संजय तिवारी
यह सात लाख करोड़ का कारोबार करने वाली कंपनी का मुख्यालय है - बॉम्बे हाउस। साल 1923 में इसे टाटा समूह का मुख्यालय बनाया गया और तब से आज तक यही टाटा समूह का मुख्यालय है। दक्षिण मुंबई में ब्रिटिश शैली में बने सैकड़ों भवनों के बीच एक सीधा-सादा चार मंजिला भवन, जिसके सामने से आप गुजर जायें और आपको भनक भी न लगे कि देश के सबसे बड़े कारोबारी घराने के मुख्यालय से आप गुजर रहे हैं।
आज भी मूल रूप में यह भवन वैसा ही है जैसा 1923 में बना था। कुछ भी नहीं बदला गया है, सब-कुछ जस का तस है। इसका कारण शायद यह है कि पारसी लोग अपने इतिहास से बहुत प्यार करते हैं। नवसारी में जमशेदजी के पैतृक निवास से लेकर बॉम्बे हाउस में जेआरडी के आफिस तक को जस का तस सुरक्षित रखा गया है। वही कुर्सियाँ, वही टेबल, वही सोफा, वही टेलीफोन। सब कुछ जस का तस बचा कर रखा गया है, मानो वे उनकी सबसे बड़ी विरासत हैं। टाटा परिवार से जुड़ी यादों को संजोने के लिए टाटा समूह ने पुणे में एक अपना संग्रहालय बनाया है, जहाँ टाटा समूह से जुड़ी यादें संजो कर रखी गयी हैं। इन यादों में सबसे अमूल्य निधि है भारत रत्न का वह पदक, जो जेआरडी टाटा को मिला था।
टाटा संस के 66% शेयर शेयर टाटा समूह से जुड़े ट्रस्टों के पास हैं। इन 66% शेयरों में से लगभग 50% शेयर सिर्फ दो ट्रस्टों के पास हैं - सर रतन टाटा ट्रस्ट (वर्तमान रतन टाटा के दादा के नाम पर बना ट्रस्ट) और सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट। इसके अलावा और कई दूसरे ट्रस्ट हैं जो टाटा संस के शेयर रखते हैं। टाटा खानदान के वारिशों के पास बहुत कम शेयर हैं। सर रतन टाटा ट्रस्ट और सर दोराबजी ट्रस्ट शिक्षा, समाजसेवा, विज्ञान और तकनीकि के साथ साथ पर्यावरण, कला, संस्कृति के क्षेत्र में सैकड़ों परियोजनाओं को मदद करते हैं।
(निवेश मंथन, नवंबर 2016)