वित्त मंत्री पी चिदंबरम 2013-14 के बजट को ड्रीम बजट नहीं बना सके। हालाँकि उन्होंने अर्थव्यवस्था की दशा और अपनी सीमाओं को ध्यान में रख कर एक बारीक संतुलन बनाया, जिसे आलोचक बाजीगरी कह रहे हैं। बजट का विश्लेषण राजेश रपरिया की कलम से।
बजट बनाते समय बेकाबू सरकारी घाटे (आमदनी से ज्यादा खर्च) पर लगाम कसने की दुष्कर चुनौती वित्त मंत्री पी चिदंबरम के सामने थी। उन्होंने बखूबी इस कार्य को बजट में अंजाम दिया है, जिसकी उम्मीद उनके शुभचिंतकों को भी नहीं थी। इससे फौरी तौर पर रुपये के सापेक्ष डॉलर की कीमतों में भारी उछाल का खतरा टल गया है। चालू वित्त वर्ष के लिए सरकारी घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 5.2% तक सीमित करने में वे सफल रहे। इसके लिए उन्होंने योजना व्यय (प्लान एक्सपेंडिचर) में 90,000 करोड़ रुपये से अधिक की बेरहम कटौती की, लेकिन गैर-योजना व्यय (नॉन-प्लान एक्सपेंडिचर) बढऩे से यह कटौती 60,000 करोड़ रुपये की हो गयी। इस उपलब्धि से वित्त मंत्री आत्मविश्वास से लबालब भरे हुए हैं। इस आत्मविश्वास की छाया आय-व्यय अनुमानों पर साफ देखी जा सकती है।
उन्होंने 2013-14 के लिए केलकर समिति सिफारिशों के अनुरूप सरकारी घाटे का लक्ष्य जीडीपी का 4.8% रखा है, जो काफी महत्वाकांक्षी लक्ष्य है। वित्त मंत्री ने 2013-14 के लिए कुल व्यय का लक्ष्य 16,65,297 करोड़ रुपये रखा है, जो 2012-13 के संशोधित अनुमान से 2,34,472 करोड़ रुपये और मूल बजट अनुमान से 1,74,372 करोड़ रुपये ज्यादा है। इसी प्रकार योजना व्यय 5,55,322 करोड़ रुपये रखा गया, जो चालू वित्त वर्ष 2012-13 के संशोधित अनुमान से 1,26,135 करोड़ रुपये और मूल अनुमान से महज 34,297 करोड़ रुपये ज्यादा है। यह पहली नजर में एक व्यावहारिक अनुमान लगता है।
वित्त मंत्री ने यूपीए सरकार के सभी प्रमुख सामाजिक-आर्थिक कल्याण कार्यक्रमों को पर्याप्त धन आवंटित किया है। वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा, %मैं यह कहने का साहस कर सकता हूँ कि मैंने प्रत्येक मंत्रालय को उसकी धन खर्च करने की क्षमता के अनुरूप पर्याप्त राशि दी है। अब यह मंत्रालयों और विभागों पर है कि वे विवेक-सम्मत सु-प्रशासन, नकद प्रबंधन, कड़ी निगरानी और समय से कार्यान्वयन करते हुए नतीजे प्राप्त करें।’ सरकारी व्यय तंत्र की खामियों, उसमें व्याप्त लालफीताशाही और भ्रष्टाचार पर यह तल्ख टिप्पणी है।
मौजूदा वैश्विक और घरेलू वृहद (मैक्रो) आर्थिक कारकों का आकलन करते हुए इस बजट में वित्त मंत्री की मूल धारणा है कि 2013-14 में आर्थिक वृद्धि दर में सुधार होगा। आर्थिक सर्वेक्षण में जीडीपी में वास्तविक (रियल) वृद्धि का अनुमान 6.1-6.7% है और सामान्य (नोमिनल) वृद्धि दर का अनुमान 13.4% है।
बजट का गणित कुछ ज्यादा आशावादी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल-डीजल की कीमतें, रुपये के सापेक्ष डॉलर की कीमत, देश में डॉलर की आमद और महँगाई दर आदि पर बजट का बस नहीं है और ये विकास दर को बाधित करते हैं। सरकार की राजस्व प्राप्तियों की वृद्धि दर 2012-13 में 22% के अनुमान की तुलना में महज 16% रहने के आसार हैं। इस दृष्टि से राजस्व उगाही के ताजा लक्ष्य कुछ ज्यादा आशावादी हैं। बजट 2013-14 में माना गया है कि राजस्व में 21.2% इजाफा होगा।
बजट 2013-14 में कर राजस्व में वृद्धि का अनुमान 19.1% है। कर राजस्व में बढ़ोतरी मूलत: जीडीपी विकास दर, विशेष कर औद्योगिक उत्पादन वृद्धि दर पर निर्भर करती है। इस समय औद्योगिक उत्पादन वृद्धि दर ऐतिहासिक रूप से न्यूनतम स्तर पर है।
मौजूदा आर्थिक कारकों, जैसे महँगाई, गिरती विकास दर, बढ़ता चालू खाते का घाटा वगैरह को देखते हुए कर संग्रह के ये लक्ष्य ज्यादा आशावादी लग सकते हैं, लेकिन दुष्कर नहीं हैं। कॉर्पोरेट कर संग्रह में 16.9% बढ़ोतरी का लक्ष्य है। आय कर में वृद्धि दर का लक्ष्य 2012-13 की तुलना में कम रखा गया है। वजह यह है कि विकास दर में अनुमान से भारी गिरावट के बावजूद 2012-13 में आय कर का संग्रह लक्ष्य से ज्यादा रहा है। यह लक्ष्य से 10,000 करोड़ रुपये ज्यादा है, जो कुछ हैरान करने वाली बात है।
वित्त मंत्री ने सालाना 2-5 लाख रुपये तक के आय वर्ग को दो हजार रुपये की मामूली राहत दी है। पर एक करोड़ रुपये की कर योग्य आय वाले व्यक्तियों पर 10% अभिभार (सरचार्ज) लगा कर उन्होंने इस मामूली कर राहत से होने वाली क्षति को पूरा करने की कोशिश की है।
सीमा शुल्क में बढ़ोतरी का लक्ष्य 2012-13 के संशोधित अनुमान से 22,455 करोड़ रुपये ज्यादा है, पर मूल बजट अनुमान से महज 614 करोड़ रुपये ज्यादा है। उत्पाद शुल्क में भी कर बढ़ोतरी के अनुमान ज्यादा नहीं है। वर्ष 2012-13 के संशोधित अनुमान से 25,557 करोड़ रुपये अधिक कर संग्रह का अनुमान इस मद में है, जबकि मूल बजट अनुमान की तुलना में यह वृद्धि 3,183 करोड़ रुपये है। इसी प्रकार सेवा कर में 47,444 करोड़ रुपये अधिक संग्रह का लक्ष्य है। सेवा कर के 17,00,000 पंजीकृत निर्धारिती हैं, पर इनमें सात लाख लोग ही रिटर्न (विवरणी) दाखिल करते हैं। सेवा कर वसूली बढ़ाने के लिए वित्त मंत्री ने एकबारगी स्वैच्छिक अनुपालन प्रोत्साहन योजना पेश की है। कोई चूककर्ता इस योजना का फायदा इस शर्त पर उठा सकेगा कि वह एक अक्टूबर 2007 से अब तक सेवा कर देनदारी का विवरण ईमानदारी से जमा करेगा। नियत तारीख से पहले एक-दो किस्तें जमा कराने पर चूककर्ता पर लगे ब्याज, पेनाल्टी (शास्ति) और अन्य परिणामी राशियाँ माफ कर दी जायेंगी। उम्मीद की जा सकती है कि सेवा कर संग्रह का लक्ष्य सरकार हासिल कर लेगी। कुल मिला कर नये प्रत्यक्ष कर प्रस्तावों से 13,300 करोड़ रुपये और अप्रत्यक्ष करों से 4,300 करोड़ रुपये सरकार को प्राप्त होने का अनुमान है।
महत्वाकांक्षी लक्ष्य
कर राजस्व संग्रह को लेकर अगर वित्त मंत्री आशावादी हैं, तो कर भिन्न (नॉन टैक्स) राजस्व को लेकर उनके लक्ष्य महत्वाकांक्षी नजर आते हैं। बजट में कर भिन्न राजस्व संग्रह का लक्ष्य 1,72,252 करोड़ रुपये है, जो वित्त वर्ष 2012-13 के संशोधित अनुमान से 32.8% ज्यादा है। मार्च महीने में टेलीकॉम नीलामी की प्रस्तावित आय आगामी बजट में परिलक्षित होगी। लेकिन स्पेक्ट्रम नीलामी से सरकार की आय उम्मीद से काफी कम रही है। टेलीकॉम क्षेत्र से वर्ष 2012-13 में 58,217 करोड़ रुपये उगाहने का लक्ष्य था। लेकिन इसमें 17,000 करोड़ रुपये वार्षिक लाइसेंस शुल्क से आने तक थे और 40,000 करोड़ रुपये की उम्मीद स्पेक्ट्रम की नीलामी से थी। लेकिन इस मद में केवल 19,440 करोड़ रुपये ही मिल सके। इस बजट में भी टेलीकॉम क्षेत्र से 40,800 करोड़ रुपये जुटाने की उम्मीद की गयी है।
विनिवेश को लेकर भी सरकार के लक्ष्य बेहद आशावादी हैं। कंपनियों में सरकारी हिस्सेदारी बेच कर कुल 55,814 करोड़ रुपये जुटाने का प्रस्ताव है। इसमें से 40,000 करोड़ रुपये सार्वजनिक उपक्रमों (पीएसयू) के विनिवेश से आयेंगे, जबकि गैर सरकारी कंपनियों में सरकारी हिस्सा बेचने से 14,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य है। लेकिन शेयर बाजार में तेजी जारी रहने पर ही सरकार की यह उम्मीद पूरी हो सकेगी।
सब्सिडी को लेकर उदारवाद के समर्थकों को संतोष मिल सकता है। बजट में सब्सिडी की मद में 10.3% की कटौती की गयी है। यह आर्थिक सर्वेक्षण की इस मुख्य माँग के अनुरूप है कि अनुपयोगी सब्सिडी को कम किया जाये। पेट्रोलियम सब्सिडी के लिए बजट में 65,000 करोड़ रुपये का प्रावधान है, जो 2012-13 के संशोधित अनुमान से 31,880 करोड़ रुपये कम है। डीजल और रसोई गैस की कीमत में बढ़ोतरी से ऐसा संभव हो पाया है। उर्वरक सब्सिडी में कोई बढ़ोतरी नहीं की गयी है। इसे पिछली बार के लगभग बराबर ही रखा गया है। देश भारी मात्रा में यूरिया और अन्य उर्वरकों का आयात करता है। इसलिए शायद सरकार यह मान कर चल रही है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरकों की कीमत अनुकूल रहेगी और डॉलर की कीमत में भी कोई विशेष बढ़ोतरी नहीं होगी। या फिर वह उर्वरक नीति में बदलाव लाना चाहती है, जिसके चलते उर्वरक सब्सिडी में इजाफा नहीं किया गया है।
ऐतिहासिक शुरुआत
सामाजिक सुरक्षा के लिए यूपीए सरकार का सबसे महत्वकांक्षी कार्यक्रम है राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा। इसके लिए 10,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा 80,000 करोड़ खाद्य सब्सिडी अलग है। यानी कुल मिला कर 90,000 करोड़ रुपये खाद्य सब्सिडी के लिए रखे गये हैं। इस विधेयक को बजट सत्र में ही पास कराने की सरकारी मंशा है। इसका उद्देश्य देश की 67% जनता को सस्ते दरों पर अनाज उपलब्ध कराना है। इसके पारित होते ही खाद्य सुरक्षा एक कानूनी अधिकार बन जायेगा। इसके तहत गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों को चावल तीन रुपये प्रति किलोग्राम में, गेहूँ दो रुपये में और मोटा अनाज एक रुपये में देने का लक्ष्य है।
इस योजना में अन्य वर्ग भी शामिल किये जायेंगे, जिन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य की 50% कीमत पर अनाज मुहैया कराया जायेगा। इसके तहत 75% ग्रामीण आबादी और 50% शहरी आबादी को लाभ पहुँचाने का लक्ष्य है। अनेक जानकारों की राय है कि खाद्य सुरक्षा कानून बनने पर इसे लागू करने के लिए भारी राशि की दरकार होगी। उस हिसाब से 10,000 करोड़ रुपये की राशि बहुत कम है। लेकिन इस योजना को लागू करने में ही 7-8 महीने निकल जायेंगे। इस तरह दिसंबर 2013 या उसके बाद से ही 67% लोगों को सस्ते नये दामों पर अनाज उपलब्ध होगा। लिहाजा 2013-14 में 3-4 महीनों के लिए 10,000 करोड़ रुपये पर्याप्त हैं। सरकारी आर्थिक नीतियों से आर्थिक असमानता बढ़ रही है। शहर और गाँवों में सीमांत मजदूरों की संख्या लगातार बढ़ी है। ऐसे में खाद्य सुरक्षा को कानूनी अधिकार बनाना एक ऐतिहासिक कदम है।
किसानों को पैसा, पर ठोस नीति नहीं
वित्त मंत्री ने मेहनती किसानों को धन्यवाद तो जरूर दिया है, जिनके कठिन परिश्रम से कृषि उत्पादन अच्छा बना रहा है। लेकिन बजट में कृषि विकास के लिए किसी ठोस कार्यक्रम या दृष्टि का अभाव है। कृषि मंत्रालय को संशोधित अनुमान से 22% अधिक धन आवंटित किया गया है। कृषि ऋण देने के लक्ष्य को 1.25 लाख करोड़ रुपये बढ़ा कर सात लाख करोड़ रुपये किया गया है, लेकिन सीमांत किसानों को ऋण कैसे मिलेगा, इसका कोई ठोस उपाय हमेशा की तरह इस बजट से भी गायब है। संभवत: इन्हें कांट्रैक्ट खेती के लिए अभिशप्त किया जा रहा है।
ऋण संबंधी योजनाओं के फायदों के लिए निजी बैंकों को भी शामिल किया गया है, यानी जो किसान समय से ऋण चुका रहे हैं, उन्हें ब्याज की राहत अन्य निजी बैंकों के माध्यम से भी दी जा सकेगी, जो अब तक केवल राष्ट्रीयकृत बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और सहकारी बैंकों द्वारा प्रदत्त ऋणों पर ही मिलता था। पूर्वी भारत में हरित क्रांति के लिए आवंटन बढ़ाया गया है। इससे चावल की उत्पादकता बढ़ाने का लक्ष्य है। हरित क्रांति के मूल राज्यों में कृषि ठहराव से जूझ रही है। जल संसाधनों के अति दोहन की समस्या विकराल हो रही है। इस क्षेत्र में फसल विविधता लाने के लिए 500 करोड़ रुपये दिये गये हैं। न्यूट्री कृषि (सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे लौह, प्रोटीन, जिंक आदि) को बढ़ावा देने के लिए 200 करोड़ रुपये के कोष का सृजन किया है। लेकिन कृषि में निवेश बढ़ाने के लिए किसी कारगर योजना का नितांत अभाव खटकता है।
बचत और निवेश को प्रोत्साहन
आर्थिक विकास दर को तेज गति पर लाने के लिए अनिवार्य है कि बचत और निवेश में तेजी आये। खास तौर से पिछले दो सालों में बचत और निवेश में चिंताजनक गिरावट दर्ज हुई है। विकास इंजन को शुरू करने वाली चाभी घरेलू और विदेशी निवेशकों से ज्यादा-से-ज्यादा निवेश जुटाने में है।
वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में माना है कि कोई बड़ा देश जोरदार विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) क्षेत्र के बिना वास्तव में विकसित देश नहीं बन सकता है। वित्त मंत्री ने ऐलान किया है कि जो विनिर्माण कंपनी अप्रैल 2013 से मार्च 2015 तक की अवधि में संयंत्र और मशीनों में 100 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश करेगी, उसे 15% निवेश भत्ता मिलेगा। अनुमान है कि इससे देश की बड़ी कंपनियों को 25,000 करोड़ रुपये से अधिक लाभ होगा।
कुछ उपबंधों के साथ 25 लाख रुपये तक के गृह ऋण (होम लोन) पर मकान खरीदने वालों को एक लाख रुपये की अतिरिक्त कर छूट देने से मकानों की बिक्री बढ़ेगी, जिससे रियल एस्टेट क्षेत्र को राहत मिल सकती है।
महँगाई की तेज मार के कारण घरेलू बचत में चितंनीय गिरावट आयी है। बचत-निवेश का रुझान भू-संपदा और स्वर्ण की ओर बढ़ा है। इससे वित्तीय बचत को तेज झटका लगा है। वित्तीय बचत को प्रोत्साहित करने के लिए वित्त मंत्री ने बजट में सराहनीय कदम उठाये हैं। इन कदमों का उद्देश्य सोने की खरीद को हतोत्साहित करना है। राजीव गाँधी इक्विटी बचत योजना (आरजीईएसएस) में कर छूट की अवधि लगातार तीन साल तक कर दी गयी है। इसके अलावा अब सालाना 12 लाख रुपये तक की आय वालों को इस योजना का लाभ उठाने की अनुमति होगी। वित्तीय बचत को बढ़ाने के लिए मुद्रास्फीति सूचकांकित (इंडेक्स्ड) बांड या प्रमाण-पत्र लाने का नायाब प्रस्ताव वित्त मंत्री ने पेश किया है। इससे खास कर गरीबों और मध्यमवर्गीय जनता की बचत पर मुद्रास्फीति का असर कम किया जा सकेगा। यह बांड या प्रमाण-पत्र एक जून से लाने की तैयारी है। इसमें मुद्रास्फीति बढऩे के साथ ही ब्याज भुगतान बढ़ाने का बंदोबस्त होगा। लेकिन जानकारों का मानना है कि इसकी अवधि 3-5 साल से अधिक होने पर इसमें अपेक्षित परिणाम मिलने में कठिनाई होगी। खुदरा भारतीय निवेशक लंबी अवधि के वित्तीय उत्पादों में निवेश से कतराते हैं।
विदेशी पूँजी निवेश को बढ़ाने के लिए कई उपाय वित्त मंत्री ने अपने बजट में किये हैं। कानूनों को अधिक पारदर्शी बनाने की बात उन्होंने बारम्बार कही है। उनको मालूम है कि चालू खाते के घाटे को साधने के लिए उन्हें 75 अरब डॉलर की आवश्यकता होगी। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि विदेशी निवेश आज बेहद जरूरी है। लेकिन चालू खाते के घाटे को सीमित करने का कोई उपाय उन्होंने बजट में घोषित नहीं किया है। शायद यह कार्य उन्होंने अप्रैल में आने वाली विदेश व्यापार नीति पर छोड़ दिया है। बीमा व्यवसाय का संजाल गाँव तक फैलाने के लिए उन्हें कई उपक्रम किये हैं। बीमा विधेयक पास होने की पूरी उम्मीद वित्त मंत्री को है। इस विधेयक के पारित होते ही भारी विदेशी निवेश आने का भरोसा सरकार को है।
विकास दर को पुनर्जीवित करने के लिए अनेक प्रयास वित्त मंत्री ने किये हैं। लेकिन उनके बजट का भविष्य मुद्रास्फीति की दर और डॉलर की कीमत पर टिका है। ये दोनों कारक उनके हाथों में नहीं हैं। यदि ये दोनों बेकाबू रहते हैं तो बजट अनुमानों का हश्र तय है।
(निवेश मंथन, मार्च 2013)