रामदेव अग्रवाल, जेएमडी, मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज :
भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय अपनी तलहटी के पास है।
मानसून अच्छा रहा है। साथ ही मुद्रा (करेंसी) में हुए सुधार के चलते लगता है कि अर्थव्यवस्था ने अपना सबसे बुरा दौर देख लिया है या फिर यह अपने सबसे बुरे दौर को पार कर रही है।
शेयर बाजार ने भी संभवत: सबसे बुरा दौर पार कर लिया है। नवंबर-दिसंबर से बाजार का रुझान किसी एक दिशा में बन सकता है। अभी विधानसभा चुनावों में यह देखना होगा कि दिल्ली विधानसभा में कांग्रेस फिर जीतती है या विपक्ष बाजी मारता है, राजस्थान में क्या होता है, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कोई उलटफेर होता है या नहीं। अभी तो लोगों ने कांग्रेस को एकदम ही खारिज मान लिया है।
अगर राजनीतिक परिणाम बहुत बुरे रहे तो निफ्टी 5000 या 5400 जैसे स्तरों तक गिर सकता है। लेकिन अगर नवंबर-दिसंबर के विधानसभा चुनावों में निर्णायक ढंग से नतीजे आये तो बाजार में भी निर्णायक चाल आ सकती है। इसलिए इन विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों के बीच में बाजार में एक स्पष्ट रुझान बन सकता है।
इस बार तिमाही नतीजे काफी हल्के रहेंगे। केवल 5-6% की वृद्धि हो सकेगी। लेकिन अभी यह शुरुआती अनुमान है। रुपये के उतार-चढ़ाव का कितना असर होगा, उसे देखना होगा क्योंकि कई लोगों को इससे घाटा होगा और कई लोगों को इससे फायदा भी होगा।
ऑटो क्षेत्र की मासिक बिक्री के ताजा आँकड़े आकर्षक नहीं है। दोपहिया के आँकड़े थोड़े ठीक-ठाक हैं। अगर सरकार को दोपहिया वाहनों की बिक्री को प्रोत्साहन देने की बात सोचनी पड़ रही है तो जाहिर है कि अर्थव्यवस्था बहुत ठंडी हो गयी है। अभी हमारी अर्थव्यवस्था में निवेश की तेजी नहीं है। मुख्य दिक्कत निवेश के चक्र को लेकर है।
अगर 25,000 मेगावाट की कोई परियोजना बने तो लाख सवा लाख करोड़ रुपये बिजली क्षेत्र में खर्च होंगे। दूरसंचार कंपनियाँ अच्छी चलें तो 3जी, 4जी में साल में 25,000-40,000 करोड़ रुपये का वहाँ खर्च हो। लेकिन उस तरह का पूँजीगत खर्च अभी बंद हो गया है, जिसने जीडीपी का 1-3% घटा दिया है।
खपत के स्तर पर इसी 3% से स्थिति काफी बदल जाती है। किसी को लाखों रुपये का वेतन मिल रहा है, लेकिन उसमें आधा हिस्सा बोनस का है, तो वह बोनस बहुत असर डालता है। उस पैसे से वह नयी कार खरीद लेता है, घर पेंट करा लेता है, वह छुट्टी पर घूमने चला जाता है। लेकिन वह बोनस नहीं होने पर ऐसे सारे खर्च रुक जाते हैं जो टल सकते हैं।
निर्यात पर निर्भर क्षेत्र पसंद
अभी बाजार में निवेश के लिए निर्यात पर केंद्रित क्षेत्रों में खास ध्यान देने की जरूरत है। हाल में जो सबसे महत्वपूर्ण सुधार हुआ है, वह मुद्रा (करेंसी) का सुधार है। इस सुधार का काफी अच्छा फायदा मिलने वाला है। जो भी गलत भाव है, वो गलत है। इतनी मुद्रास्फीति के दौर में दस साल से 45 रुपये का डॉलर था, जिसके चलते बहुत से उद्योगों पर बुरा असर पड़ा। उनकी उत्पादन लागत बढ़ गयी और वे केवल विदेशों में ही नहीं बल्कि देश के अंदर भी प्रतिस्पर्धी नहीं रह गये। उन्हें भारत का बाजार भी विदेशी खिलाडिय़ों के हाथों गँवाना पड़ा। अब रुपये और डॉलर का स्तर ठीक होने के चलते वे वापस प्रतिस्पर्धा में लौट पा रहे हैं। सरकार ने भी बात को समझा है कि वे रुपये की कीमत कृत्रिम रूप से ऊपर नहीं रख सकते।
इस स्थिति में मुझे उम्मीद है कि बहुत से ऐसे उद्योग, जो आयात की बाढ़ के चलते दबाव झेल रहे थे, वे अब पहले से अच्छा प्रदर्शन कर सकेंगे। ऐसी कंपनियों में निवेश के अवसर तलाशने चाहिए। निर्यातकों को, जैसे आईटी, दवा, बजाज ऑटो जैसी कुछ ऑटो कंपनियों वगैरह को तो इसका स्पष्ट रूप से फायदा मिलने वाला है।
मुझे कैपिटल गुड्स क्षेत्र पसंद नहीं, जहाँ सरकार पर काफी निर्भरता है। अपनी गाढ़ी कमाई आप ऐसे क्षेत्र में नहीं लगा सकते। हमें ऐसे क्षेत्रों को चुनना चाहिए जिनमें सरकारी भूमिका बहुत सीमित हो, जैसे आईटी क्षेत्र।
आपको एक खास पद्धति से अपना पोर्टफोलिओ बनाना पड़ता है। आप क्या खरीद रहे हैं, आपकी समझ कितनी है उसके बारे में? ऐसे पोर्टफोलिओ में अभी वित्तीय क्षेत्र और एनबीएफसी के शेयर रखे जा सकते हैं। टेलीकॉम, आईटी और दवा क्षेत्रों की स्थिति बेहतर होती दिख रही है। लेकिन क्षेत्रों को समझने के बाद आपको अच्छे शेयर चुनने होंगे। वित्तीय क्षेत्र में एचडीएफसी और एचडीएफसी बैंक खरीदना अच्छा रहेगा। आपको पाँच साल में अच्छा फायदा मिल जायेगा।
आईटी में जो दिग्गज नाम हैं, उनमें ही पैसे लगाना बेहतर है। टीसीएस, इन्फोसिस और टेक महिंद्रा ठीक लगते हैं। इस क्षेत्र के मँझोले शेयरों में मैं बिल्कुल पैसे नहीं लगाना चाहूँगा। इस क्षेत्र में जो सबसे बड़ा है, वही बेहतर है। इस क्षेत्र में वैश्विक प्रतिस्पर्धा होती है। छोटी कंपनियों को तो लोग आने ही नहीं देते।
निर्णायक चुनावी नतीजों से बदल जायेगा बाजार
निचले भावों का इंतजार करने के बदले अगर आपको कुछ अच्छा लगता है तो उसे खरीद लें और काम खत्म करें। अगर अभी आपको कैर्न इंडिया अच्छा लगता है और आपको 10% निवेश करना है तो कर लें। बाजार किसी का इंतजार नहीं करता है। क्या आपको पता है कि मोदी को कितनी सीटें मिलेंगी? किसी को नहीं मालूम है। उनको 300 सीटें भी आ सकती हैं, और वैसा होने पर सेंसेक्स रहेगा 30,000 का। तब क्या करेंगे आप?
आखिर कितनी दूर है वह दिन? दिसंबर में आपको अंदाजा लग जायेगा कि 250 सीटें आने वाली हैं या 300 सीटें। इस बीच मान लें कि कांग्रेस ने कुछ ऐसा कर दिया कि अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढऩे लगी। आखिर वे अभी हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। मान लें कि अगर अप्रैल तक विकास दर 8-9% हो जाये तो सबकी जुबान बंद हो जायेगी।
मुझे लगता है कि अगले चुनाव के बाद एक निर्णायक नतीजा ही आयेगा, चाहे वह जिस भी पक्ष में हो। आज की स्थिति में ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी काफी अच्छी स्थिति में रहेंगे, चाहे 200 सीटें हों या 225 या 250 सीटें। अगर ऐसा हो गया तो बाजार कहीं भी जा सकता है। विदेश से एक साल के अंदर 100 अरब डॉलर का निवेश भी आ सकता हैं।
लेकिन दूसरी तरह ऐसा भी हो सकता है कि वहाँ टैपरिंग वगैरह से इतनी ज्यादा दिक्कतें हो जायें कि भले मोदी साहब आ गये 300 सीटें लेकर, लेकिन 50 अरब डॉलर यहाँ से बाहर चले गये। कुछ पक्का नहीं कहा जा सकता कि कौन क्या करने वाला है। इसलिए मैं केवल यह देखता हूँ कि मैं जिस कंपनी में निवेश कर रहा हूँ, वह पैसे कमायेगी या नहीं।
इसलिए मुझे बाजार ऊपर-नीचे रहने से मतलब ही नहीं है। बाजार में चाहे जो हो जाये, चाहे आप मोदी को 400 सीटें दिला दें या चाहे तो राहुल को 400 सीटें दिला दें, उससे मुझे कोई लेना-देना नहीं है। मुझे इस बात से मतलब है कि एक शेयर किस भाव में मिल रहा है?
बाजार किस तरह से व्यवहार करेगा, इस पर हमारा कोई नियंत्रण समय के अनुसार नहीं है। मैं काफी ठीक-ठीक ढंग से यह अनुमान लगा सकता हूँ कि अगले एक साल में कंपनी का कामकाज किस तरह से चल सकेगा। पर एक साल बाद उसका शेयर भाव कितना ऊपर या नीचे रहेगा, यह ठीक-ठीक बताना मुश्किल है। लेकिन अगर कोई कंपनी पाँच साल तक अपनी आमदनी बढ़ाती रहे तो पाँच साल में उसका मूल्यांकन जरूर बढ़ेगा।
मैं कोई शेयर यही सोच कर खरीदता हूँ कि यह पाँच साल में दोगुना हो जायेगा। ऐसे ही मैं दस शेयर खरीदता हूँ। कोई तीन साल में, कोई चार साल में दोगुना हो जाता है। कोई चलता ही नहीं बिल्कुल। लेकिन ऐसे पोटफोलियो पर कुल मिला कर 18-20% फायदा मिल जाता है।
अगर आप एक साल में पक्का फायदा चाहते हैं तो अपना पैसा शेयर बाजार में नहीं लगायें। इसके लिए आप अपना पैसा फिक्स्ड डिपॉजिट में लगा लें, एफएमपी में लगा लें। इक्विटी में निवेश करना छोटी अवधि में पहले से तय लाभ पाने के लिए नहीं होता है। यह बहुत धैर्य का काम है, क्योंकि आप कुछ कारोबारों में पैसा लगा रहे होते हैं, किसी बॉण्ड में नहीं।
कारोबार में मिलने वाला फायदा पूर्व-निर्धारित ढंग से नहीं होता है। कुछ कारोबार जरूर पहले से दिखने वाले तरीके से फायदा दे पाते हैं। लेकिन वैसे कारोबार आपको एक के प्राइस बुक वैल्यू (पीबी) अनुपात पर नहीं मिलते हैं, महँगे मिलते हैं। जैसे, मुझे पता है कि एचडीएफसी बैंक बहुत अच्छा करेगा। लेकिन यह एक के पीबी अनुपात पर नहीं है, आपको यह 3-4 के पीबी अनुपात पर मिलेगा। अगर कारोबार के बारे में निश्चितता है तो उसका असर कीमत पर भी दिखता है।
शेयर बाजार में निवेश करना एक साल के नजरिये से नहीं होता है। अगर आपको एक साल बाद अपना निवेश वापस निकालना है तो इक्विटी आपके लिए सही संपत्ति नहीं है। जैसे अगर मुझे एक घर खरीदना है और उसके पैसे अभी मेरे पास पड़े हैं, लेकिन मुझे भुगतान करना है अगली दीपावली तक। इस तरह के पैसे को तो मैं सीधे जाकर एफएमपी में डालूँगा, जहाँ मुझे 9-10% लाभ मिलेगा। इस तरह का पैसा आप कभी भी शेयर बाजार में नहीं लगायें, जिसकी जरूरत आपको साल भर में पडऩे वाली है।
(निवेश मंथन, अक्तूबर 2013)