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जीएसटी से घबरायें नहीं, बड़ी आसानी से समझें

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Category: जुलाई 2017

जीएसटी लागू हो गया है। देश का सबसे बड़ा टैक्स बदलाव कारोबार, व्यापार, खरीदार सबकी जिंदगी पर असर डालेगा।

इसलिए अब इससे बचने और आँखें चुराने का फायदा नहीं। इससे घबरायें नहीं, क्योंकि इसे समझना इतना मुश्किल भी नहीं है। जीएसटी की ए बी सी डी को आसान भाषा में कुछ ऐसे समझें।
जीएसटी क्या है?
गुड्स एंड सर्विस टैक्स को हिंदी में वस्तु और सेवा कर कहा जाता है। यह एक तरह का वैल्यु एडेड टैक्स है, जो वस्तु या सेवा में जब-जब वैल्यू जुड़ती है, उसके हर स्तर पर लगता है। यानी अगर वस्तु या सेवा में कोई वैल्यू जुड़ी है तो उसके मुताबिक टैक्स जुड़ जायेगा।
जीएसटी का असर
दावा है इससे टैक्स सिस्टम की खामियाँ दूर होंगी। खास तौर पर इसका मकसद टैक्स पर टैक्स को खत्म करना है। जीएसटी लागू होने के बाद तमाम तरह के दूसरे टैक्स हट जायेंगे। पहले यह होता था कि आप अगर मध्य प्रदेश में रहते हैं और तमिलनाडु में बनी कार खरीदते हैं तो आपके ऊपर दोहरा टैक्स लगता था, एक तो तमिलनाडु का टैक्स, केंद्र का टैक्स यानी एक्साइज ड्यूटी और मध्य प्रदेश का बिक्री कर। लेकिन अब आपको सिर्फ एक ही टैक्स देना होगा। जीएसटी के दो बराबर हिस्से होंगे - एक केंद्र का होगा, दूसरा उस राज्य का जहाँ सामान बेचा गया है।
इन्पुट टैक्स क्रेडिट क्या है?
सप्लाई चेन के हर स्तर पर सामान की जितनी वैल्यू बढ़ती है, सिर्फ उस पर टैक्स लगता है। यानी पहले के स्तर पर जो टैक्स दिया गया है, उसकी वापसी का दावा किया जा सकता है। जैसे, कपड़े बनाने वाली एक कंपनी ने कच्चा माल खरीदते वक्त जो टैक्स दिया था, वह रिटर्न भरते वक्त उसके रिफंड का दावा कर सकती है। इसी तरह, कोई सेवा देने वाला, जैसे कि कोई डीटीएच कंपनी हो, तो वह अपने उत्पाद में इस्तेमाल सामान, जैसे डिश एंटिना खरीदने में दिये गये टैक्स के रिफंड का दावा कर सकती है।
जीएसटी कौन देगा?
ऐसे कारोबारी, उत्पादक और व्यापारी, जिनका सालाना कारोबार 20 लाख रुपये से ज्यादा हो। यानी इस सीमा के नीचे वाले कारोबारियों को जीएसटी रजिस्ट्रेशन कराने की जरुरत नहीं है। पूर्वोत्तर और विशेष श्रेणी के राज्यों के लिए यह सीमा 10 लाख रुपये है। लेकिन अंतरराज्यीय कारोबार के लिए कोई सीमा नहीं है, इसमें जीएसटी लगेगा।
जीएसटी के बाद कौन-से टैक्स खत्म होंगे?
उत्पादन पर टैक्स जैसे सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी, अतिरिक्त एक्साइज ड्यूटी, इंपोर्ट ड्यूटी जैसे काउंटरवेलिंग ड्यूटी, स्पेशल कस्टम ड्यूटी, सर्विस टैक्स, सेंट्रल सेस और सरचार्ज, राज्यों के टैक्स जैसे वैट, अंतरराज्यीय कारोबार में सेंट्रल सेल्स टैक्स, लग्जरी टैक्स, एंटरटेनमेंट टैक्स (स्थानीय निकायों के टैक्स को छोड़ कर), विज्ञापन पर टैक्स, लॉटरी पर टैक्स, राज्यों के सेस जैसे तमाम टैक्स खत्म हो जायेंगे। लेकिन बेसिक कस्टम ड्यूटी जस-की-तस रहेगी। वह जीएसटी का हिस्सा नहीं है।
जीएसटी के फायदे
हर सामान और सेवा पर लगने वाले टैक्स में पारदर्शिता आयेगी। अभी तो जब कोई सामान खरीदा जाता है तो खरीदार को उसके लेबल पर सिर्फ राज्य में लगा टैक्स ही नजर आता है। इसके अलावा कौन-कौन टैक्स जुड़ गये, यह उपभोक्ता को पता ही नहीं चलता। लेकिन अब इसमें पारदर्शिता आ जायेगी। जो सामान जीएसटी दर की जिस श्रेणी में है, उसी के आधार पर टैक्स लगेगा। सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि पूरा देश एक बाजार बन जायेगा। यानी देश में कहीं भी किसी भी सामान की आपूर्ति बेरोकटोक हो सकेगी, राज्यों की सीमाओं की तमाम रुकावटें खत्म हो जायेंगी। सरकार को उम्मीद है कि टैक्स चोरी कम होगी। अनुमान है कि लंबी अवधि में राज्य और केंद्र की आय में भारी बढ़ोतरी होगी। रिसर्च एजेंसियों के मुताबिक एक बार जीएसटी व्यवस्था पूरी तरह पटरी पर आ गयी तो विकास दर भी 1.5%
तक बढ़ सकती है। तमाम तरह के टैक्स हटने का फायदा यह होगा कि बहुत-से सामानों पर टैक्स का बोझ कम हो जायेगा, दाम कम हो जायेंगे।
जीएसटी में शामिल नहीं होने वाली चीजें
कच्चे तेल, डीजल, पेट्रोल, प्राकृतिक गैस, जेट फ्यूल को फिलहाल जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है। दरअसल, इन सभी सामानों को शून्य जीएसटी की श्रेणी में रखा गया है, लेकिन पुराना टैक्स लगता रहेगा। इन सब को कब जीएसटी के दायरे में लाना है, इसका फैसला केंद्रीय वित्तमंत्री की अगुआई वाली जीएसटी परिषद करेगी।
जीएसटी के दायरे से पूरी तरह बाहर उत्पाद और सेवाएँ
रियल एस्टेट, शराब और बिजली पूरी तरह से राज्य का विषय हैं, इसलिए जीएसटी में शामिल नहीं किये गये हैं। लेकिन लैंड लीजिंग जीएसटी के दायरे में है। इसी तरह शराब जीएसटी के बाहर है और इसे जीएसटी के दायरे में लाने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा।
एकीकृत जीएसटी (इंटीग्रेटेड जीएसटी या आईजीएसटी) क्या है?
अंतरराज्यीय आपूर्ति वाले सामान या सेवाओं को आईजीएसटी के दायरे में रखा गया है। इसमें वसूल की गयी जीएसटी के दो हिस्से होंगे, एक केंद्र का और दूसरा राज्य का। लेकिन इसे अलग-अलग करना उपभोक्ता या कारोबारी का सिरदर्द नहीं होगा। जीएसटी नेटवर्क का सॉफ्टवेयर अपने-आप यह हिस्सेदारी कर देगा।
जीएसटी में आयात की परिभाषा
आयात (इंपोर्ट) को अंतरराज्यीय आपूर्ति माना जायेगा और आईजीएसटी लगेगा। निर्यात (एक्सपोर्ट) पर अलग-से कोई टैक्स नहीं लगेगा। निर्यात के लिए तैयार सामान में इस्तेमाल कच्चे माल और सेवाओं पर दिये गये टैक्स को रिफंड कर दिया जायेगा।
मुनाफाखोरी पर लगाम लगाने का तरीका
जीएसटी की आड़ में उत्पादक या कारोबारी और व्यापारी को कीमतें बढ़ा कर मुनाफाखोरी से रोकने के लिए यह प्रावधान लाया गया है। अगर किसी सामान में जीएसटी मौजूदा टैक्स के मुकाबले कम हो तो कंपनियों को उन सामानों के दाम घटा कर इसका फायदा उपभोक्ता तक पहुँचाना होगा। जीएसटी कानून के मुताबिक एंटी प्रॉफिटियरिंग अथॉरिटी मुनाफखोरी की शिकायतों पर कार्रवाई करेगी। अगर किसी ने मुनाफाखोरी की है तो उसे टैक्स में कमी का फायदा उपभोक्ता को 18% ब्याज समेत लौटाना होगा। अगर खरीदार की पहचान नहीं हो पाती या उसका दावेदार नहीं होता तो अतिरिक्त मुनाफे की वसूली होगी। अगर मामला बहुत गंभीर पाया गया तो मुनाफाखोरी करने वाले का जीएसटी रजिस्ट्रेशन रद्द किया जा सकता है।
जीएसटी परिषद में फैसले कैसे होंगे?
जीएसटी परिषद के फैसले केंद्र और राज्य सरकारों की सहमति के बगैर नहीं होंगे। किसी भी फैसले के लिए जीएसटी परिषद की बैठक में मौजूद 75% वोट जरूरी हैं। केंद्र सरकार का मत-प्रतिशत कुल पड़े वोटों का एक तिहाई होगा। बाकी सभी राज्यों का मिल कर मत प्रतिशत दो तिहाई होगा।
जीएसटी की दरें
कुल मिला कर 6 दरें होंगी : 0.5%, 3%, 5%, 12%, 18% और 28%।
जीएसटी सेस
अलग-अलग सामानों पर सेस की बहुत-सी दरें हैं। दरअसल, सेस 1% से लेकर 290% तक हैं। सिगरेट, सिगार और तंबाकू उत्पादों पर अलग दरें रखी गयी हैं।
जीएसटी और रिटर्न भरना
हर महीने की 10 तारीख तक पिछले महीने की बिक्री का विवरण (स्टेटमेंट) दाखिल करना होगा। इसी तरह की गयी खरीदारी या इन्पुट का ब्योरा हर महीने की 15 तारीख तक दायर करना होगा। इन्पुट टैक्स रिफंड के लिए हर महीने की 20 तारीख तक खरीद-बिक्री का पूरा ब्योरा यानी रिटर्न दायर करना होगा। कुल मिला कर हर महीने तीन और साल में 36 बार फाइलिंग करनी होगी।
ऐसे भरें रिटर्न
1. जीएसटी रिटर्न-1 के लिए सप्लायर हर माह की 10 तारीख को बिक्री की इनवॉयस अपलोड करेगा।
2. जीएसटी रिटर्न-1 में सप्लायर के डिटेल से अपने आप खरीदार के लिए जीएसटी रिटर्न-2 तैयार हो जायेगा।
3. जीएसटी रिटर्न-2 अगले माह की 15 तारीख तक भरना होगा। इसे भरना बहुत आसान है। इसे किसी को भरने की जरूरत नहीं, यह अपने आप कंप्यूटर स्क्रीन में आ जायेगा, अकाउंट होल्डर को बस इसे ओके करना होगा।
4. अगर इसमें कोई ट्रांजैक्शन भूल वश छूट गया है तो आप खुद इसे दुरुस्त कर सकते हैं। यह ऑटो रिटर्न है, सिर्फ क्लिक करके इसे मंजूर करना है।
5. जीएसटी रिटर्न-1 और जीएसटी रिटर्न-2 बिजनेस टू बिजनेस डीलर को भरना है, रिटेलर को नहीं।
6. हर महीने की 17 तारीख को सप्लायर और खरीदार दोनों को अपने इनवॉयस मैच कराने होंगे और 20 तारीख तक जीएसटी रिटर्न-3 दाखिल करना होगा।
7. जीएसटी रिटर्न-3 बहुत आसान है। यह रिटर्न-1 और रिटर्न-2 को मिला कर बनता है और कंप्यूटर इसे अपने आप भर देगा। इसमें कुल आउटपुट, टैक्स, इनपुट टैक्स क्रेडिट और पूरे महीने के लिए टैक्स का अंतर सब कुछ आ जायेगा।
8. जीएसटी काउंसिल ने फिलहाल 31 अगस्त तक रिटर्न भरने के नियमों में ढील दे रखी है। बिक्री के रिटर्न 10 अगस्त के बजाय 5 सितंबर तक दाखिल करने होंगे। कंपनियों को 20 सितंबर तक बिक्री इनवॉयस दाखिल करनी होगी।
9. सालाना 75 लाख टर्नओवर वाले ट्रेडर, मैन्युफैक्चरर, या रेस्त्रां जिन्होंने कॉम्पोजीशन स्कीम का विकल्प चुना है, उन्हें अपने कुल टर्नओवर का ब्योरा सिर्फ जीएसटी रिटर्न-1 में देने की जरूरत होगी।
(निवेश मंथन, जुलाई 2017)

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