सुशांत शेखर :
बीमा क्षेत्र के नियामक बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) की सख्ती ने बीमा की दुनिया बदल दी है।
एक अक्टूबर 2013 से स्वास्थ्य बीमा योजनाओं, उच्चतम एनएवी गारंटी योजनाओं और यूनिट लिंक्ड प्रॉडक्ट्स (यूलिप) से संबंधित नियमों में कुछ बदलाव लागू हो गये हैं, जबकि नये कलेवर वाले जीवन बीमा उत्पादों से संबंधित नियम एक जनवरी 2014 से लागू होंगे। पहले ये दिशा-निर्देश भी एक अक्टूबर 2013 से लागू किये जाने थे, लेकिन इरडा ने यह समय-सीमा तीन महीने के लिए आगे बढ़ा दी ताकि जीवन बीमा कंपनियों को बाजार में नये नियमों के अनुपालन वाले उत्पाद उतारने के लिए पर्याप्त समय मिल जाये। नये नियम लागू होने के बाद बीमा योजनाएँ अधिक पारदर्शी और ग्राहक हितैषी हो जायेंगी। यही नहीं, लुभावने वादे कर बीमा उत्पाद बेचने वाले बीमा एजेंटों पर भी कुछ सीमा तक लगाम लगने की उम्मीद है। आइए देखते हैं कि इरडा के नये दिशा-निर्देशों में क्या है और इससे बीमा ग्राहकों को किस तरह लाभ होने वाला है।
न्यूनतम सरेंडर वैल्यू
इरडा के नये नियमों के तहत पारंपरिक बीमा योजनाओं में ग्राहकों को एक गारंटीड सरेंडर वैल्यू देना होगा। पुराने नियमों में ऐसा नहीं था। इसी तरह बीमाधारकों द्वारा आत्महत्या के मामले में कंपनियों को अदा किये गये प्रीमियम का 80% या सरेंडर वैल्यू, इनमें से जो भी अधिक हो, देना होगा। पहले कंपनियां अपनी मर्जी से सरेंडर वैल्यू तय करती थीं। अब ग्राहक चाहे तो पॉलिसी के दूसरे साल में ही सरेंडर कर सकता है। पहले कम-से-कम तीन साल प्रीमियम भरने के बाद ही पॉलिसी सरेंडर करनी संभव थी।
एक समान सम एश्योर्ड
नये नियमों के तहत पारंपरिक बीमा योजनाओं में न्यूनतम सुनिश्चित राशि यानी सम एश्योर्ड का फॉर्मूला तय कर दिया गया है। सम एश्योर्ड मृत्यु लाभ (डेथ बेनेफिट) या परिपक्वता (मैच्योरिटी) के तौर पर दिये जाते हैं। मनी बैक और टर्म प्लान पर कंपनियों को न्यूनतम डेथ बेनिफिट तय होगा। अभी ऐसे उत्पादों पर न्यूनतम डेथ बेनिफिट तय नहीं था। रेगुलर प्रीमियम वाली बीमा योजनाओं के ग्राहकों को डेथ बेनिफिट के तौर पर अदा किये गये प्रीमियम का 105% या
सालाना प्रीमियम का 10 गुना या . न्यूनतम गारंटीड सम एश्योर्ड, में से जो भी अधिक हो, देना होगा। एकल प्रीमियम योजनाओं के मामले में डेथ बेनेफिट के तौर पर अदा किये गये सिंगल प्रीमियम का 125% या न्यूनतम गारंटीड सम एश्योर्ड, में से जो भी अधिक हो, देना होगा। इसके पहले कंपनियाँ सम एश्योर्ड के तौर पर सालाना प्रीमियम के 5 से 8 गुना के बराबर ही चुकाती थीं। लेकिन नये नियमों के तहत बीमा कंपनियों को सालाना प्रीमियम के कम से कम 10 गुना के बराबर रकम चुकानी होगी।
एजेंटों पर लगाम
नये नियमों के तहत इरडा ने बीमा एजेंटों को दिये जाने वाले कमीशन का फॉर्मूला तय कर दिया है। बीमा एजेंटों को दिया जाने वाला कमीशन अब बीमा पॉलिसी की अवधि पर आधारित होगा। इसके पहले कंपनियाँ अपने हिसाब से कमीशन तय करती थीं। नये नियमों के तहत एजेंटों को विभिन्न योजनाओं की बिक्री पर 2% से 35% के बीच कमीशन मिलेगा।
नये नियमों के तहत 5 साल तक की अवधि वाली योजनाओं की बिक्री पर पहले साल में प्रीमियम के 15% से अधिक कमीशन नहीं दिया जा सकेगा। वहीं 10 साल तक की अवधि वाली योजनाओं की बिक्री पर पहले साल में मिलने वाला कमीशन अधिकतम 30% होगा। बारह साल या इससे अधिक अवधि की योजना बेचने पर पहले साल में मिलने वाला कमीशन अदा प्रीमियम के 35% से अधिक नहीं होगा।
एजंटों को कम कमीशन दिये जाने से ग्राहकों की अधिक रकम का निवेश होगा, ऐसे में उनको अधिक रिटर्न मिल सकेगा। नये नियमों के तहत यूलिप योजनाओं पर कर्ज नहीं दिया जा सकेगा। पुराने नियमों के तहत यूलिप पर 5 साल के बाद कर्ज मिल सकता था। इसके अलावा, बीमा कंपनियाँ अब उच्चतम एनएवी वाली योजनाएँ नहीं शुरू कर सकेंगी। उच्चतम एनएवी वाली योजनाएँ दरअसल यूलिप योजनाएँ ही थीं और इनकी मार्केटिंग गारंटीड उच्चतम एनएनवी वाले उत्पादों के तौर पर की गयी थी।
नये नियमों के तहत बीमा कंपनियों के एजेंटों को अब ग्राहकों को 4% और 6% की दर से ही रिटर्न समझाना होगा। अब तक एजेंट 6% और 10% की दर से रिटर्न समझाते थे, जो मौजूदा माहौल के लिहाज से वास्तविक नहीं था। साफ है एजेंट अब यूलिप, पेंशन या अन्य योजनाओं के तहत रिटर्न के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर दावे नहीं कर सकेंगे।
बेहतर स्वास्थ्य बीमा
जीवन बीमा की तरह स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के क्षेत्र में भी बड़े बदलाव हुए हैं। एक अक्टूबर से नये नियमों के लागू होने के बाद स्वास्थ्य योजनाएँ बेहतर हो गयी हैं। इनसे ग्राहक, थर्ड पार्टी ऐडमिनिस्ट्रेटर (टीपीए) और बीमा कंपनियों के बीच विवाद कम होने की उम्मीद है।
नये नियमों का सबसे ज्यादा फायदा वरिष्ठ नागरिकों को होगा, क्योंकि उन्हें 65 साल की उम्र तक हेल्थ कवर मिल सकेगा। यही नहीं, कंपनियों को ताउम्र पॉलिसी का नवीनीकरण करना होगा। अभी बीमा कंपनियाँ बहाने खोज कर एक उम्र के बाद पॉलिसी का नवीनीकरण नहीं करती हैं। इसके अतिरिक्त, वरिष्ठ नागरिकों के दावों को जल्दी-से-जल्दी निपटाने के लिए अलग डेस्क भी बनाया जायेगा।
इसके अलावा बीमा कंपनियाँ अपनी मर्जी से बीमा के दावे (इंश्योरेंस क्लेम) खारिज नहीं कर पायेंगी, क्योंकि कुल 46 अहम शब्दों की परिभाषा सभी कंपनियों के लिए तय होगी। कंपनियों को 30 दिनों के भीतर दावे का निबटारा करना होगा। दावा खारिज करने या मंजूर करने का अधिकार केवल बीमा कंपनियों के पास ही होगा। टीपीए के पास यह अधिकार नहीं होगा। कंपनियाँ तीन महीने की पूर्व सूचना के बिना योजनाओं में बदलाव नहीं कर पायेंगी। साथ ही 11 गंभीर बीमारियों की एक मानक सूची होगी। पहले कंपनियाँ अपनी मर्जी से गंभीर बीमारियों की अपनी सूची बना कर खुद ही शर्तें जोड़ती थीं।
किन खर्चों के बदले दावा मिलेगा और कौन से खर्च शामिल नहीं होंगे, यह पहले से ही साफ होने से विवाद कम होंगे। कंपनियाँ एक बार दावे का भुगतान लेने पर प्रीमियम की रकम बढ़ा देती थीं। लेकिन अब वे ऐसा नहीं कर पायेंगी।
एक से ज्यादा पॉलिसी होने पर कंपनियों के बीच कॉन्ट्रिब्यूशन क्लॉज नहीं होगा। कंपनियाँ पहले क्लेम आने पर एक दूसरे के साथ दावे के भुगतान में साझेदारी करती थीं। इसके अतिरिक्त नये नियमों के तहत कंपनियों को हर तरह की बीमा योजनाओं में साल में कम-से-कम एक बार पॉलिसी स्टेटमेंट भेजना भी जरूरी होगा। बीमा योजनाओं की गलत बिक्री कम हो, इसके लिए ग्राहकों का दस्तखत भी लेना होगा कि उन्होंने सारी शर्तें ठीक से समझ ली हैं।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2013)