अब्राहम अलापट्ट, ब्रांड प्रमुख, फ्यूचर जनराली इंडिया लाइफ इन्श्योरेंस :
वित्तीय वर्ष का अंत करीब आते ही काफी निवेशक आय कर में बचत के लिहाज से निवेश के विकल्पों पर नजर डालते हैं और उनमें से बहुत लोग जीवन बीमा का विकल्प चुनते हैं। जीवन बीमा योजना खरीदना एक अच्छा और समझदारी भरा वित्तीय फैसला है और लंबी अवधि का ऐसा उत्पाद चुनने में कोई बुराई नहीं है, जिससे आपको आय कर में भी कुछ छूट मिल जाती हो। लेकिन समस्या तब आती है, जब कोई व्यक्ति लंबी अवधि के फायदों और परिणामों को देखे बिना केवल इस साल कर बचत के नजरिये से एक बीमा पॉलिसी खरीद लेता है।
ज्यादातर निवेशक केवल कर बचत की अपनी तात्कालिक जरूरत पर ध्यान देते हैं। इसलिए वे ऐसी बीमा योजना खरीद लेते हैं, जो फिलहाल उनकी आय कर देनदारी घटा देती है। लेकिन वे इस बात पर ध्यान नहीं देते कि क्या आने वाले सालों में भी उस योजना के ऊँचे प्रीमियम जमा करते रहने की स्थिति में होंगे। कर बचाने वाले ज्यादातर उत्पादों को लंबी अवधि की बचत को प्रोत्साहित करने के नजरिये से तैयार किया जाता है। साथ ही उनमें लॉक इन अवधि भी होती है, जिस दौरान आप उससे पैसा निकाल नहीं सकते। जिन बीमा योजनाओं पर कर में रियायत मिलती है, वे भी लंबी अवधि के ऐसे उत्पाद हैं जिनके फायदे समय के साथ ही मिलते हैं।
आसान शब्दों में यह कहा जा सकता है कि आय कर बचाना छोटी अवधि का लक्ष्य है और इस लक्ष्य को पूरा करते समय लंबी अवधि में उस उत्पाद के परिणामों पर भी नजर रखनी चाहिए। निवेशकों को यह बात भी पूरी तरह समझ लेनी चाहिए कि अभी वे जिस योजना को खरीद रहे हैं, भविष्य में उसका प्रीमियम नहीं दे पाने पर क्या होगा? क्या उस पॉलिसी को फुली पेड अप बनाया जा सकेगा? क्या उस समय तक जितना प्रीमियम दिया गया हो, उसके आधार पर मिलने वाली बीमा सुरक्षा (कवर) को बदला जा सकता है? जो प्रीमियम जमा करना छूट जाये, उसे क्या बाद में भरा जा सकता है? क्या प्रीमियम जमा नहीं होने पर पॉलिसी रद्द (लैप्स) हो जायेगी? अगर पॉलिसी रद्द हो गयी तो क्या बाद में इसे फिर से चालू कराया जा सकता है?
आप अपने एजेंट से इन सवालों के जवाब साफ ढंग से माँगें। उससे पूछें कि अगर बाद के वर्षों में कभी आप प्रीमियम जमा नहीं कर पायें तो उसका नतीजा क्या होगा? आप कितने प्रीमियम की पॉलिसी चुनेंगे, इसका फैसला केवल इस बात से न करें कि इस साल आपको कर बचत के लिए कितना निवेश करने की जरूरत है। मगर लोग आम तौर पर यह गलती करते हैं और ऐसी यूलिप यानी यूनिट लिंक्ड इन्श्योरेंस ऐसी पॉलिसी ले लेते हैं, जिसमें आगे चल कर शर्तों में बदलाव की सुविधा नहीं हो।
बीमा पॉलिसी खरीदने का फैसला आम तौर पर बचत की आदत डालने के लिए या कुछ पैसा अनिवार्य रूप से अलग करके रख देने के लिए होता है। यह महत्वपूर्ण है कि लंबी अवधि में नियमित रूप से आप कितना पैसा अलग करके रखते रह सकेंगे, इस बारे में अति उत्साह में कोई फैसला नहीं किया जाये। इस बारे में एक मोटा नियम यह है कि अपने करियर में प्रगति और वेतन वृद्धि से आपकी आय में जितनी बढ़ोतरी हो, उसके आधार पर ही आप अपनी अनिवार्य बचत करें।
लोग अक्सर यह गलती भी करते हैं कि वे बीमा को केवल निवेश के विकल्प की तरह देखते हैं, शुद्ध रूप से बीमा सुरक्षा के रूप में नहीं। इसके चलते वे हमेशा ऐसी बीमा योजनाएँ चुनते हैं, जिनमें उन्हें अपने प्रीमियम के भुगतान पर भविष्य में लाभ का वादा किया जा रहा हो। वे ऐसी पारंपरिक या शुद्ध रूप से मियादी योजनाओं (टर्म प्लान) पर ध्यान नहीं देते, जो उन्हें केवल बीमा सुरक्षा दे रही हो। वे यह भी देखते कि उन्हें मिलने वाला फायदा अलग-अलग अवधि के लिहाज से किस तरह बदलेगा। मसलन, एक यूलिप योजना आपको तभी अच्छा फायदा दे सकेगी, जब आप उसे पर्याप्त रूप से लंबी अवधि तक बनाये रखें। इसलिए ऐसी योजनाओं में लंबे समय तक निवेश जारी रखना चाहिए। छोटी अवधि में आने वाले उतार-चढ़ाव के आधार पर यह फैसला नहीं करना चाहिए कि उनमें बने रहें या नहीं।
(निवेश मंथन, मार्च 2012)