले वित्त वर्ष में निफ्टी आय 20% सीएजीआर तक बढऩे की संभावना है। इसलिए अगर आप इस समय बाजार से निकल जाना चाहते हैं, तो इसका मतलब है कि आप ट्रेन के तेजी पकडऩे से ठीक पहले ही इससे उतर जायेंगे। जब आय में वृद्धि होती है तो मूल्य-आय (पीई) अनुपात गिरता है, जो शेयरों को आकर्षक बनाता है।
भारत ही है विकास की जगह
आईएमएफ ने भारतीय अर्थव्यवस्था में कैलेंडर वर्ष 2017 में 7.2% और वर्ष 2018 में 7.70% की दर से विकास होने की उम्मीद जतायी है, जो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज वृद्धि दर है। वहीं आईएमएफ ने चीन की विकास दर 2017 में 6.5% और 2018 में 6% रहने की संभावना जतायी है। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि भारत अब विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के लिए एक प्रमुख आकर्षण स्थल है।
एफआईआई ने नवंबर 2016 से जनवरी 2017 तक बिकवाली की थी, मगर फरवरी 2017 से वे आक्रामक खरीदार बन गये हैं। डॉलर का आवक से रुपये को मजबूती मिल रही है। रुपये की मजबूती उनके निवेश पर मिलने वाले लाभ को और अधिक आकर्षक बना रही है। इससे एफआईआई अब दोहरा लाभ उठा रहे हैं। एक तरफ शेयरों की कीमतों में उच्च प्रतिफल और साथ में कमजोर डॉलर के कारण वह प्रतिफल और ऊँचा हो जा रहा है।
इस साल की पहली तिमाही में निफ्टी में 12.07% की मजबूती आयी है। मगर डॉलर में देखें तो इसका प्रतिफल 17.45% है। एफआईआई को पिछले पाँच सालों में इतना लाभ कभी नहीं मिला। वास्तव में, इस तिमाही में रुपये में 4.5% मजबूती आने के कारण एफआईआई को निफ्टी में 20 तिमाहियों का सबसे बेहतर प्रतिफल मिला है।
भारत की बेहतर जनसांख्यिकी, आधार संख्या पर आधारित आय कर संग्रह और सब्सिडी हस्तांतरण, राजनीतिक स्थिरता, कच्चे तेल की स्थिर कीमतों और रुपये में मजबूती से निवेश के लिए अच्छा माहौल तैयार होगा।
उत्तर प्रदेश और हाल ही में संपन्न एमसीडी चुनावों में विशाल राजनीतिक जनादेश से यह संकेत मिलता है कि वर्तमान केंद्र सरकार के लिए जनता का भारी समर्थन है। वास्तव में यह समर्थन मई 2014 के बाद से बढ़ा ही है। पिछले तीन वर्षों में बढ़े इस जन-समर्थन ने वैश्विक निवेशकों को यह भरोसा दिलाया है कि सरकार सुधारों की दिशा में मजबूत कदम उठायेगी।
अमेरिका में कर की दरों में भारी कटौती की घोषणा की गयी है। जब यह कटौती लागू होगी तो इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था में वृद्धि का नया दौर शुरू होगा। इससे हमारी सरकार की सोच भी प्रभावित होगी। हमारी सरकार ने पहले ही बजट में कर की दरें घटाने का प्रस्ताव रखा है।
आगे हमें अपने बाजार के लिए अच्छे दिनों की उम्मीद है। बैंकों के फँसे कर्जों (एनपीए) का समाधान इन्हें और अधिक ऋण देने में सक्षम बनायेगा और जोखिम उठाने की उनकी क्षमता को बेहतर करेगा। खुदरा निवेशकों का पैसा जिस तरह से बाजार में आ रहा है, उसमें आगे चल कर तब और बढ़ोतरी होगी जब सरकार काले धन पर और अधिक सख्ती करेगी।
इन्हीं बातों के मद्देनजर इस साल के लिए निफ्टी का मेरा लक्ष्य 10,340 का है।
(निवेश मंथन, मई 2017)