राजीव रंजन झा :
वैश्विक बाजारों में घबराहट बढऩे के बीच निफ्टी 26 सितंबर को 4759 तक फिसल गया था। अगस्त की तलहटी 4720 के बेहद पास जाने से भारतीय बाजार में भी घबराहट बढ़ गयी थी। हालाँकि उसी दिन यह निचले स्तरों से अच्छी वापसी करने में भी कामयाब रहा, लेकिन बाजार इसकी दहशत से उबरा नहीं था।
बाजार में घबराहट के बावजूद 27 जनवरी की सुबह मैंने शेयर मंथन (222.ह्यद्धड्डह्म्द्गद्वड्डठ्ठह्लद्धड्डठ्ठ.द्बठ्ठ) में अपने दैनिक स्तंभ में लिखा कि ‘ऐसे बेचैन माहौल में बाजार एक बड़े महत्वपूर्ण मुकाम पर है। चाहे तो यहाँ से पलट जाये, या फिर एकदम टूट जाये। अक्टूबर 2008 की तलहटी 2253 से नवंबर 2010 के शिखर 6339 की 38.2% वापसी 4778 पर है। अगस्त में मोटे तौर पर इसी रेखा से पलट कर बाजार चढ़ा और कल निफ्टी ने वापस इस रेखा को छुआ। अगर आज सुबह शुरू होने वाली उछाल टिक सकी और बाजार यहाँ से ऊपर की ओर पलट गया तो 23.6% वापसी यानी 5374 इसका अगला स्वाभाविक लक्ष्य होगा। अगर यह 4778 को तोड़ कर नीचे फिसला तो 50% वापसी के स्तर 4296 तक गिरने की गुंजाइश बन जायेगी।‘
किसी उछाल या गिरावट की वापसी के स्तर देखते समय 38.2% और 61.8% वापसी को बड़ा महत्वपूर्ण माना जाता है। ये स्तर रुझान बदलने का संकेत देते हैं। मतलब यह कि अगर किसी उछाल की वापसी में भाव 38.2% के ऊपर टिका रहे, तो उस समय तक यह नहीं माना जाता कि तेजी का रुझान बदल गया है। मतलब यह कि जब तक निफ्टी मोटे तौर पर 4700-4800 की पट्टी को न तोड़े, तब तक मार्च 2009 से शुरू होने वाली तेजी को खत्म नहीं मानना चाहिए। लेकिन यह स्तर टूटने के बाद बाजार की दिशा बदल जायेगी। वैसे में 50% वापसी के स्तर 4296 और 61.8% वापसी के स्तर 3814 को अगला स्वाभाविक लक्ष्य समझना होगा।
अगर हम निफ्टी के जनवरी 2008 के शिखर 6357 से अक्टूबर 2008 की तलहटी 2253 तक गिरावट की संरचना को देखें तो उसमें भी 61.8% वापसी का स्तर 4789 काफी महत्वपूर्ण है। यह सहारा टूटने पर 4305 तक फिसलने का खतरा साफ दिखता है। वहीं इस स्तर से सफल वापसी इसके लिए 80% वापसी के स्तर 5536 तक चढऩे का नया लक्ष्य बना सकती है। हालाँकि इस लक्ष्य के रास्ते में नवंबर 2010 के शिखर से इस साल जनवरी, अप्रैल और जुलाई के शिखरों को मिलाती रुझान रेखा एक बाधा बन रही है। मुझे लगता है कि निफ्टी इस रुझान रेखा को जब भी पार करेगा, तो बाजार फिर से तेजी के नये दौर में चला जायेगा। हालाँकि निफ्टी को ऊपर जाने के लिए अभी 50 दिनों के सिंपल मूविंग एवरेज (एसएमए) और 100 दिनों के एसएमए की बाधा भी पार करनी होगी। सितंबर के अंत में 50 दिनों का एसएमए 5129 पर और 100 दिनों का एसएमए 5318 पर था।
फिलहाल, एक संभावना यह बनती है कि निफ्टी 4700-4800 के बीच फिर से सहारा ले या शायद छकाने के लिए कुछ समय के लिए 4700 के भी नीचे जाये और फिर वापस पलट कर सँभल जाये। इस समय 4720 या मोटे तौर पर 4700 पर सबकी नजर है। निफ्टी अगर 4700 के थोड़ा नीचे जाता दिखेगा, तो बाजार में एकदम से घबराहट बढ़ेगी। वैसी हालत में लगभग सारे लोग नकारात्मक नजरिया अपना लेंगे। लेकिन ऐसे ही मौकों पर बाजार छकाता है, क्योंकि आम राय के उल्टे चलना इसकी आदत होती है।
निफ्टी पिछले साल नवंबर से ही एक गिरती पट्टी के अंदर दिख रहा है। अगस्त 2011 में 4720 की तलहटी इस पट्टी की निचली रेखा पर ही थी। लेकिन अब यह निचली रेखा थोड़ी और नीचे जा चुकी है। इसलिए अब एक संभावना यह बनती है कि निफ्टी अब इस पट्टी की ऊपरी रेखा को छूने की ओर बढ़े। वैसी हालत में निफ्टी अगले कुछ हफ्तों में 5300-5400 के बीच किसी स्तर तक जा सकता है। नवंबर के शिखर 6339 से 4720 तक की गिरावट की 38.2% वापसी का स्तर 5338 दिसंबर में इस पट्टी की ऊपरी रेखा को छू रहा है। ऐसे में यह संभव है कि निफ्टी पहले तो 4720 को तोड़े, जिससे बाजार में घबराहट फैले, लेकिन इसके बाद निफ्टी इस पट्टी की निचली रेखा पर सहारा ले कर पलट जाये!
लेकिन दूसरी संभावना यह होगी कि यह पक्के तौर पर 4700 के नीचे चला जाये। अगर 4720 का स्तर पक्के तौर पर टूट गया तो बाजार को करीब 10% का और झटका लगने में कोई आश्चर्य नहीं होगा। वहीं अगर निफ्टी पिछले साल नवंबर से चल रही गिरती पट्टी की निचली रेखा को तोड़ दे, तो यह बाजार के लिए काफी नकारात्मक होगा।
इन सारी बातों का सार यह है कि बाजार के वापस सँभलने की एक सकारात्मक उम्मीद जरूर है। मैंने पिछले महीने भी लिखा था कि अगले दो महीनों में निफ्टी 5400 तक जा सकता है। हालाँकि सीधे उस लक्ष्य की ओर बढऩे से पहले निफ्टी ने कुछ छकाया है। पिछले अंक में मैंने लिखा था, ‘अगर पट्टी की निचली रेखा से ऊपर जाते समय इसका सफर बीच में ही टूट जाये, मतलब यह करीब 5100-5200 के आसपास तक ही जा कर नीचे आने लगे तो क्या होगा? वैसी स्थिति में दो संभावनाएँ बनेंगी। पहली यह कि निफ्टी निचली रेखा के आसपास तक आने के बाद दोबारा ऊपर की चाल पकड़े। ऐसी चाल में काफी दम हो सकता है और वह चाल दूर तक जा सकती है। दूसरी संभावना यह होगी कि निफ्टी निचली रेखा को निर्णायक ढंग से काट कर नीचे फिसल जाये।‘ फिलहाल निफ्टी पहली संभावना के साथ चलता दिख रहा है।
कमजोर अमेरिका, मजबूत डॉलर
हाल में मेरे एक मित्र ने सवाल किया कि जिस देश के दोहरी मंदी में घिरने की आशंका मँडरा रही है, उस अमेरिका की मुद्रा डॉलर इतने गंभीर संकट के बीच कैसे लगातार मजबूत हो रही है? और जिस भारत की अर्थव्यवस्था लगातार मजबूत चल रही है, उसका रुपया कमजोर कैसे हो रहा है? मुझे लगता है कि इसका जवाब अर्थशास्त्र में नहीं, मनोविज्ञान में मिलेगा! लेकिन देर-सबेर वैश्विक निवेशक अर्थशास्त्र की ओर लौटेंगे ही।
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने विश्व अर्थव्यवस्था की विकास दर के अनुमानों में कटौती की है। पहले इसका अनुमान था कि वैश्विक विकास दर 2011 में 4.3% और 2012 में 4.5% रहेगी। अब इन दोनों वर्षों में 4% विकास दर रहने का अनुमान जताया गया है। अनुमानों में कटौती के बावजूद इन दरों के हिसाब से यह कहा जा सकता है कि विश्व अर्थव्यवस्था मंदी के खतरे से दूर है। चिंता विकसित देशों को लेकर ज्यादा है। अमेरिका की विकास दर का अनुमान घटा कर 1.5% कर दिया गया है और इसके हिसाब से ब्रिटेन केवल 1.1% की दर से बढ़ सकेगा। लेकिन दूसरी ओर खुद आईएमएफ के शब्दों में एशियाई विकास दर में मजबूत कायम है, भले ही यह क्षमता संबंधी सीमाओं और कमजोर बाहरी मांग के कारण थोड़ी धीमी पड़ रही है। आईएमएफ ने चीन की विकास दर 2011 में 9.5% और 2012 में 9% रहने की बात कही है। वहीं भारत के बारे में अनुमान लगाया गया है कि इसकी अर्थव्यवस्था 2011 में 7.8% और 2012 में 7.5% बढ़ेगी।
क्या सेंसेक्स डॉव जोंस का गुलाम है?
सितंबर के अंतिम हफ्ते में फेडरल रिजर्व की बैठक के बाद जब सारी दुनिया के बाजार टूटे तो इस वैश्विक सूनामी में 22 सितंबर को सेंसेक्स के 704 अंक के भूकंप और निफ्टी की 210 अंक की धुलाई ने किसी भी निचले स्तर पर सहारा मिलने की उम्मीदों को बहा दिया। इस साल अगस्त के पहले हफ्ते में भी ऐसा ही दिखा था। 22 सितंबर को भी सेंसेक्स की 4% गिरावट यूरोपीय बाजारों में 4-5% गिरावट से कदमताल मिला रही थी। अमेरिकी बाजार इसके एक दिन पहले टूटे ही थे और उनके फिर से टूटने के आसार थे। तो ऐसे माहौल में भारतीय बाजार का बच पाना कैसे संभव होता?
अगर विश्व अर्थव्यवस्था पर कोई संकट आयेगा तो हम उसके असर से बचे नहीं रह सकेंगे। अगर अमेरिकी और यूरोपीय बाजार टूटेंगे तो हम ऊपर कैसे जायेंगे? यह तो अनुभव से सिद्ध है। हमारा रोज-रोज का अनुभव यही बताता है। लेकिन यह क्या, अपने अनुभव के दायरे को जरा फैला देने पर हमें तस्वीर थोड़ी अलग क्यों दिख रही है?
अचानक मेरी नजर चली गयी है इस सदी में अब तक के प्रदर्शन पर। डॉव जोंस 31 दिसंबर 1999 को 11497 पर था। सितंबर 2011 के अंतिम हफ्ते में यह 10,700 के आसपास है। मतलब इन 11 सालों में डॉव जोंस ने 6.64% का घाटा ही दिया है। दूसरी ओर हाल की सारी गिरावट के बावजूद सेंसेक्स इन 11 सालों में 5006 के स्तर से चढ़ कर अभी 16,000-17,000 के बीच है। मतलब यह तिगुने से कुछ ज्यादा ही हो गया है। आखिर यह क्या माजरा है? हम तो हमेशा अंतरराष्ट्रीय चाल के हिसाब से चलते हैं ना! अमेरिका चढ़ा तो हमारा बाजार भी चढ़ गया। वहाँ बाजार को छींक आयी तो हमें भी बुखार आ गया। फिर डॉव जोंस और सेंसेक्स के प्रदर्शन में इतना फर्क कब और कैसे आ गया? आ भी गया तो हमें पता कैसे नहीं चला? कोई घोटाला तो नहीं है? सीबीआई, सुप्रीम कोर्ट, सेबी, एसईसी, अरे भाई कोई तो देखो इस घोटाले को!
यह कोई घोटाला नहीं, एकदम सीधा-सादा अर्थशास्त्र है। जब अमेरिकी फेडरल रिजर्व अपने देश में अगले कई सालों के लिए गंभीर संकट की बातें कर रहा है और वहाँ बाजार फिर से मंदी की चपेट में आने की चिंता में डूबा है, उस समय हम अपने यहाँ इस बात पर परेशान हैं कि हमारी विकास दर घट कर कहीं 7% पर न आ जाये। इसलिए डॉव और सेंसेक्स के प्रदर्शन में जो फर्क बीते 10-11 सालों में दिखा है, वैसा ही फर्क अगले 10-20 सालों में भी दिखेगा। रोज-रोज के हिसाब में भले ही लगे कि हम वैश्विक संकेतों के पीछे-पीछे चल रहे हैं। पर अमेरिका और भारत की अर्थव्यवस्था में अगर फर्क है तो दोनों के बाजार भी यह अंतर दिखायेंगे ही।
(निवेश मंथन, अक्तूबर 2011)