राजीव रंजन झा :
महीने भर पहले निवेश मंथन के अक्टूबर अंक में मैंने प्रश्न रखा था कि क्या निफ्टी दशहरा-दीपावली तक 6000 पर चला जायेगा?
इस प्रश्न के पीछे बाजार में उस समय दिख रहा उत्साह था, हालाँकि मैंने यह भी लिखा था कि यह तेजी कहीं आसपास ही थम जायेगी या काफी दूर तक जायेगी, इसका अंदाजा लगाना बड़ा मुश्किल है। साथ ही, निफ्टी के दशहरा-दीपावली तक 6000 को छू लेने की शर्त यह थी कि निफ्टी हाल के महीनों की अपनी एक चढ़ती पट्टी (राइजिंग चैनल) से ऊपर निकल सके। मैंने लिखा था कि इस पट्टी के ऊपर निकलने पर एक विस्फोटक उछाल मिल सकती है। पर निफ्टी इस पट्टी की ऊपरी रेखा पर ही अटक गया।
अब पीछे मुड़ कर देखें तो यह समझ में आता है कि लगभग उसी समय बाजार छोटी अवधि के लिए अपना शिखर बना रहा था। यानी एक-डेढ़ महीने पहले बाजार में जो चाल दिख रही थी, वह कुछ हफ्तों के लिए टूटी तो जरूर। अब क्या माना जाये? क्या निफ्टी 6000 के लक्ष्य तक जाने के लिए तैयार नहीं है, या इसने बस कुछ दिन और इंतजार करना बेहतर समझा है? निफ्टी ने पाँच सितंबर के निचले स्तर 5216 से लेकर पाँच अक्टूबर के ऊपरी स्तर 5815 तक की उछाल दर्ज की, यानी केवल एक महीने के अंदर 600 अंक की तेजी आयी। गौरतलब है कि बीमा और पेंशन में एफडीआई जैसे अहम फैसलों के अगले ही दिन बाजार नीचे पलट गया, जबकि आम तौर पर लोगों को उम्मीद थी कि शेयर बाजार को पसंद आने वाले ये फैसले उसे और आगे बढ़ने में मदद करेंगे। हुआ उल्टा। बाजार अगले कुछ हफ्तों के लिए एक बेहद छोटे दायरे में अटक गया। निफ्टी नौ अक्टूबर से 29 अक्टूबर तक 5729-5634 के दायरे में अटका रहा - 100 अंक से भी छोटे दायरे के बीच पूरे 14 सत्र गुजर गये।
यह दायरा टूटा 30 अक्टूबर को, जब भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने दूसरी तिमाही की समीक्षा में रेपो दर और रिवर्स रेपो दर, यानी अपनी नीतिगत ब्याज दरों को नहीं घटाया। इसने नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में जरूर 0.25% अंक की कटौती कर दी, लेकिन बाजार इससे संतुष्ट नहीं हो पाया। दूसरे, बाजार बैंकों के लिए ज्यादा प्रावधान (प्रोविजनिंग) के फैसले से भी घबराया। आरबीआई ने फैसला किया कि बैंक अपने जिन कॉर्पोरेट कर्जों का पुनर्गठन (सीडीआर) करेंगे, उन पर उन्हें मौजूदा 2% के बदले 2.75% प्रावधान करना होगा। प्रावधान करने का सरल मतलब यह है कि बैंक किसी खास मद में एक तय प्रतिशत में रकम निकाल कर अलग रख देते हैं। आरबीआई ने सीडीआर पर बढ़ते जोर की वजह से सावधानी भरा यह कदम उठाया है। लेकिन बाजार की घबराहट यह थी कि इससे बैंकों पर बोझ बढ़ेगा, खास कर सरकारी बैंकों पर।
तकनीकी नजरिये से देखा जाये तो 30 अक्टूबर को निफ्टी ने बीते कई हफ्तों से चल रहा दायरा नीचे की ओर तोड़ा। खास कर 5630 के स्तर पर लोगों की नजर अटकी थी, और वह स्तर टूट गया। जाहिर है कि इससे बाजार में ब्रेकडाउन यानी नीचे की ओर चाल बनने की संभावना बनती थी। जानकारों की राय मोटे तौर पर यह बनी कि इस कमजोरी में निफ्टी कम-से-कम 5500-5550 तक तो फिसलेगा ही। लेकिन 31 अक्टूबर और एक नवंबर के कारोबार में बाजार ने और नीचे फिसलने की कोई हड़बड़ी नहीं दिखायी। दोनों ही दिन निफ्टी 5600 के ऊपर बंद हुआ।
इस तरह भारतीय बाजार ने पहले तो लोगों को ऊपर की ओर छकाया। जब बाजार में आम राय बनने लगी कि निफ्टी 6000 या इसके भी ऊपर जाने वाला है तो यह उस लक्ष्य से पहले ही पलट गया। जब लोगों ने सोचा कि अब तो निफ्टी के नीचे टूटने की बारी है, तो यह नीचे के उन लक्ष्यों की ओर जाने में हिचक रहा है। यह लोगों को छकाने का बाजार का अपना तरीका है।
शेयर मंथन में 24 सितंबर की सुबह मैंने लिखा था कि ‘बाजार को अभी नीचे जाने का मन नहीं है। लेकिन इस समय बाजार में सबको पता चल गया है कि रुझान सकारात्मक है। सबको पता है कि निफ्टी शायद 5900-6000 तक जाने वाला है। जनाब, शेयर बाजार में मुनाफा किसी मंदिर का प्रसाद है क्या जो सबको बँट जायेगा! हाँ, मैंने भी लिखा कि दशहरा-दीवाली तक निफ्टी 6000 के ऊपर जा सकता है। लेकिन क्या बाजार इतनी आसानी से आपके हाथ में लड्डू रख देगा?’ बाजार की आम राय के बारे में मेरी जो आशंका थी, उसे बाजार ने सही साबित किया लेकिन दो हफ्ते बाद।
बाजार की छकाने वाली आदत को लेकर 30 अक्टूबर को भी मैंने शेयर मंथन में लिखा कि %बाजार अपनी अगली चाल पकडऩे से पहले एक बार बुरी तरह छकायेगा। इतना तय है कि बाजार में एक बड़ी चाल आने वाली है। बीते 5 हफ्तों से दबा स्प्रिंग जब छूटेगा तो निफ्टी के चार्ट पर रॉकेट जैसी चाल दिखेगी। लेकिन अपनी असली दिशा में जाने से पहले बाजार एक नकली चाल दिखा कर लोगों को फँसा सकता है। इसका कारण यह है कि निफ्टी के मौजूदा दायरे की सीमाएँ बाजार में बच्चे-बच्चे को रट गयी हैं। ऊपर 5750 पार करने पर तेजी आयेगी, नीचे 5630 टूटने पर मंदी आयेगी, यह अब सबके लिए खुला रहस्य बन गया है। पर बाजार ऐसे खुले रहस्यों पर नहीं चला करता।'
संयोग से जब मैं यह पंक्तियाँ लिख रहा हूँ, ठीक उसी समय बाजार लोगों को छकाने की प्रक्रिया से गुजर रहा है। इसलिए ठीक अगली चाल किधर और कितनी बड़ी होगी, यह कहना बड़ा मुश्किल है। लेकिन कुछ मोटी-मोटी बातें जरूर स्पष्ट हैं।
बाजार की दिशा ऊपर ही
पहली बात यह कि इस समय मध्यम और लंबी अवधि के लिहाज से बाजार की दिशा ऊपर है। पिछले अंक में मैंने दो पट्टियों का जिक्र किया था - एक बड़ी पट्टी और एक छोटी पट्टी। दोनों पट्टियाँ ऊपर चढ़ रही हैं। बड़ी पट्टी की ऊपरी रेखा अक्टूबर 2011 और फरवरी 2012 के शिखरों को मिलाती है, जबकि निचली रेखा दिसंबर 2011 की तलहटी 4531 और मई 2012 की तलहटी को छूती है।
इस बड़ी पट्टी की निचली रेखा नवंबर के अंत तक 5250 के आसपास और दिसंबर के अंत में 5300 के पास होगी। वहीं इसकी ऊपरी रेखा नवंबर के अंत में 6200 के पास और दिसंबर के अंत में 6300 के पास होगी। मतलब अगले 1-2 महीनों में निफ्टी 5250 के नीचे फिसलने पर ही मध्यम से लंबी अवधि के लिए बाजार फिर से कमजोर होगा।
छोटी अवधि यानी 2-4 महीनों के नजरिये से सोचें तो छोटी पट्टी पर ध्यान देना बेहतर है। यह पट्टी भी ऊपर जा रही है। इसकी ऊपरी रेखा अभी 5900 के पास है और नवंबर के अंत में 6050 के पास होगी। इसकी निचली रेखा अभी 5500 के पास है और नवंबर के अंत में 5650 के पास होगी। दरअसल इस पट्टी की निचली रेखा को देख कर भी कई विश्लेषक अंदाजा लगा रहे थे कि 5630 का स्तर टूटने पर निफ्टी इस रेखा को छूने के लिए तो बढ़ेगा ही। अगले कुछ दिनों में ऐसा हो जाये तो कोई आश्चर्य नहीं, मगर अभी तक तो निफ्टी ऐसा करने से बच रहा है।
जब तक निफ्टी इस छोटी पट्टी की निचली रेखा काट कर इससे नीचे न फिसल जाये, तब तक छोटी अवधि के लिए भी बाजार की दिशा को ऊपर ही मानना बेहतर होगा। इसका मतलब यह होगा कि निफ्टी किसी भी गिरावट में इस पट्टी की निचली रेखा पर या उससे पहले ही सहारा लेकर वापस इस पट्टी की ऊपरी रेखा को छूने की ओर बढऩा चाहेगा। इस लिहाज से नवंबर के दौरान 5900-6050 का लक्ष्य निफ्टी के सामने कायम है। अभी निफ्टी 5645 पर है, यानी 5900-6050 का लक्ष्य महज 250-400 अंक दूर है। यह फासला केवल 4.5% से करीब 7% तक दूर है। निफ्टी इतनी दूरी तो अक्सर 2-3 हफ्तों में पार कर लिया करता है।
निफ्टी की यह छोटी पट्टी बीते छह महीनों से चल रही है। अगर अगले चार महीनों तक, यानी फरवरी 2013 के अंत तक निफ्टी इस पट्टी के अंदर ही चलता रह गया, जो बजट का समय होगा, तो उस समय इसे 6100-6500 के बीच कहीं होना चाहिए।
साथ ही, अक्टूबर 2010 के शिखर 6339 से लेकर दिसंबर 2011 की तलहटी 4531 तक की गिरावट की संरचना देखें तो इसमें निफ्टी अभी 61.8% वापसी के स्तर 5649 के आसपास झूल रहा है। अभी यह नहीं कहा जा सकता कि इसने 5649 का स्तर निर्णायक रूप से तोड़ दिया है। अगर यह इसके नीचे कमजोरी दिखाने लगे, तब जरूर 50% वापसी यानी 5435 का स्तर अगला लक्ष्य होगा। लेकिन अगर यह 5649 के ऊपर मजबूती दिखाये तो 80% वापसी यानी 5978 को अगला स्वाभाविक लक्ष्य समझना होगा। जब यह लक्ष्य पार होगा तो 100% वापसी यानी 6339 पर नजर जायेगी।
अगर हम निफ्टी के अलग-अलग सिंपल मूविंग एवरेज (एसएमए) देखें तो मध्यम से लंबी अवधि के लिए सकारात्मक उम्मीदें ही दिखती हैं। इसका 200 एसएमए 5284 पर और 50 एसएमए 5553 पर है। निफ्टी का इन दोनों के ऊपर होना इसकी मजबूती दिखाता है। साथ ही, 50 एसएमए का 200 एसएमए के ऊपर चलना भी बाजार के लिए सकारात्मक संकेत है। जब तक 50 एसएमए पक्के तौर पर न टूटे, तब तक बाजार में ज्यादा गिरावट की चिंता नहीं होनी चाहिए। इसके टूटने पर जरूर यह आशंका बन जाती है कि अब निफ्टी 200 एसएमए को छूने की ओर बढ़ेगा।
मोटे तौर पर मुझे लगता है कि निफ्टी के लिए 5400-5550 के बीच कई महत्वपूर्ण सहारे हैं। अगर किसी वजह से 5400 का स्तर टूटे, तभी यह मानना चाहिए कि बाजार ने मध्यम अवधि के लिए अपनी दिशा बदल ली है। लिहाजा इसे ही खतरे का निशान मानें और जब तक बाजार इससे ऊपर रहे, तब तक हर छोटी-मोटी गिरावट को एक मौके की तरह इस्तेमाल करें।
महँगाई से नहीं साहेब, खाली जेब से डर लगता है
भारतीय रिजर्व बैंक ने जब अपनी ब्याज दरें नहीं घटायीं तो मुझे बुरा लगा, पर मैं निराश नहीं था। खैर, मेरा निराश होना न होना कोई मायने नहीं रखता। बाजार जरूर निराश हो गया। लोग ब्याज दरों मे कटौती की ज्यादा उम्मीदें पहले से जता नहीं रहे थे। ज्यादातर लोग सीआरआर में कटौती की ही बात कह रहे थे। आरबीआई ने वैसा ही किया भी।
फिर क्यों आरबीआई का फैसला सामने आने के बाद बाजार गोता खा गया? इसलिए कि लोग दिमाग से सोच कर भले ही कह रहे थे कि ब्याज दर नहीं घटेगी, लेकिन दिल से यही चाह रहे थे कि दरों में कटौती हो। इसलिए जब आरबीआई ने ऐसा नहीं किया तो उसकी एक प्रतिक्रिया सामने आ गयी। लेकिन बाजार की निराशा भरी प्रतिक्रिया से भी ज्यादा महत्वपूर्ण रही वित्त मंत्री की निराशा और प्रतिक्रिया। बाजार तो बस गुहार लगा सकता है, मगर शायद वित्त मंत्री सोच रहे थे कि उनका संकेत आरबीआई के लिए आदेश सरीखा होगा। गफलत हो गयी।
आरबीआई ने दिखाया कि वह एक स्वायत्त नियामक है। उसने दिखाया कि वह सरकार के स्पष्ट संकेतों से उल्टे जाकर अपने विचारों के मुताबिक नीति बना सकता है। आरबीआई की इस स्वायत्त सोच का स्वागत है। लेकिन सुब्बाराव साहब, स्वायत्तता दिखाने के लिए आपको और भी मौके मिल सकते हैं। उसके लिए विकास दर को पटरी से उतारना जरूरी है क्या? अभी आपने ही तो बताया कि विकास दर घट कर केवल 5.8% रह जाने वाली है। पिछली समीक्षा के समय आपने तर्क दिया था कि ऊँची ब्याज दरों के चलते विकास दर नहीं घटती। लेकिन हमें तो स्पष्ट रूप से ब्याज दरों और विकास दर के बीच उल्टा संबंध दिख रहा है। जब से ब्याज दरें ऊँची चल रही हैं, तब से विकास दर पर ग्रहण लगा है।
महँगाई को लेकर आपकी चिंता से हमें पूरी हमदर्दी है। हमदर्दी क्या, हम तो भुगत रहे हैं इस महँगाई को। आपसे ज्यादा हमें सताती है यह महँगाई। इसीलिए मेरा तो खुला प्रस्ताव है आपको, कि आप ब्याज दरें घटाने के बदले चाहें तो उल्टे 2-4% बढ़ा लीजिए, बशर्ते आप ऐसा करके गेहूँ-चावल, फल-सब्जी, दूध-अंडे के दाम घटवा देने का वादा कर सकें। आप ब्याज दरें जरूर ऊँची रखिए, अगर ऐसा करने से मकान-किराये नहीं बढ़ें। हम आपसे कोई शिकायत नहीं करेंगे, अगर आपकी यह नीति डॉक्टर-वकील की या स्कूलों की फीस घटा सकती हो। लेकिन बीते सालों में आपकी ऊँची ब्याज दरों के डर से महँगाई डायन के चेहरे पर जरा भी शिकन पड़ी है क्या?
आपने खुद ही अपनी समीक्षा बैठक के बाद बताया कि मार्च 2013 तक महँगाई दर 7.5% के ऊँचे स्तर पर ही रहेगी। पहले आप सोच रहे थे कि मार्च तक महँगाई दर 7% पर रहेगी। इसका मतलब यही निकला न कि ऊँची ब्याज दरों के बावजूद खुद आपको महँगाई और बढ़ने की ही आशंका है। फिर क्यों आप ऊँची ब्याज दरों की जिद पर अटके हैं? शायद आपको डर है कि ब्याज दरें घटने से महँगाई और भी ज्यादा उछल जायेगी, और ज्यादा बेकाबू हो जायेगी। लेकिन इस डर के चलते आप विकास दर घटाने की रणनीति पर उतर चुके हैं। यह रणनीति ऐसी है कि अगर आमदनी के मौके घट जायें, लोगों के हाथ में पैसा ही नहीं हो तो भला वे चीजें खरीदेंगे कैसे? जब लोग चीजें खरीदेंगे नहीं तो माँग घटने से महँगाई दर नीचे आ जायेगी। अगर यह रणनीति सफल हो भी जाये (अब तक तो नहीं हो पायी), तो क्या यह महँगाई घटाने का बड़ा क्रूर तरीका नहीं है?
सुब्बाराव जी, आप जिस महँगाई को लेकर परेशान हैं, उसकी कोई व्याख्या आपको अमेरिकी-यूरोपीय अर्थशास्त्रियों की किताबों में नहीं मिलने वाली। यह खाँटी हिंदुस्तानी महँगाई है। यह माँग में कोई इजाफा नहीं होने पर भी बढ़ती है। मानसून कमजोर रहने और फसल घटने पर तो यह बढ़ती ही है, जब मानसून अच्छा रहे और फसल अच्छी हो तब भी बढ़ती है।
किसी कमोडिटी के भाव भले ही बाकी दुनिया में स्थिर हों, लेकिन भारत में उसका भाव कई गुना बढ़ जाना आम बात है। अर्थशास्त्री ऐसी घटनाओं की व्याख्या करने के लिए सप्लाई साइड कंस्ट्रेन्स यानी आपूर्ति की बाधाओं का हवाला देते हैं, दुष्चक्र की बात करते हैं। नहीं गवर्नर साहब, यह आपूर्ति का दुष्चक्र नहीं बल्कि ब्लैक होल है। आपके घटाने से यह महँगाई नहीं घटने वाली। इसलिए कम-से-कम विकास के रास्ते की बाधा हटा दीजिए। लोगों की जेब में चार पैसे होंगे तो वे इस महँगाई को सह भी लेंगे। नहीं तो उन्हें खाली जेब ही यह महँगाई सहनी पड़ेगी।
(निवेश मंथन, नवंबर 2012)