दीपावली के दिन मुहुर्त कारोबार भले ही केवल प्रतीकात्मक हो, लेकिन अक्सर हमें यह दिखता है कि भारतीय शेयर बाजार दीपावली के आसपास एक नयी दिशा चुनने की कोशिश करता है।
अक्टूबर 2008 को कौन भूल सकता है? उस साल दीपावली से एक दिन पहले ही तो सेंसेक्स ने 7,697 की तलहटी छुई थी। वहाँ से अगली दीपावली तक सेंसेक्स 17,000 के ऊपर नजर आ रहा था। अगले साल पाँच नवंबर 2010 को दीपावली के ही दिन सेंसेक्स ने 21,109 का और निफ्टी ने 6339 का शिखर छुआ। बाजार उस स्तर को वापस पाने का अब भी इंतजार कर रहा है। बाजार की असली दीपावली तो तभी मनेगी जब यह अपने पिछले ऐतिहासिक शिखर को पार कर सकेगा।
पिछले साल सेंसेक्स ने 15,136 और निफ्टी ने 4531 की तलहटी दिसंबर के अंत में बनायी, लेकिन सेंसेक्स 15,000 से 16,000 के बीच के निचले स्तरों को अगस्त 2011 से ही बार-बार छूता रहा। अगर किसी ने अगस्त से दिसंबर 2011 के बीच बार-बार मिलने वाले इन मौकों का अच्छा इस्तेमाल किया हो तो यह दीपावली निश्चित रूप से उसके लिए अच्छे मुनाफे से जगमग होगी।
आप चाहें तो कह सकते हैं कि इस साल अक्टूबर के पहले हफ्ते में ही 5800 से ऊपर के स्तर छू कर निफ्टी ने बाजार की दीपावली समय से कुछ पहले मना दी। लेकिन प्रश्न यह है कि शेयर बाजार सच्चे अर्थों में अपनी दीपावली कब मनायेगा, कब यह पिछले रिकॉर्ड ऊपरी स्तरों को छू सकेगा, उसे पार कर सकेगा? अगली दीपावली तक बाजार की संभावनाएँ कैसी हैं?
आगे की दिशा
हाल में आर्थिक सुधारों को लेकर सरकार ने जो कदम उठाये हैं, उनसे बाजार का भरोसा बढ़ा है। आम तौर पर बाजार के जानकारों ने अगले एक साल के लिए सकारात्मक उम्मीदें रखनी शुरू कर दी हैं। एंजेल ब्रोकिंग के सीएमडी दिनेश ठक्कर कहते हैं, ‘मेरा मानना है कि सरकार आर्थिक सुधारों की दिशा में अपने प्रयासों को जारी रखेगी। इससे निवेश चक्र वापस सुधरेगा।' ठक्कर मानते हैं कि मौजूदा स्तरों से सेंसेक्स का आगे का लक्ष्य 20,300 तक का है। साथ ही उनका यह भी मत है कि अप्रैल 2013 से लेकर अगली दीपावली तक भारतीय शेयर बाजार एक नया ऐतिहासिक शिखर छू सकता है।
कुछ समय पहले तक बाजार के बारे में नकारात्मक संभावनाएँ देखने वाले विश्लेषकों का नजरिया भी हाल में बदला है। एसएमसी ग्लोबल के रिसर्च प्रमुख जगन्नादम तुनुगुंतला कहते हैं, ‘मैं अब एकदम उत्साहित तेजडिय़ा तो नहीं हूँ, लेकिन अब मैं मंदी के बदले तेजी की राय रखना पसंद कर रहा हूँ।' उनके मुताबिक अर्थव्यवस्था में सुधार के ज्यादा संकेत नहीं मिलने के बावजूद लोग अनिच्छुक तेजडिय़ा (बुल) बन रहे हैं!
जगन्नादम के विचारों में बदलाव के पीछे भी मुख्य कारण सरकारी रवैये का बदलना है। उनके मुताबिक बाजार के बारे में उनकी राय सितंबर की शुरुआत से बदलने लगी। वे कहते हैं, सरकार ऐसी स्थिति में आ गयी थी, जहाँ उसके सामने कुछ कदम उठाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचा था। सितंबर में सरकार ने फैसले लेने शुरू किये, जिससे बाजार की कहानी बदल गयी। लेकिन इसके जारी रहने की शर्त यही है कि सरकार आगे भी इसी दिशा में बढ़ती रहे। अगर आगे और कदम नहीं उठाये गये तो यह बाजार के लिए केवल एक बार की उछाल वाली बात होगी।
अगले एक साल के लिए अब जगन्नादम बाजार को सकारात्मक ही मान रहे हैं। उनके मुताबिक निफ्टी साल भर में कम-से-कम 6500 तक का स्तर छू सकता है। यह स्तर एक साल में कभी भी आ सकता है, ठीक-ठीक किस समय यह कहना मुश्किल होगा।
पर्पललाइन इन्वेस्टमेंट एडवाइजर्स के सीईओ पी के अग्रवाल की राय में अगली दीपावली तक बाजार की चाल अच्छी ही रहनी चाहिए। अग्रवाल कहते हैं, ‘यह तो साफ लगता है कि बाजार पिछले शिखर को छू लेगा और यह इसके ऊपर भी जा सकता है। चुनिंदा शेयर और भी बेहतर लाभ दे सकते हैं। अगले 12 महीनों में सेंसेक्स-निफ्टी का पिछले शिखर को छू पाना तो बिल्कुल संभव लगता है, लेकिन उसे पार कर पाने लायक चाल अभी बाजार में नहीं बनी है। अगर वैसी चाल बन पायी तो यह पिछले शिखर को पार भी कर लेगा, लेकिन पिछले शिखर को छूने की तो काफी संभावना दिख रही है। अगली दीवाली से पहले यह कभी भी उस स्तर तक जा सकता है।'
क्या बदल गया है बाजार का चक्र?
अग्रवाल कहते हैं कि उन्हें बाजार की मजबूती का भरोसा न केवल तकनीकी चार्ट के विश्लेषण से, बल्कि बाजार के लंबी अवधि के चक्र को देख कर भी बन पा रहा है। अगर लंबी अवधि के चक्र ऊपर की दिशा में हों तो छोटी अवधि के चक्र उससे उल्टे नहीं जा सकते। इसे मिसाल के तौर पर ऐसे समझ सकते हैं कि किसी कंपनी में अगर बड़े अधिकारी ने कुछ कहा हो तो छोटे अधिकारी उससे अलग काम नहीं कर सकते। अगर लंबी अवधि का चक्र किसी एक दिशा में बढ़ रहा है तो रोजमर्रा का उतार-चढ़ाव उसके मुताबिक ही चलेगा। लंबी अवधि के चक्र से मिलने वाले संकेत काफी सकारात्मक हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि बाजार रोज ही ऊपर चढ़ेगा। हो सकता है कि अगले ही दिन 100 अंक की गिरावट आ जाये।
हालाँकि अग्रवाल मानते हैं कि लंबी अवधि के इस चक्र के मुताबिक अभी बाजार में चाल नहीं बनी है। वे कहते हैं, ‘हो सकता है कि अगर अगले महीने आप मुझसे पूछें तो मैं कह दूँ कि निफ्टी 6300 के ऊपर भी चला जायेगा। लेकिन अभी यह वैसी संभावना की सीमा-रेखा पर है। इसलिए अभी मैं यह पक्के भरोसे से नहीं कह पा रहा कि अगली दीवाली तक बाजार 6300 को निर्णायक ढंग से पार कर लेगा या नहीं।'
बजट से उम्मीद, चुनाव का डर
जानकारों की राय मोटे तौर पर यह है कि दीपावली से लेकर बजट तक का समय सकारात्मक चाल का हो सकता है। आने वाला बजट बाजार की चाल को और तेज करेगा या तोड़ेगा, यह इस पर निर्भर है कि सरकार कैसा बजट लाती है। निवेश सलाहकार गुल टेकचंदानी कहते हैं कि भारतीय शेयर बाजार आने वाले बजट तक अच्छा ही चलना चाहिए। लेकिन उनके मुताबिक भारतीय शेयर बाजार में इस दौरान आने वाली उछाल को केवल तात्कालिक तेजी मानना होगा। उनका कहना है, ‘शायद बजट तक निफ्टी 6300 के आसपास तक चला जाये। लेकिन बजट कैसा आता है, यह देखना होगा। अगर बजट को लोकलुभावन बनाने के बदले सरकार ठीक से काम करे तो बाजार और ऊपर जा सकेगा।'
जगन्नादम कहते हैं कि सरकार के सामने अब खोने के लिए ज्यादा कुछ बाकी नहीं है। उसके सामने केवल एक साल का जोखिम बचा है। इसलिए अगर वह चाहे तो आगे और भी साहसिक कदम उठा सकती है। सरकार के गिर जाने का खतरा अब उसके लिए पहले जैसा कोई बड़ा डर नहीं है। अगर सरकार आज भी अपना बहुमत खो दे तो चुनाव करीब छह महीने में ही होंगे। इस तरह उसके लिए केवल छह महीने का कार्यकाल ही तो दाँव पर है। लेकिन यह बात भी सही है कि सरकार अब ज्यादा-से-ज्यादा बजट तक ही कुछ ठोस कदम उठा सकती है। उसके बाद वह चुनावी मुद्रा में आ जायेगी।
भले ही फरवरी 2013 का बजट अगले आम चुनाव से पहले का आखिरी बजट हो, लेकिन जगन्नादम उम्मीद करते हैं कि सरकार के पास कुछ ठोस आर्थिक कदम उठाने के लिए इसमें पर्याप्त गुंजाइश होगी। उनका अनुमान है कि शायद यह बजट एकदम चुनावी नहीं होगा। वे कहते हैं, ‘अगर चुनाव मई 2014 में होने हैं, तो फरवरी 2013 के बजट को बिल्कुल चुनावी बजट बनाने की जरूरत उन्हें नहीं होगी। उनके पास 15 महीनों का अच्छा-खासा समय हाथ में होगा। लेकिन अगर सरकार फरवरी 2013 के बजट में ही एकदम चुनावी मुद्रा में आ जाये, तो जरूर निफ्टी के लिए 6500 के लक्ष्य को पाना मुश्किल होगा। अगर वे फरवरी के बजट में खाद्य सुरक्षा विधेयक लेकर आ जायें तो शायद अगले तीन साल में भी 6500 का लक्ष्य न मिले।'
चुनाव के समय पर निर्भर चाल
बाजार में कितने समय तक के लिए सकारात्मक उम्मीदें रखें, इसे जानकार आगामी चुनाव के समय से जोड़ कर देख रहे हैं। जगन्नादम कहते हैं, ‘अगर आपको लगता है कि चुनाव 2014 में होंगे तो 2013 का साल बाजार के लिए अच्छा रहने की उम्मीद कर सकते हैं। अगर किसी को लगता हो कि चुनाव 2013 में ही होने वाले हैं, तो उसे बाजार में अभी उदासीन होना चाहिए। मुझे लग रहा है कि चुनाव 2014 में होंगे, इसलिए 2013 को लेकर मैं तेजी के नजरिये से चल रहा हूँ।'
हालाँकि अग्रवाल राजनीतिक अनिश्चितता और बुनियादी आर्थिक पहलुओं के कमजोर रहने के बावजूद बाजार मजबूत होने की संभावना देखते हैं। वे मानते हैं कि बुनियादी पहलू अभी अच्छे नहीं लग रहे और राजनीतिक खबरों के चलते बाजार कभी भी उतार-चढ़ाव का शिकार बन सकता है। इन सबके बावजूद उनका कहना है कि निफ्टी पिछला शिखर छूने की ओर बढ़ेगा। वे कहते हैं, ‘अगर बाजार ने चाल पकड़ ली तो सरकार का क्या होगा, अर्थव्यवस्था का क्या होगा और सरकारी घाटे (फिस्कल डेफिसिट) की कैसी स्थिति रहेगी जैसे सारे सवाल धरे रह जायेंगे। हो सकता है कि बुनियादी पहलू सुधरने शुरू हो जायें। आज यह कहा जा रहा है कि आगे किसकी सरकार बनेगी, यह पता नहीं है। कोई यह तो नहीं कह रहा है कि कोई सरकार नहीं आयेगी या अच्छी सरकार नहीं आयेगी। यह समझना चाहिए कि अनिश्चितता और जोखिम दो अलग तरह की बातें हैं।'
तकनीकी और बुनियादी परिदृश्य के इस विरोधाभास को कैसे समझा जाये? अग्रवाल कहते हैं कि या तो बाजार इन बुनियादी पहलुओं को बिल्कुल नजरअंदाज कर देगा, या ऐसा भी हो सकता है कि जैसे-जैसे ऊपरी स्तर आयें, तब तक बुनियादी पहलुओं में भी सुधार आने लगे। मिसाल के तौर पर अगर जीडीपी बढऩे की दर 6.5% हो जाये और सरकार चाहे जैसी भी खराब बन जाये तो क्या फर्क पड़ेगा? हमें जो बुनियादी पहलू खराब लग रहे हैं, हो सकता है कि वे धीरे-धीरे सुधर रहे हों और इसीलिए तकनीकी संकेतक सकारात्मक रुझान बता रहे हों।
क्या अर्थव्यवस्था का चक्र भी बदला?
भारत में इस समय आर्थिक धीमेपन की एक बड़ी वजह निवेश चक्र का धीमा पडऩा है। बीते चार सालों में कंपनियों के पास नकदी तो जमा हो रही थी, लेकिन वे उसका निवेश नहीं कर रहे थे। जगन्नादम मानते हैं कि अब ये कंपनियाँ इस नकदी को निवेश के लिए इस्तेमाल करना शुरू करेंगी। वे कहते हैं, ‘निवेश चक्र यहाँ से वापस सँभलने वाला है या नहीं, इस बात पर बहस हो सकती है, लेकिन मुझे लगता है कि ऐसा होना चाहिए।'
वहीं अग्रवाल कहते हैं कि तिमाही नतीजे अर्थव्यवस्था का चक्र बदलने के कुछ संकेत जरूर दे रहे हैं, हालाँकि मैं अभी उन पर ज्यादा भरोसा नहीं करूँगा। ये संकेत काफी शुरुआती हैं। बाजार में चाल बननी शुरू हो गयी है या नहीं, इस बारे में बुनियादी और तकनीकी दोनों लिहाज से सटीक ढंग से कुछ कह पाने के लिए अभी एक तिमाही तक इंतजार करना होगा। अभी हम इतना कह सकते हैं कि शायद सबसे बुरा दौर बीत गया है और ऐसे संकेत हैं कि अर्थव्यवस्था ने अपनी तलहटी देख ली है।
जब भी तलहटी बन रही होती है, ठीक उस समय इसका अनुमान लगाना मुश्किल होता है। अभी विकास दर 5.5% के आसपास है। जब तक यह 6% या 6.1% न हो जाये, तब तक नहीं कहा जा सकता कि इसने तलहटी बना ली है। जानकारों को सरकारी आँकड़ों पर भरोसा भी कम है, क्योंकि क्या पता कहीं आगे चल कर पिछली तिमाही के आँकड़े संशोधित हो जायें!
लेकिन अग्रवाल कहते हैं, ‘बाजार अपने ही ढंग से समझ लेता है कि अर्थव्यवस्था का चक्र बदल रहा है। आज अगर आप शाम को साढ़े आठ बजे नोएडा के किसी अच्छे रेस्टोरेंट में चले जायें तो आपको बैठने की जगह नहीं मिलेगी, अपनी बारी आने का इंतजार करना होगा। बात यह है कि अर्थव्यवस्था में खपत अब भी अच्छी रफ्तार से जारी है। दिक्कत यह है कि हमारी समानांतर अर्थव्यवस्था सरकारी आँकड़ों में पूरी तरह से नजर नहीं आती है। इसीलिए रिजर्व बैंक (आरबीआई) को भी पता है कि उसकी क्या सीमाएँ हैं। उसे पता है कि ब्याज दरें घटाने-बढ़ाने से स्थिति पर कुछ खास फर्क नहीं पडऩे वाला है। इसीलिए वह दुविधा में है कि क्या करे।'
मोटे तौर पर अग्रवाल मानते हैं कि अर्थव्यवस्था की हालत धीरे-धीरे बदल रही है। लेकिन हर चक्र में बाजार जब पलटता है तो लोग उसे समझ नहीं पाते। इस साल शेयर बाजार में निफ्टी करीब 4500 के स्तर से 5800 तक आ गया, लेकिन इस चाल का कम ही लोगों को कोई अंदाजा लगा होगा। वे कहते हैं, ‘लोगों को कोई रुझान तभी ध्यान में आता है, जब काफी जबरदस्त चाल आ जाती है और वह रुझान पूरा होने के करीब होता है। जब अचानक अर्थव्यवस्था में रफ्तार आयेगी, जब हर व्यक्ति 8.5% और 9% विकास दर (जीडीपी) की बात करने लगेगा, तब लोग जागेंगे। लेकिन वह तो वापस बाजार में धीमापन लौटने के करीब का समय होगा।'
इसीलिए जगन्नादम कहते हैं, ‘अब यह अपने शेयर पोर्टफोलिओ को लेकर कुछ जोखिम उठाने का समय है। कितना और कैसा जोखिम उठाना है, यह लोगों की व्यक्तिगत पसंद हो सकती है।' अब सवाल है कि ऐसे बाजार में आप किन शेयरों को पसंद करें? आपकी मदद के लिए अगले पन्नों पर पाँच विशेषज्ञ बता रहे हैं अपनी पसंद के दो-दो खास शेयर।
(निवेश मंथन, नवंबर 2012)