डॉलर की तुलना में रुपये ने मई 2014 के दौरान लगभग 2% की मजबूती हासिल की और 11 महीनों के ऊपरी स्तर पर आ गया।
दूसरे शब्दों में एक डॉलर की रुपये में कीमत 11 महीनों के निचले स्तर पर आ गयी, यानी डॉलर सस्ता हुआ। मोदी लहर का रुपये की इस मजबूती में स्पष्ट योगदान रहा, क्योंकि एनडीए की सरकार बनने से उत्साहित विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने मई में शेयर बाजार में जोरदार खरीदारी की। दरअसल फरवरी 2014 से ही एफआईआई की ओर से खरीदारी बढऩे के चलते डॉलर का भारत में प्रवाह बढऩे लगा था और इसका असर रुपये की मजबूती के रूप में सामने आया।
अगर इससे भी पहले पिछले साल की कहानी देखें तो एफआईआई अगस्त 2013 तक इक्विटी यानी शेयर बाजार में बिकवाली कर रहे थे, जिसके चलते रुपये में काफी कमजोरी आयी थी और डॉलर की रुपये में कीमत अपने नये उच्चतम स्तर पर चली गयी थी। लेकिन सितंबर से एफआईआई की इक्विटी खरीदारी शुरू हुई और उसके साथ-साथ रुपये की हालत में भी सुधार आता गया।
एफआईआई ने जनवरी 2014 में इक्विटी में कुछ बिकवाली की थी। लेकिन फरवरी से उनकी खरीदारी ने फिर जोर पकड़ा। फरवरी में उनकी शुद्ध खरीदारी लगभग 26 अरब रुपये की थी, जो मार्च में बढ़ कर 223 अरब रुपये की हो गयी। अप्रैल का महीना थोड़ा हल्का रहा, जब उनकी खरीदारी लगभग 73 अरब रुपये की थी। वापस मई में उन्होंने 165 अरब रुपये की बड़ी खरीदारी की।
वहीं ऋण (डेट) बाजार एफआईआई की ओर से पिछले साल नवंबर तक बिकवाली जारी थी और वे पैसा निकाल रहे थे। लेकिन दिसंबर 2013 से अब तक केवल अप्रैल 2014 को छोड़ कर बाकी महीनों में उन्होंने ऋण बाजार में भी खरीदारी का ही रुझान बनाये रखा। डॉलर की तुलना में रुपये में मजबूती के पीछे एफआईआई की ओर से इक्विटी और ऋण बाजार दोनों में खरीदारी करने का प्रमुख योगदान रहा।
अगर एफआईआई की खरीद-बिक्री के रुझान को डॉलर की कीमत से मिला कर देखें, तो अगस्त 2013 में एफआईआई की बिकवाली जारी रहने के दौरान ही एक डॉलर की कीमत 68.80 रुपये के नये रिकॉर्ड स्तर तक पहुँची।
इसके बाद से डॉलर की कीमत निरंतर ढलान पर रही है। हालाँकि सितंबर 2013 से मार्च 2014 तक डॉलर की कीमत मोटे तौर पर 61-64 रुपये के दायरे में रही, लेकिन साथ में दिये गये चार्ट से स्पष्ट है कि अगस्त 2013 में बने शिखर से लेकर अब तक डॉलर की कीमत का रुझान नीचे की ओर ही रहा है।
भारत के चालू खाते का घाटा (करंट एकाउंट डेफिसिट या सीएडी) भी हाल में काफी घटा है, जिससे रुपये की मजबूती को लेकर बाजार का भरोसा बढ़ा है। साल 2013-14 के दौरान भारत का सीएडी पिछले साल के 87.8 अरब डॉलर से घट कर 32.4 अरब डॉलर पर आ गया। अगर जीडीपी के प्रतिशत में देखें तो सीएडी 2012-13 के 4.7% से घट कर 2013-14 में केवल 1.7% रह गया।
हाल में जब डॉलर की कीमत 60 रुपये के नीचे फिसली तो इसमें मंदडिय़ों की सक्रियता बढ़ गयी। इसके चलते डॉलर 10 महीनों के निचले स्तर 58.33 तक फिसल गया। हालाँकि महीने के अंत तक बिकवाली सौदों के कटने (शॉर्ट कवरिंग) से डॉलर वापस कुछ सँभला। निचले भावों पर कारोबारी खरीदारी सौदे करते हुए भी देखे गये।
रेलिगेयर की मासिक रिपोर्ट के अनुसार अभी डॉलर को 58.50 रुपये के भाव पर मजबूत सहारा मिलने की संभावना है, जबकि दूसरी ओर इसके लिए 60 रुपये के भाव को ऊपर पार कर पाना काफी कठिन होगा।
डॉलर-रुपये के दैनिक चार्ट पर डॉलर का भाव मार्च 2014 से ही अपने 200 दिनों के सिंपल मूविंग एवरेज (एसएमए) और 50 एसएमए दोनों के नीचे आ चुका है। अप्रैल में इसने 50 एसएमए के ऊपर लौटने की कोशिश की थी, जो नाकाम रही। इसके मद्देनजर यह कहा जा सकता है कि अभी मध्यम और लंबी अवधि के लिए डॉलर की कीमत का रुझान कमजोर ही रहेगा। यह स्थिति तभी बदलेगी, जब डॉलर की कीमत 50 एसएमए के ऊपर लौट आये।
अप्रैल 2013 की तलहटी 53.63 से अगस्त 2013 के शिखर 68.80 की वापसी के स्तरों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि 61.8% वापसी के स्तर 59.42 को पार कर पाना इसके लिए आसान नहीं होगा। अगर यह 59.42 के नीचे ही अटका रहा तो आगे आने वाले हफ्तों या महीनों में यह 80% वापसी के स्तर 56.66 की ओर फिसल सकता है।
लेकिन 59.42 के ऊपर निकल कर टिक पाने की स्थिति में यह देखना होगा कि 50 एसएमए पर फिर से बाधा मिलती है या यह इसके भी ऊपर लौट पाता है। अगर डॉलर का भाव 59.42 रुपये को पार करने के साथ-साथ 50 एसएमए भी पार कर ले तो यह फिर से मोटे तौर पर 59-61 रुपये के दायरे में लौट सकता है।
(निवेश मंथन, जून 2014)