लगता है मानो स्विटजरलैंड की अर्थव्यवस्था केवल दुनिया भर के काले धन का स्वर्ग बने रहने पर ही टिकी है और इस स्वर्ग को बचाये रखने की भरसक कोशिश चल रही है।
कई देशों की सरकारों ने स्विटजरलैंड को काला धन जमा करने वाले स्विस बैंक खातों का ब्योरा देने की संधियों के लिए मजबूर किया, तो अब यहाँ के बैंक इस धंधे को जारी रखने के लिए दूसरे रास्तों की तलाश में लग गये हैं। ऐसी खबरें आ रही हैं कि इन बैंकों ने बचत, जमा और निवेश खातों के बदले सेफ डिपॉजिट बॉक्स (मतलब लॉकर) की सुविधा से धन-कुबेरों को आकर्षित करना शुरू किया है। ये बैंक अपने संभावित ग्राहकों से कह रहे हैं कि विभिन्न सरकारों से जो संधियाँ की गयी हैं, उनमें सेफ डिपॉजिट बॉक्स शामिल नहीं हैं, लिहाजा उनमें रखी गयी चीजों की जानकारी संबंधित देशों की सरकारों को देने की मजबूरी उन्हें नहीं होगी। एक तरह से वे धनकुबेरों को काला धन छिपाने का एक नया ‘सुरक्षित’ तरीका बता रहे हैं।
कहा जा रहा है कि स्विस बैंकों के ग्राहक इन लॉकरों में सोने की छड़ें, हीरा, विदेशी मुद्रा में नकदी, पेंटिंग जैसी चीजें रख सकते हैं। इस तरह चूहे-बिल्ली के खेल में स्विस बैंक अपने ग्राहकों को आयकर अधिकारियों की नजर से दूर रहने का एक नया नुस्खा बता रहे हैं। सीबीडीटी के एक पूर्व चेयरमैन ने निवेश मंथन से बातचीत में माना कि स्विस बैंक लॉकरों तक पहुँचना आयकर अधिकारियों के लिए काफी मुश्किल होगा। लेकिन उन्होंने सवाल किया कि भारतीय बैंकों के लॉकरों में ही क्या कम काला धन बंद है! अभी तो भारतीय लॉकरों में बंद चीजों के बारे में जान पाना भी मुश्किल होता है, क्योंकि जब तक बाकायदा आयकर छापा (सर्च एंड सीजर) न डाला जाये, तब तक लॉकर खुलवाना संभव नहीं।
सहारा पर सख्ती के निर्देश
सर्वोच्च न्यायालय का ताजा आदेश सहारा समूह की दिक्कतें बढ़ा सकता है। सेबी ने स्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद लाखों निवेशकों को कुल करीब 24,000 करोड़ रुपये नहीं लौटाने के चलते सहारा समूह पर अवमानना का मुकदमा चलाने अर्जी दाखिल की थी। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने सहारा समूह को दो हफ्तों में अपना हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है। लेकिन साथ ही न्यायालय ने सेबी को भी फटकारा कि उसने सहारा समूह पर कार्रवाई क्यों नहीं की है। न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि सेबी को सहारा समूह की संपत्तियाँ जब्त करने और उसके खाते से लेनदेन रोकने का अधिकार है।
अंकित फाइनेंशियल की छप्पड़-फाड़ कमाई!
लगता है कि अंकित फाइनेंशियल पर इन दिनों बाजार शब्दश: छप्पड़ फाड़ कर पैसे लुटा रहा है। बाजार में चल रही अटकलों पर अगर भरोसा करें तो अक्टूबर 2012 के पहले हफ्ते में एमके ग्लोबल के 650 करोड़ रुपये के अनचाहे सौदे (फ्रीक ट्रेड) में अंकित फाइनेंशियल को एक बड़ा फायदा मिल गया था। शुक्रवार एक फरवरी 2013 को इसी तरह टाटा मोटर्स और अल्ट्राटेक के शेयरों में ऐसे ही अनचाहे सौदों के चलते अचानक आयी गिरावट में भी फायदा कमाने वालों में अंकित फाइनेंशियल का नाम लिया जा रहा है। इन दोनों शेयरों में एक फरवरी को लगभग 10-10 प्रतिशत तक की गिरावट आयी, हालाँकि बाजार बंद होते-होते इनकी गिरावट कुछ हल्की हो गयी। बताया जा रहा है कि इनमें यह अचानक गिरावट रेलिगेयर कैपिटल मार्केट्स के अनचाहे सौदों की वजह से आयी। सॉफ्टवेयर की गड़बड़ी के चलते अपने-आप ही ये सौदे हो गये। खैर, बाजार में तो इस बात को लेकर चटखारे लिये जा रहे हैं कि अंकित फाइनेंशियल पर किस्मत इतनी मेहरबान कैसे है!
एलआईसी : मुनाफावसूली या विनिवेश की तैयारी?
अक्टूबर-दिसंबर 2012 की तिमाही में भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) ने निफ्टी की 50 में से 27 कंपनियों के शेयरों की करीब 8000 करोड़ रुपये की बिकवाली की है। जो शेयर एलआईसी की बिकवाली की सूची में रहे हैं, उनमें महिंद्रा एंड महिंद्रा, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, टाटा मोटर्स, एलएंडटी, एचडीएफसी, विप्रो, एसबीआई, मारुति सुजुकी, डॉ. रेड्डीज और बजाज ऑटो के नाम विशेष हैं। जिनमें एलआईसी ने 500 करोड़ रुपये से लेकर 1,000 करोड़ रुपये तक की बड़ी बिकवाली की है। एलआईसी की बिकवाली वाली सूची में इसके अलावा अंबुजा सीमेंट्स, सिप्ला, टीसीएस और ल्युपिन जैसे नाम भी हैं। लेकिन इस दौरान एलआईसी ने निफ्टी के 14 शेयरों में खरीदारी भी की, जिनमें इन्फोसिस, रिलायंस इंडस्ट्रीज, कैर्न इंडिया, आईटीसी और हीरो मोटोकॉर्प के नाम खास तौर पर लिये जा सकते हैं। चुनिंदा 14 शेयरों में एलआईसी ने कुल मिला कर 4,000 करोड़ रुपये की खरीदारी की। इस तरह निफ्टी के शेयरों में इस खरीद-बिक्री ने शुद्ध रूप से 4,000 करोड़ रुपये की नकदी जुटायी है। जानकारों के बीच बहस चल रही है कि यह एलआईसी की मुनाफावसूली है या सरकार की तेज होती विनिवेश प्रक्रिया में पैसा लगाने की तैयारी!
घटने लगीं बैंकों की ब्याज दरें
भारतीय रिजर्व बैंक के नीतिगत ब्याज दरों में कटौती किये जाने के बाद से बैंकों ने भी कर्ज पर ब्याज दरों में कमी करने का सिलसिला शुरू कर दिया है। एसबीआई ने 0.50% अंक की कमी की है, जबकि एचडीएफसी बैंक ने कार ऋण पर ब्याज दरों में 0.25% अंक और दोपहिया वाहनों के ऋण पर 0.50% अंक की कटौती की है। पीएनबी ने अपनी आधार (बेस) दर को 0.25% अंक घटा कर 10.25% कर दिया है, जिससे उसके सभी ऋणों की ब्याज दरों पर असर पड़ेगा। बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने भी अपनी आधार दर में 0.25% अंक की कटौती की है।
(निवेश मंथन, फरवरी 2013)