शिवानी भास्कर :
सतीश वर्मा को बुधवार को कनॉट प्लेस से अपने घर रोहिणी जाते समय जब ट्रैफिक पुलिस की एक पीसीआर ने रोका, तो एक बार तो वह घबराये। जब ट्रैफिक इंस्पेक्टर ने उन्हें बताया कि यह दस्तावेजों की रूटीन चेकिंग के लिए है तो वे निश्चिंत हो गये।
उन्होंने तुरंत मन में गिनती की - लाइसेंस, गाड़ी का आरसी, रोड टैक्स सर्टिफिकेट और पॉल्यूशन अंडर कन्ट्रोल (पीयूसी) सर्टिफिकेट - सब तो उनके पास है ही, फिर किस बात की चिंता। लेकिन लाइसेंस और दस्तावेजों की उनकी फाइल देखने के बाद इंस्पेक्टर ने पूछा, वर्मा साहब आपके ऑटो इंश्योरेंस का सर्टिफिकेट कहाँ है? वर्मा जी की समझ में ही नहीं आया कि ऑटो इंश्योरेंस या गाड़ी के बीमा से ट्रैफिक पुलिस का क्या लेना-देना। तब जाकर इंस्पेक्टर ने उन्हें बताया कि भारतीय ट्रैफिक नियमों के मुताबिक गाड़ी का बीमा कराना और अधिकृत तौर से मांगे जाने पर उसकी मूल प्रति दिखाना कानून अनिवार्य है। वर्मा साहब की गाड़ी अभी केवल छह महीने पुरानी थी और डीलर ने उनकी गाड़ी का बीमा खरीदने के समय ही करा दिया था। लेकिन उसका कागज उन्होंने घर में ही गाड़ी के दूसरे दस्तावेजों के साथ रख छोड़ा था।
दरअसल वर्मा जी अकेले नहीं है। एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक देश में मौजूद कुल वाहनों में से केवल एक चौथाई का ही बीमा कराया गया है। आमतौर पर बीमा को लोग एक निजी मामले की तरह देखते हैं। लेकिन हमारे देश के कानून के मुताबिक सड़क पर चल रही हर गाड़ी का थर्ड पार्टी बीमा अनिवार्य है। ऐसा न कराने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का प्रावधान भी है। कानूनी पक्ष को अलग रख दें तो भी सड़कों पर बढ़ती गाडिय़ों के मद्देनजर जिस तरह दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ रही है, उसे देखते हुए मेहनत के पैसे से खरीदी गयी अपनी गाड़ी का बीमा कराना हर तरह से बुद्धिमानी भरा फैसला है। हालाँकि ऑटो बीमा खरीदने में भी लोगों को अमूमन उन्हीं परेशानियों से दो-चार होना पड़ता है, जिनसे किसी भी अन्य वित्तीय उत्पाद की खरीद में उनका साबका पड़ता है। मसलन, कहाँ से खरीदें, किस कंपनी की दरें सबसे कम हैं या किस कंपनी की क्लेम रेट यानी दावों के भुगतान की दर सबसे अच्छी है जैसे सवाल।
समझें अपने वाहन बीमा को
वाहन बीमा पॉलिसियाँ मोटे तौर पर दो तरह की होती हैं : संपूर्ण (कॉम्प्रिहेंसिव) पॉलिसी और थर्ड पार्टी पॉलिसी। संपूर्ण पॉलिसी में हर तरह के संभावित नुकसान से सुरक्षा दी जाती है, चाहे वह गाड़ी को हुआ कोई नुकसान (जैसे खरोंच या पिचकना) हो, किसी तरह की कोई तकनीकी समस्या हो, कोई मरम्मत हो, दुर्घटना से हुआ नुकसान हो या फिर कार की चोरी। इसलिए नयी कार या मोटरसाइकल खरीदने वालों को आम तौर पर संपूर्ण पॉलिसी खरीदने की ही सलाह दी जाती है। नये ग्राहक को यह भी देखना चाहिए कि उसकी पॉलिसी में प्राकृतिक या मानव निर्मित (मैन मेड) आपदाएँ, जैसे आग, विस्फोट, बाढ़, भूकंप, दंगे, हड़ताल या आतंकवादी घटनाओं की स्थितियाँ शामिल हैं या नहीं।
थर्ड पार्टी बीमा में केवल उन्हीं दावों को लिया जाता है जिनमें दुर्घटना से प्रभावित किसी तीसरे पक्ष को भुगतान करना हो। यहाँ यह खास बात है कि कानून के तहत केवल थर्ड पार्टी बीमा ही अनिवार्य है। इसी श्रेणी के तहत एक और बीमा आता है, जिसे थर्ड पार्टी थेफ्ट इंश्योरेंस कहते हैं। इस बीमा में पीडि़त पक्ष को केवल थर्ड पार्टी बीमा सुरक्षा के साथ-साथ कार चोरी की स्थिति में भी दावे का भुगतान मिलता है, लेकिन किसी तरह के अन्य नुकसान में उसका कोई दावा नहीं बनता। अपनी सीमित प्रकृति के कारण इस बीमा का प्रीमियम काफी कम होता है। जनरल इंश्योरेंस, न्यू इंडिया एश्योरेंस, यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस और ओरिएंटल इंश्योरेंस जैसी कुछ सरकारी बीमा कंपनियाँ ऐसी पॉलिसी बेचती हैं। कंपनियों के लिए इस तरह की बीमा योजनाएँ ज्यादा फायदेमंद नहीं होतीं, इसलिए कुछ ही निजी कंपनियाँ इस तरह की पॉलिसी बेचती हैं।
वैसे तो इन दोनों ही तरह के बीमा में इलाज के खर्चों को शामिल नहीं किया जाता है, लेकिन मोटर बीमा न्यायाधिकरण के तहत अस्पताल में भर्ती होने के कारण वेतन या आमदनी में होने वाले नुकसान के दावे को शामिल किया जाता है।
कहाँ से खरीदें वाहन बीमा
वैसे तो वाहन बीमा बेचने वाली इस समय देश में कई सामान्य बीमा कंपनियाँ हैं, लेकिन इनमें से कुछ कंपनियां सेवाओं के लिहाज से बेहतर मानी जाती हैं। जे डी पावर एशिया पैसिफिक 2009 इंडिया ऑटो बीमा ग्राहक संतुष्टि सूचकांक अध्ययन ने दो वर्ष पहले एक सर्वे किया था, जिसमें ग्राहक संतुष्टि के लिए छह मानक तय किये गये थे: ग्राहक से बातचीत, दावे, प्रोडक्ट/पॉलिसी ऑफर, पॉलिसी की खरीद/नवीकरण, बिलिंग एवं भुगतान प्रक्रिया और कवरेज पर प्रीमियम। अध्ययन में इन मानकों पर आईसीआईसीआई लोंबार्ड को सबसे ऊपर रखा गया। देश भर के 20 शहरों में 11 कार इंश्योरेंस कंपनियों 4,445 ग्राहकों के बीच किये गये इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि 80% से ज्यादा बीमा ग्राहकों ने अपनी कंपनियों से एक बार भी दावे का भुगतान नहीं लिया। इस अध्ययन के आधार पर देश की शीर्ष 10 कंपनियों को 1,000 में मिले कुल अंकों के लिहाज से क्रमवार रखा गया, जो इस प्रकार है: आईसीआईसीआई लोंबार्ड (775), ओरिएंटल इंश्योरेंस (772), नेशनल इंश्योरेंस कंपनी (764), न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी (763), बजाज आलियांज (762), टाटा एआईजी (760),18 फरवरी 1938 को स्थापित देश की सबसे पुरानी बीमा कंपनी यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी (755), रिलायंस जनरल इंश्योरेंस (754), एचडीएफसी एर्गो (747) और रॉयल सुंदरम (744)।
कैसे करें सबसे अच्छा सौदा
आम तौर पर किसी भी वित्तीय उत्पाद की खरीद के लिए हम एजेंटों पर निर्भर रहते हैं। लेकिन कोई भी एजेंट सभी कंपनियों के उत्पाद नहीं बेचता। आप जिस भी एजेंट से सबसे पहले संपर्क करते हैं, वह आपको यह बखूबी समझा देता है कि उसकी कंपनी का ही उत्पाद सबसे बेहतर है। कुछ ऐसे एजेंट भी हैं, जो तीन या चार कंपनियों के उत्पाद बेचते हैं। लेकिन उन्हें हर कंपनी से मिलने वाला कमीशन अलग-अलग होता है। इस बात की आशंका हमेशा रहती है कि एजेंट की सलाह उसे मिलने वाले कमीशन के हिसाब से तय होगी।
लेकिन आज इंटरनेट पर तमाम बीमा कंपनियों की अपनी वेबसाइटें हैं, जहाँ अलग-अलग कंपनियों की गाड़ियों के अलग-अलग मॉडलों के लिहाज से उनकी बीमा सुरक्षा और प्रीमियम की जानकारियाँ उपलब्ध हैं। इसके अलावा इंटरनेट पर ऐसी साइटें भी हैं, जो एक बार में कई बीमा कंपनियों के प्रस्तावों की तुलना कर आपको यह फैसला करने में मदद कर सकती हैं कि आप किसी कंपनी से अपनी गाड़ी के लिए बीमा करायें। जब आपने फैसला कर लिया कि आपको किस कंपनी से बीमा कराना है, तो उसके बाद आपके पास दोनों विकल्प हैं। आप चाहें तो उस कंपनी के ग्राहक सेवा नंबर पर बात कर उसका कोई एजेंट अपने पास बुला सकते हैं और सारी औपचारिकताएँ पूरी कर सकते हैं या फिर सीधे ऑनलाइन ही पॉलिसी खरीद सकते हैं।
यहाँ एक महत्वपूर्ण बात प्रीमियम पर होने वाला मोलभाव है। बीमा का प्रीमियम बहुत से मामलों में मोलभाव से घट सकता है। लेकिन प्रीमियम पर मोलभाव करते समय अपनी गाड़ी के मूल्यांकन (वैल्युएशन) पर जरूर ध्यान दें। जैसे मान लीजिए कि आपकी गाड़ी का मूल्यांकन 3 लाख रुपये है और कोई बीमा कंपनी उसके बीमा के लिए आपसे 10,000 रुपये माँग रही है। आपने मोलभाव किया और वह प्रीमियम घटा कर 8,000 रुपये करने को तैयार हो गयी। लेकिन आपको यह प्रस्ताव स्वीकार करने से पहले देखना चाहिए कि कहीं उस कंपनी ने आपकी गाड़ी का मूल्यांकन भी तो कम नहीं कर दिया। उसने प्रीमियम में जो कमी की, उसका महत्व तभी है, अगर मूल्यांकन पहले की तरह 3 लाख रुपये ही रखा गया है।
बीमा का नवीकरण (रिन्युअल) कराते समय नो क्लेम बोनस भी जरूर ध्यान में रखें। अगर आपने पूरे साल में कोई दावा नहीं किया है तो आपको नवीकरण के समय प्रीमियम में भारी छूट मिलनी चाहिए। यह छूट 20% से 65% तक होती है। इसलिए यहाँ भी आपके पास मोलभाव का पूरा अवसर होता है।
बीमा दावा करने के महत्वपूर्ण सुझाव
अगर आपने अपनी गाड़ी का बीमा करा रखा है, तो इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि आपको किसी दावे के लिए हड़बड़ी करनी चाहिए। याद रखिए, कोई भी बीमा कंपनी कभी भी पूरे नुकसान की भरपाई नहीं करती। मतलब अगर आपकी गाड़ी को किसी तरह का नुकसान हुआ जिसमें मैकेनिक ने 5,000 रुपये का खर्च बताया, तो बीमा कंपनी हो सकता है कि उसमें से केवल 3,000 रुपये का ही भुगतान करे या हो सकता है 3,500 रुपये का। लेकिन अगर आपने यह भुगतान ले लिया, तो अगले साल बीमा नवीकरण के समय आप नो क्लेम बोनस के हकदार नहीं रहेंगे। इसलिए कभी भी क्लेम से पहले यह हिसाब जरूर लगा लेना चाहिए कि दावे की रकम नो क्लेम बोनस के मुकाबले ज्यादा है कि नहीं। अन्यथा आपका दावा फायदे की जगह नुकसान का ही सबब बनेगा।
बीमा खरीदते समय यह ध्यान रखना भी उपयोगी होगा कि कैशलेस सुविधा है कि नहीं। कैशलेस सुविधा होने पर (मेडिकल बीमा की ही तरह) आपको बड़े नुकसान की स्थिति में पहले मोटी रकम की व्यवस्था करने और बाद में उसका भुगतान लेने की जटिल प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ेगा। आपको यह भी पता कर लेना चाहिए कि आपके सबसे नजदीकी सर्विस सेंटर पर वह कैशलेस सुविधा मान्य है कि नहीं।
वाहन बीमा कराने वालों के मन में हमेशा इस बात को लेकर संदेह बना रहता है कि कहीं कंपनी दावे के भुगतान के समय किसी तरह की गड़बड़ी तो नहीं कर देगी। जानकारी नहीं होने के कारण लोग यह मान लेते हैं कि उन्हें बीमा कंपनी से नुकसान की पूरी रकम मिल जायेगी और ऐसा नहीं होने पर उन्हें लगता है कि कंपनी ने उन्हें ठग लिया है। इसलिए दावे की प्रक्रिया को समझना भी हर बीमा ग्राहक के लिए जरूरी है। जब भी आपकी गाड़ी को कोई नुकसान होता है, तो एक व्यक्ति इस नुकसान का निरीक्षण करता है। इस व्यक्ति को सर्वेयर कहते हैं। दावे का भुगतान सर्वेयर की रिपोर्ट के आधार पर ही होता है।
नियम के मुताबिक 20,000 रुपये से कम के नुकसान की जाँच के लिए बीमा कंपनियां अपना ही सर्वेयर नियुक्त करती हैं। लेकिन बीमा अधिनियम के मुताबिक 20,000 रुपये से अधिक के नुकसान की स्थिति में सर्वेयर कोई स्वतंत्र अधिकारी होना चाहिए। इससे सर्वेयर के रिपोर्ट में किसी एक पक्ष के प्रति झुकाव की संभावना कम की जा सकती है।
यह जरूरी है कि सर्वेयर नुकसान के आकलन के 30 दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट कंपनी को भेजे। नियम के बावजूद कंपनियाँ आम तौर पर अपना कामकाजी खर्च कम रखने के लिए अपने सर्वेयर से ही काम चलाती हैं। लेकिन ग्राहक को ऐसी स्थिति में स्वतंत्र सर्वेयर नियुक्त करने का पूरा अधिकार है। साथ ही अगर मामला अदालत में जाये, तो उस स्थिति में एक स्वतंत्र सर्वेयर नुकसान का आकलन कर अपनी रिपोर्ट पेश करता है और इसी आधार पर फैसला होता है। वैसे तो अपेक्षा की जाती है कि कंपनियों के सर्वेयर भी निष्पक्ष आकलन करेंगे, लेकिन अगर आकलन को लेकर कोई विवाद होता है तो उसका निपटारा उपभोक्ता अदालत में किया जा सकता है।
तमाम नियमों और कानूनों के बावजूद यह ध्यान रखना चाहिए कि बीमा दावे का निपटारा एक जटिल और विवादास्पद प्रक्रिया है। इसलिए ग्राहक को चाहिए कि वह कंपनी से होने वाले हर संवाद का रिकॉर्ड संभाल कर रखें। इससे जरूरत पडऩे पर आपके दावे को मजबूती मिलेगी।
कुछ खास बातें
बहुत से लोगों में यह गलतफहमी है कि लाल रंग या चमकीले पेंट वाली कारों से दुर्घटनाएँ ज्यादा होती हैं और इसलिए बीमा कंपनियाँ इन पर ज्यादा प्रीमियम लगाती हैं। लेकिन यह धारणा पूरी तरह से गलत है। बीमा कंपनियाँ प्रीमियम तय करने में रंगों का ध्यान बिल्कुल भी नहीं रखती हैं। अलबत्ता कार की कंपनी, मॉडल, बॉडी का प्रकार, उत्पादन का वर्ष और कार में मौजूद सुरक्षा उपायों का असर जरूर उसके बीमा प्रीमियम पर पड़ता है। एसयूवी और लग्जरी कारों जैसी महंगी कारों का ज्यादा प्रीमियम होता है, क्योंकि एक तो इनके पुर्जे काफी महँगे होते हैं और दूसरी तरफ इन पर काम करने वाले मैकेनिक भी ज्यादा महँगे होते हैं। यह जरूर है कि जिन कारों में सुरक्षा के लिए एंटी थेफ्ट लॉक और एबीएस जैसी खासियतें होती हैं, उन पर प्रीमियम में कुछ अतिरिक्त छूट मिलती है।
कार बीमा के प्रीमियम पर उसके मालिक की उम्र का भी असर पड़ता है। आँकड़ों से यह साबित होता है कि सबसे ज्यादा दुर्घटनाएँ 25 वर्ष से कम और 65 वर्ष से ज्यादा उम्र के चालक करते हैं। इसलिए इन दो आयु वर्गों के लोगों को अपनी कारों के लिए ज्यादा प्रीमियम देना होगा।
कार को नुकसान किसी भी कारण से पहुँचे, बीमा कंपनियां उसका भुगतान करती हैं। लेकिन अगर यह साबित हो जाये कि दुर्घटना के समय ड्राइवर नशे की हालत में था या किसी भी ऐसी स्थिति में था, जिसमें उसे कार नहीं चलानी चाहिए थी, तो उस स्थिति में बीमा कंपनी दावे के भुगतान से इंकार कर सकती है।
वाहन बीमा जिस तारीख तक के लिए होता है, उसकी आधी रात तक उसका प्रभाव रहता है। यानी अगर आपने 16 जनवरी 2011 को एक साल के लिए अपनी कार बीमा कराया है, तो उसका प्रभाव 15 जनवरी 2012 की आधी रात तक रहेगा। अगर 16 जनवरी 2012 की सुबह 2 से 3 बजे के बीच आपकी कार दुर्घटनाग्रस्त हो गयी या चोरी हो गई तो आपको कोई बीमा कंपनी से भुगतान नहीं मिलेगा। इसलिए बीमा के नवीकरण के लिए चालू पॉलिसी की अवधि पूरी हो करने का इंतजार न करें। यहाँ यह जान लेना भी महत्वपूर्ण है कि ऊपर के उदाहरण में अगर आप 5 जनवरी 2012 को अपने बीमा का नवीकरण करा लें तो ऐसा नहीं है कि आपको 10 दिनों का नुकसान हो जायेगा। आपकी नयी बीमा पॉलिसी 16 जनवरी 2012 से 15 जनवरी 2013 की आधी रात तक प्रभावी रहेगी।
यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अगर आप एक पॉलिसी की अवधि खत्म होने के बाद नयी पॉलिसी खरीदते हैं या पिछली पॉलिसी के नवीकरण में कुछ अंतर रखते हैं तो इसका आपके रिकॉर्ड पर बुरा असर पड़ता है। इस बात की वजह से बीमा कंपनी आपसे अधिक प्रीमियम ले सकती है।
अगर आपने पुरानी कार खरीदी हो तो बेचने वाले के इंश्योरेंस से आपका काम नहीं चलेगा। आपको तुरंत अपनी कार का नया बीमा कराना होगा जो आपके नाम से होना चाहिए। अगर आप ऐसा नहीं कराते हैं, तो कार के पिछले मालिक की बीमा कंपनी आपकी कार पर किसी दावे का भुगतान नहीं करेगी। साथ ही ध्यान रखने की बात यह भी है कि अगर आपने अपनी पुरानी कार बेच कर नयी कार खरीदी, तो नयी कार के लिए भी आपको फिर से नयी पॉलिसी लेनी होगी।
वाहन बीमा के प्रीमियम का नियमन (रेगुलेशन) भारतीय बीमा नियामक प्राधिकरण (इरडा) के जिम्मे है। हर बीमा कंपनी को इरडा के पास प्रीमियम गणना का विवरण जमा करना होता है। इसलिए अगर बीमा कंपनी दावे के भुगतान में मनमानी करे उपभोक्ता अदालतों में आपको सही भुगतान मिलने की पूरी उम्मीद होती है।
(निवेश मंथन, सितंबर 2011)