तीर्थंकर पटनायक, अर्थशास्त्री, रेलिगेयर सिक्योरिटीज :
हमारा अनुमान है कि 2013-14 में भारत की विकास दर 4.5% रहेगी, लेकिन इस अनुमान में और भी कमी आने की संभावना बनती है।
अगले साल 2014-15 में विकास दर 5.3% रहने का अनुमान है। हमने इस साल जुलाई में आरबीआई की ओर से उठाये गये कदमों के बाद विकास दर के अनुमानों में कमी की थी। सरकार ने जो कदम उठाये हैं, वे विकास के इंजन को कुछ खास आगे नहीं बढ़ा पायेंगे। सरकार ने अभी 1.82 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं को स्वीकृति देने जैसे जो कदम उठाये हैं, उनका तुरंत नतीजा नहीं मिलने वाला है।
उद्योग जगत इस समय ऊँची ब्याज दरों के बोझ से दबा हुआ है। रुपये की कमजोरी के चलते महँगाई दर भी अभी ऊँची रहने वाली है या और बढऩे वाली है। इस साल कम विकास दर और कम कर-संग्रह के चलते सरकार घाटे का आँकड़ा भी ठीक नहीं रहेगा।
इस समय दो-तीन लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएँ अटकी पड़ी हैं। सरकार ने अभी 1.82 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मंजूरी देने की जो बात कही है, वह पर्याप्त नहीं है। अभी औद्योगिक आपूर्ति बड़ी समस्या नहीं है। समस्या यह है कि माँग बहुत कमजोर है। यह माँग वापस लौटने में कम-से-कम दो-तीन तिमाहियाँ लग जायेंगी। यह सेवा-क्षेत्र की तरह नहीं है, जहाँ चीजें तुरंत बदल सकती हैं।
ऐसा नहीं है कि सरकार ने 1.82 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मंजूरी देने का जो कदम उठाया, उनका कोई असर नहीं होगा। लेकिन उनके कुछ नतीजे आ पाने में 12-15 महीने लग सकते हैं। मुख्य बात यह है कि अर्थव्यवस्था में अभी कुल माँग काफी कमजोर है और ऊँची ब्याज दरों के चलते कुछ समय तक कमजोर ही बनी रहने वाली है।
आरबीआई शायद यह सोच रहा है कि माँग को ऊँची ब्याज दरों के साथ तालमेल बना लेने दिया जाये, जिससे महँगाई दर नीचे आने लगे। अभी विचार यह है कि माँग को थोड़ा ठंडा रहने दिया जाये, जिससे महँगाई दर की प्रत्याशा कम हो और उसके बाद आपूर्ति की बाधाओं को दूर करने का प्रयास हो। माँग को घटाने का प्रयास आरबीआई ने जुलाई में किया था, जब उसने विकास दर के बदले अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाने और रुपये की कमजोरी को थामने को प्राथमिकता दी थी। तब उद्देश्य यह था कि ऊँची ब्याज दर से माँग कुछ घटे और चालू खाते का घाटा कम हो। इस समय सरकार के लिए विकास दर से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण चालू खाते का घाटा है।
सरकार को इस समय करना यह चाहिए कि आरबीआई को अपने हिसाब से कदम उठाने दे। पूँजी खाते (कैपिटल एकाउंट) के मोर्चे पर सरकार धीरे-धीरे अपने द्वार खोल रही है, जिससे पैसा आ सके। इसे जारी रखना चाहिए। वह खुद अपने खर्चों पर नियंत्रण रखे, ताकि सरकारी घाटे का आँकड़ा बेकाबू न हो। सरकार को अपने गैर-योजनागत खर्च में अधिक-से-अधिक कटौती करनी चाहिए। इन सबके साथ उसे अपनी नीतियाँ ठीक करनी होंगी। जैसे, हम लोग कोयले और लौह-अयस्क (आयरन ओर) का आयात करते हैं, जबकि इसकी जरूरत नहीं है। हमारे यहाँ पर्याप्त कोयला और लौह-अयस्क है। लेकिन कोल-लिंकेज और कोल इंडिया में उत्पादन से जुड़ी समस्याओं के चलते हमें इन चीजों का आयात करना पड़ता है। कोल इंडिया को अपने उत्पादन लक्ष्य बढ़ाने होंगे। इन समस्याओं को सुलझाने में सरकार को अपनी भूमिका निभानी होगी। सरकार को अपनी गैस-नीति दुरुस्त करनी होगी। यह सब करने में सरकार का कोई खर्च नहीं होगा, बस नीतियाँ ठीक करनी हैं। बिजली वितरण क्षेत्र में बीते कुछ सालों में दरें बढ़ायी गयी हैं, लेकिन इन्हें और बढ़ाना पड़ेगा।
खर्च घटाने की बात करें तो खाद्य, खाद और तेल सब्सिडी पर खर्च ढाई लाख करोड़ रुपये का है। सरकार को चाहिए कि डीजल की मूल्य-वृद्धि जिस रूप में चल रही है, वह चलती रहे ताकि तेल सब्सिडी नियंत्रण में रहे। अभी अर्थव्यवस में कुल माँग इतनी कम है कि इससे मुद्रास्फीति बढ़ेगी नहीं। ऐसा नहीं है कि डीजल के दाम बढऩे से ट्रक वाले अपने किराये बढ़ा देंगे। मानसून अच्छा रहा है, इसलिए यूरिया की कीमत 10% बढ़ा देने से कोई दिक्कत नहीं होगी। साल 1994 से अन्य खाद के दाम दोगुने हो चुके हैं, लेकिन यूरिया की कीमत केवल 20% बढ़ी है।
अर्थव्यवस्था की कुल माँग को ऊँची कीमतों के साथ तालमेल बनाने देना होगा। उसके बाद जब कीमतें घटेंगी तो माँग अपने-आप बढ़ेगी। इस साल जुलाई में डीजल की खपत 54 लाख टन रही, जो पिछले साल 58 लाख टन थी। इस तरह डीजल की खपत में 6% गिरावट आयी है। मतलब यह है कि अब हमारी डीजल खपत ने ऊँची कीमत के साथ तालमेल बनाना शुरू कर दिया है।
अभी सरकार के पास समय कम बचा है, लेकिन कोयला नीति जल्दी से ठीक की जा सकती है। लेकिन चुनाव के मद्देनजर यूरिया की कीमतें बढ़ाना शायद मुश्किल होगा। डीजल की कीमतें क्रमश: बढ़ा कर सरकार अच्छा कर रही है। साल भर पहले यह मानना मुश्किल होता कि डीजल के दाम हर महीने बढ़ते रहेंगे, पर यह हो रहा है। गैस और लौह-अयस्क के मामले में सरकार शायद अभी ज्यादा कुछ नहीं कर पायेगी।
निवेश रणनीति के लिहाज मैं अभी शेयर बाजार में ठंडा रहूँगा। बीच-बीच में बाजार में उछाल दिखती रहेगी। लेकिन अर्थव्यवस्था जब तक नहीं सुधरेगी, तब तक बाजार एक दायरे में ही ऊपर-नीचे होता रहेगा। मैं यह नहीं मानता कि नयी सरकार के आने से ही सब कुछ ठीक हो जायेगा। अभी बाजार को लेकर मेरी चिंता कायम है कि यह नीचे गिर सकता है। मैं आईटी और फार्मा में निवेश बढ़ाने की सलाह दूँगा, जबकि बैंक और एफएमसीजी शेयरों में निवेश घटाने की। धातु क्षेत्र पर हमारा नजरिया अब नकारात्मक से उदासीन हो गया है।
(निवेश मंथन, सितंबर 2013)