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इसलिए टाटा के रतन बने चंद्रशेखरन

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Category: फरवरी 2017

प्रणव :

बीते अक्टूबर में ही यह लगने लगा था टाटा संस को संभवत पहला गैर पारसी प्रमुख मिलने जा रहा है।

साइरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटाने के दो दिन बाद ही जब नटराजन चंद्रशेखरन को टाटा संस के निदेशक मंडल में जगह दी गयी तो यह तकरीबन तय हो गया था कि वे रतन टाटा की पहली पसंद में शुमार हैं। मगर टाटा संस के शीर्ष पर उनकी ताजपोशी इतनी आसान भी नहीं रही। टाटा स्टील और टाटा मोटर्स जैसी ध्वजवाहक कंपनियों वाले समूह की कमान आखिर विशुद्घ रूप से सेवा क्षेत्र का अनुभव रखने वाले शख्स को कैसे सौंपी जाये? ऐसे तमाम सवाल रतन टाटा और उनके साथियों के जेहन में जरूर रहे होंगे, लेकिन आखिरकार चयनकर्ताओं की मंडली शायद सबसे मुफीद शख्स को चुनने में सफल रही।
काम को सलाम
चंद्रशेखरन टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) से ताल्लुक रखते हैं, जो इस समय टाटा समूह के लिए कमाई की कामधेनु बनी हुई है। इसके कायाकल्प का श्रेय भी चंद्रशेखरन के नेतृत्व और नजरिये को ही दिया जाता है।
वर्ष 2009 में टीसीएस की कमान संभालने वाले चंद्रशेखरन की अगुआई में टीसीएस के मुनाफे में तकरीबन तीन गुने की उछाल आयी है। वैश्विक और घरेलू अस्थिरता के दौर में जब समूह की तमाम अन्य कंपनियाँ मुश्किलों की मार झेल रही हैं, ऐसे में टीसीएस टाटा के लिए संकटमोचक बन कर उभरी है। लगभग 100 अरब डॉलर से अधिक के राजस्व वाले समूह में आधे से अधिक की हिस्सेदारी टीसीएस की हो चली है, जो देश के सबसे विविधीकृत समूह में उसके वर्चस्व को बयान करती है।
वफादारी
टीसीएस में प्रशिक्षु यानी इंटर्न से सीईओ बनने का उनका सफर किसी प्रेरक कथा से कम नहीं। वर्ष 1987 में टीसीएस के साथ अपनी शुरुआत से अब तक उन्होंने कभी कंपनी का साथ नहीं छोड़ा और 2009 में उसके शीर्ष पद पर पहुँचे। वे समूह की किसी कंपनी के सबसे युवा सीईओ बने। उनसे पहले टीसीएस के सीईओ रहे एस. रामादुरै उनकी काबिलियत को पहचानते हुए उन्हें शीर्ष प्रबंधन में लाये और उन्होंने रामादुरै सहित उनमें भरोसा जताने वालों को निराश भी नहीं किया।
कहा जाता है कि रामादुरै के साथ उनके रिश्तों ने उन्हें फायदा पहुँचाया, लेकिन असली अंतर उनकी योग्यता ने ही पैदा किया। अमूमन टाटा का चलन यही रहा है कि किसी अपने को ही समूह का सिरमौर बनाया जाता है, जिसने पहले से ही समूह की किसी कंपनी की कमान संभाली हो या उसका कायाकल्प किया हो। साइरस मिस्त्री टाटा की इस परंपरा में अपवाद रहे और उनके साथ रतन टाटा की बढ़ी तल्खी से समूह को इसका कड़वा अनुभव भी हुआ। लिहाजा चर्चा में चल रहे तमाम नामों में उसी नाम को वरीयता दी गयी, जो समूह की परंपरराओं, कार्यशैली और मूल्यों से बखूबी वाकिफ रहा हो।
पेशेवर अंदाज
अपने सहयोगियों के बीच चंद्रा नाम से मशहूर नटराजन चंद्रशेखरन खांटे दर्जे के पेशेवर माने जाते हैं। मुंबई में समुंदर का नजारा दिखाने वाले अपने आवास %सागर दर्शनÓ से ही उनकी दिनचर्या शुरू हो जाती है। उन्हें करीब से जानने वाले बताते हैं कि शीर्ष प्रबंधन में जाने के बाद भी उनके भीतर का प्रोग्रामर खत्म नहीं हुआ और काम के प्रत्येक स्तर से जुड़ी बारीकियों को समझने में शायद ही कोई उनका सानी हो। उन्होंने नजरिये की लड़ाई में भी टीसीएस को बढ़त दिलायी। टीसीएस भले ही हमेशा देश की सबसे बड़ी आईटी सेवा प्रदाता कंपनी रही हो, लेकिन परिचालन, नवाचार और गुणवत्ता के पैमाने पर हमेशा इन्फोसिस को एक मानदंड माना जाता रहा। मगर चंद्रशेखरन ने इन पैमानों पर भी टीसीएस के लिए लोगों का नजरिया बदला।
आगे की राह
नटराजन चंद्रशेखरन ऐसे दौर में टाटा समूह की कमान संभाल रहे हैं, जब हालिया विवादों के कारण उसकी साख प्रभावित हुई है। ऐसे में टाटा की पुरानी प्रतिष्ठा बहाल करना उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी। उन्हें न केवल समूह की सबसे कमाऊ कंपनी टीसीएस को वक्त के थपेड़ों से बचा कर उसे और बेहतर बनाना होगा, बल्कि मंदी और मुश्किलों की मार झेल रही अन्य प्रमुख कंपनियों को भी वापस पटरी पर लाना होगा। चंद्रशेखरन अभी तक मिली किसी भी जिम्मेदारी को बखूबी निभाने में नाकाम नहीं हुए हैं। शायद उन्हें चुनने वाले समूह ने उनके इस बेहतरीन रिकॉर्ड को ध्यान में रखा होगा। हमेशा की तरह शायद वे उन्हें निराश भी नहीं करेंगे।
(निवेश मंथन, फरवरी 2017)

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