राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक :
वित्त मंत्री पी चिदंबरम के इस बजट का राजनीतिक पैगाम साफ है कि समावेशी विकास के औजार को कांग्रेस चुनावी ढाल बनायेगी और विपक्ष, खास तौर पर भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के सबसे प्रबल दावेदार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रहारों को भोथरा करेगी।
नरेंद्र मोदी ने हाल ही में संपन्न गुजरात विधानसभा चुनावों में गुजरात के तेज विकास को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश किया था। तभी से उन्होंने विकास को अपनी रणनीति का सबसे अहम हिस्सा बना लिया है। नरेंद्र मोदी अच्छी तरह जानते हैं कि हिंदुत्व के एजेंडे से लोकसभा में भारी सफलता हासिल नहीं की जा सकती है, क्योंकि मंडल कार्ड के सामने हिंदू कार्ड निस्तेज हो जाता है। उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है।
पर केवल विकास कार्ड से चुनावी राजनीति को फतह कर पाना नामुनकिन है। भाजपा ने 2004 के लोकसभा चुनाव में %शाइनिंग इंडिया% का कार्ड खेला था और भारतीय चुनाव इतिहास में इसे लेकर सबसे बड़ा मीडिया अभियान छेड़ा था। तब किसी भी राजनीतिक पंडित को विश्वास नहीं था कि लोकसभा चुनाव में भाजपा सत्ता से हाथ धो बैठेगी। इससे पहले आंध्र में तेलुगु देशम के मुख्यमंत्री चंद्रवाबू नायडू भी विकास के कार्ड पर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथों बुरी तरह परास्त हो गये थे, जिन्हें विकास का पोस्टर-बॉय माना जाता था।
अब प्रधानमंत्री पद के लिए उभरे भाजपा के सबसे प्रबलतम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी विकास के %गुजरात मॉडल% से कांग्रेस को ही नहीं, बल्कि भारतीय जनता पार्टी में अपने प्रबल प्रतिद्वंदियों को भी शिकस्त देना चाहते हैं। इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए कि शहरी युवाओं में नरेंद्र मोदी अन्य नेताओं से बहुत ज्यादा लोकप्रिय हैं। अब यूपीए सरकार के इस बजट ने साफ कर दिया है कि कांग्रेस चुनावी रणभूमि पर समावेशी विकास ही नरेंद्र मोदी को घेरेगी।
वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने आगामी लोकसभा चुनाव के पहले के इस अंतिम बजट में साफ शब्दों में घोषणा की है कि उन्हें समावेशी और स्थायी विकास के साथ उच्च वृद्धि को हासिल करना है। इसी मूल मंत्र की आड़ में उन्होंने भाजपा के विकास पुरुष नरेंद्र मोदी का नाम लिये बिना उन पर तेज हमला किया है। उनके बजट भाषण में पैरा आठ गौरतलब है - %हमारे पास तेजी से वृद्धि कर रहे राज्यों के उदाहरण हैं। किंतु महिलाओं, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अल्पसंख्यकों और कुछ पिछड़े वर्गों को पीछे छोड़ दिया गया है। यूपीए सरकार मानव विकास निर्देशकों के सुधार पर बल देकर देश के समावेशी विकास में विश्वास करती है। मैं आशा करता हूँ कि यह बजट हमारी इस प्रतिबद्धता का दूसरा प्रमाण होगा।’ इस प्रतिबद्धता के कई अक्स उनके बजट में देखने को मिलते हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता निरंतर नरेंद्र मोदी के स्वघोषित विकास के गुजरात मॉडल की कटु आलोचना करते रहे हैं। गुजरात मॉडल की सबसे बड़ी खामी यह है कि तेज आर्थिक वृद्धि के बावजूद मोदी का अल्पसंख्यकों पर भरोसा कायम नहीं हो पाया है। गुजरात विधानसभा चुनावों में एक भी मुस्लिम को नरेंद्र मोदी ने टिकट नहीं दिया। गुजरात में महिलाओं में एनीमिया रोग का स्तर ज्यादा बना हुआ है। इसके लिए नरेंद्र मोदी कहते हैं कि दुबला-पतला होने की चाहत से गुजरात की लड़कियाँ एनीमिया की शिकार हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं की कटु आलोचनाओं से नरेंद्र मोदी की कुंठा अब साफ झलकती है। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्यों को पाँच सितारा कार्यकर्ता बताने वाला उनका बयान इसका उदाहरण है। लेकिन नरेंद्र मोदी ऐसा करते समय भूल गये कि कांग्रेस जो भी उपलब्धियाँ गिनाती है, वे मूलत: इसी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की देन हैं, जैसे सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, मनेरगा और अब खाद्य सुरक्षा विधेयक आदि।
यद्यपि भारी राजकोषीय रुकावटों के बीच समावेशी विकास के अग्रणी कार्यक्रमों के लिए वित्त मंत्री ने पर्याप्त धन दिया है। महिलाओं और युवाओं को खुश करने के लिए उपायों की घोषणा की है। महिलाओं के लिए निर्भया फंड, पहली महिला बैंक की घोषणाएँ इसी उद्देश्य से की गयी है। युवाओं को बेहतर नौकरियों का सपना दिखाया गया है। लेकिन महँगाई और भ्रष्टाचार के दंश से कांग्रेस क्षत-विक्षत है। कांग्रेस की इन विफलताओं से नरेंद्र मोदी को ताकत मिल रही है। कांग्रेस के समावेशी विकास की धारणा राजनीतिक ज्यादा, वास्तविक कम दिखती है। वैसे समावेशी विकास और मोदी के गुजरात मॉड़ल की यह लड़ाई दिलचस्प होगी। यदि मोदी सुशासन को ज्यादा बड़ा मुद्दा बना कर उतरें तो शह और मात के खेल में उन्हें आसानी होगी।
(निवेश मंथन, मार्च 2013)